अगर आप आज के किसी भी 23 -24 साल के शख्स से मिलें तो उसके विचारों में मौजमस्ती ज्यादा होगी और वे दुनियाँ के रंगीनियों पर फिदा मिलेगें। यानि उनमें समाज और देश के प्रति सोच शायद देखने को न मिले ।आज शहीदे आजम भगत सिंह को पढ़ने का मौका मिला तो पता चला कि उनके विचार उनकी उम्र से बहुत आगे थे। जब उन्हें फांसी हुई तो वे महज 23 साल के थे । इस उम्र में उनकी सोच में इतनी गहराई थी जो आज के युवा में नहीं मिल सकती। आज 23 साल के उम्र में युवाओं में कमाने खाने की होड़ ही देखने को मिलती है। देश व समाज के प्रति उनके सोच में कोई जगह नहीं होती । ऐसा नहीं है कि उन्होने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी।
भगत सिंह एक (Philosophy ) हैं
23 साल के भगत सिंह को विचारों को आज जब हम पढ़ते हैं तो अविश्वसनीय प्रतीत होता है।
13 साल की उम्र में जब वे थे तो जलियावाला बाग का नरसंहार हुआ उन्होंने स्कूली पढ़ाई लिखाई छोड़ कर अंग्रेजों से लड़ने की ठानी फिर नया जन्म हुआ सरदार भगत सिंह का जिन्हें आज इतिहास शहीदे ए आजम भगत सिंह के नाम से जानता है। अगर भगत सिंह के विचारों से आप रूबरू होना चाहते हैं तो उनके लेख पढ़िए जिनका लिंक मै यहाँ दे रहा हूँ।
16 साल की उम्र उनके लेख पंजाबी भाषा और लिपि की समस्या और फिर एक लेख जिसे उन्होंने जेल में 5, 6 अक्टूबर 1930 को लिखा था । उस लेख का नाम है मै नास्तिक क्यों हूँ ? (Why am I atheist )
इन दोनों ही लेखों में उन्होने बेबाकी से कई विषयों पर बात की है।
खैर उनके स्वतंत्रता आंदालन में क्या योगदान है इस बारे में चर्चा करते हैं।
भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907 को पंजाब के बंगा गांव हुआ जो उस वक्त ल्यालपुर जिले में आता था। उनके परिवार में दयानन्द सरस्वती के आर्य समाज के सिद्धांन्ता का गहरा प्रभाव था । उनके दादा अर्जुन सिंह को स्वयं दयानन्द सरस्वती ने पवित्र धागा बांधा था। यानि वे आर्य समाज से काफी गहरा तालुक्क रखते थे।
इटालियन कांन्तिकारी मौजिनी और गैरिबल्डी के विचारों प्रभावित होकर 1926 में नौजवान सभा की स्थापना की गई जिसमें भगत सिंह महासचिव बने।
भगतसिंह और उनके साथियों को ये ज्ञान था कि किसी भी क्रान्तिकारी संगठन को सामाजवादी होना चाहिए। इसीलिए उन्होंने अपने क्रान्तिकारी संगठन का नाम Hindustan Republic Association से बदलकर Hindustan Socialist Republic Association कर दिया । फिर शुरू हुआ British सरकार से सीधा लोहा लेने का सिलसिला।
लाहौर केस
1928 में Simon Commission का विरोध करते हुए लाला लाजपत राय को ब्रिटिश सरकार ने लाठी चार्ज का आदेश दिया जिसमें वे घायल हो गए और फिर उनकी मौत हो गई। इस घटना के पीछे पुलिस अधीक्षक जेम्स स्काॅट का हाथ था ।
मौत का बदला
उनकी मौत का बदला लेने के लिए, भगत सिंह ने जय गोपाल, राजगुरु और चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर स्कॉट की हत्या की योजना बनाई, लेकिन गलती से उनके सहायक, जॉन सॉन्डर्स को गोली मार दी। अगले दिन, इसकी जिम्मेदारी लेते हुए पोस्टर जगह-जगह लगाए।
Revolutionaries in India |
असेम्बली में बम
और फिर
8 अप्रैल, 1929 को, भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली में सेंट्रल असेंबली हॉल में एक बम फेंका, जो किसी को मारने का इरादा नहीं था। बल्कि क्रान्तिकारी गतिविधियों को आम जनता तक पहुँचाने के इरादे से इसे फेंका गया था। इस घटना के बाद अंग्रेजों ने भगतसिंह और उनके साथियों को गिरफतार कर लिया । यही तो क्रान्तिकारी चाहते भी थे । इसके बाद ब्रिटिश सरकार उन पर हत्या का केस चलाने लगी क्योंकि इस बीच उन्होंने अंग्रेज अधिकारी की हत्या की थी। जब तक केस चलता रहा भगतसिंह और उनके साथियों के विचार विभिन्न अखबारों के जरिए जनता तक पहुँचाती रहीं और क्रांतिकारियों का जनता का समर्थन मिलने लगा। परिणामस्वरूप, सरकार ने सॉन्डर्स हत्या मामले (जिसे बाद में लाहौर षड्यंत्र मामले के रूप में जाना जाता है) के केस को आगे बढ़ाया, उसे लाहौर की सेंट्रल जेल में स्थानांतरित कर दिया, और बमबारी के मामले में कारावास की सजा सुनाई। यह वह केस था जब देष की बड़ी आबादी क्रांतिकारियों के समर्थन में एक जुट हो चुकी थी । उधर गांधी जी अंहिसात्मक आंदोलन भी जारी था । इस तरह ब्रिटिष सरकार क्रांतिकारियों और गांधी जी के अहिंसात्मक विरोध के कारण दोनों तरफ से दबाव में थी ।
लम्बे समय तक केस चलने के बाद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 7 अक्टूबर 1930 को सॉन्डर्स की हत्या के जुर्म में मौत की सजा सुनाई गई । मगर ब्रिटिष सरकार को यह भय था जनता का जेल में हमला न हो जाए। और शायद इसीलिए निर्धारित समय से 11 घंटे पहले 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में भगतसिंह, राजगुरू और सुखदेव को फांसी पर लटका दिया गया। और राख सतलज नदी में बहा दी गई। भगतसिंह की मौत के बाद देश से क्रांतिकारियों गतिविधियों का अंत तो जरूर हो गया। मगर तब तक देश की जनता जाग चुकी थी। और उसे ब्रिटिश की गुलामी पसंद नहीं थी । वे गांधी जी के साथ हो गई फिर शुरू हुआ विरोध का एक दौर जो 1947 में अंग्रेजों के भारत से जाने के बाद ही खत्म हुआ।
इसे भी पढ़िए गांधीजी एक दर्शन
जानते भगतसिंह के बारे में खास बातें
- वे जब 13 साल के थे तब जलियावाला बांग हत्याकांण्ड हुआ । भगतसिंह स्कूल से भागकर घटना स्थल पहुँचे और वहां की खून से सनी मिट्टी घर लेकर आए और नियमित उसकी पूजा करते रहे।
- जब वे छोटे थे तो अपने खेतों में बंदूके उगाने की बात करते रहे। ताकि वे अंगे्रजों को उन बंदूकों की मदद से भारत से खदेड़ सकें । 8 साल के भगत सिंह कभी अपने बचपन में खिलौने और खेल कूद में नहीं रहते थे बल्कि अंग्रेजों को खदेड़ने के बारे में बात करते थे।
- जब भगत सिंह के माता-पिता चाहते थे कि वे शादी कर लें, जब उन्होंने ये सुना तो भागकर कानपुर आ गए। उन्होंने अपने माता-पिता से कहा कि ’’अगर मैं औपनिवेशिक भारत में शादी करूंगा, जहां ब्रिटिश राज है, तो मेरी दुल्हन मेरी मृत्यु होगी। इसलिए, कोई आराम या सांसारिक इच्छा नहीं है जो मुझे अब लुभा सके । इसके बाद, भगत सिंह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए।
- वे कम उम्र में लेनिन के नेतृत्व वाले समाजवाद और समाजवादी क्रांतियों से प्रभावित थे वे उनके बारे में पढ़ते थे। भगत सिंह ने ब्रिटिश सरकार की दमनात्मक नीति के बारे में बोलते हुए कहा था वे मुझे मार सकते हैं, लेकिन मेरे विचारों को नहीं। वे मेरे शरीर को कुचल सकते हैं, लेकिन मेरी आत्मा को कुचलने में सक्षम नहीं होंगे
- भगत सिंह ने अंग्रेजों से कहा था कि उन्हें फांसी के बजाय गोली मार दिया जाय पर अंग्रेजों ने उनकी इच्छा पूरी नहीं की । उन्होंने अपने अंतिम पत्र में इसका उल्लेख किया है। भगत सिंह ने इस पत्र में लिखा, चूंकि मुझे युद्ध के दौरान गिरफ्तार किया गया था। इसलिए, मुझे फांसी की सजा नहीं दी जा सकती। मुझे तोप के मुंह में डाल दिया जाए। यह उनकी बहादुरी और राष्ट्र के लिए भावना को दर्शाता है।
- भगत सिंह ने जेल में 116 दिन का उपवास किया था। इस दौरान वह अपना सारा काम नियमित रूप से करते थे, जैसे गाना गाना, किताबें पढ़ना, हर दिन कोर्ट जाना, आदि।
शहादत के बाद उनके सहयोगी अशफाक़ उल्लाह खां ने ये चंद लाईन इन क्रांतिकारियों के लिए लिखीं
किये थे काम हमने भी जो कुछ भी हमसे बन पाए,
ये बातें तब की हैं आजाद थे और था शबाब अपनाय
मगर अब तो जो कुछ भी हैं उम्मीदें बस वो तुमसे हैं,
जबां तुम हो, लबे-बाम आ चुका है आफताब अपना।
जाऊंगा खाली हाथ मगर ये दर्द साथ ही जायेगा,
जाने किस दिन हिन्दोस्तान आजाद वतन कहलायेगा?
बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं “फिर आऊंगा, फिर आऊंगा,
फिर आकर के ऐ भारत मां तुझको आजाद कराऊंगा”.
जी करता है मैं भी कह दूँ पर मजहब से बंध जाता हूँ,
मैं मुसलमान हूं पुनर्जन्म की बात नहीं कर पाता हूंय
हां खुदा अगर मिल गया कहीं अपनी झोली फैला दूंगा,
और जन्नत के बदले उससे यक पुनर्जन्म ही माँगूंगा
आज के युवाओं में भगत सिंह, और आजाद की सोच की जरूरत है जो देश को एक नई दिशा दे सके । जैसा कि भगत सिंह ने किया।
कृतज्ञ राष्ट्र भगत सिंह, बुटकेश्वर दत्त, सुखदेव राजगुरू, रामप्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद का हमेशा आभारी रहेगा।