नोबल पुरस्कार चयन समिति फरवरी में इस बात की घोषणा कर देती है कि इस वर्ष किसे नोबल पुरस्कार दिया जाएगा? और एक जानकारी के मुताबिक अमेरिकी स्कूलों में बच्चे इस बात की शर्त लगाते है कि इस बार किस-किस क्षेत्र में किन्हें नोबल पुरस्कार मिल सकता है। इसे जागरूकता कहें या षिक्षा का विस्तार ! यह अलग विषय है।
Mahatma Gandhi |
यह तो सभी जानते ही होगें कि world के सर्वोच्च पुरस्कार के तौर पर नोबल पुरस्कार को ही माना जाता है। जो प्रतिवर्ष छः क्षेत्रों में उम्दा कार्य करने के लिए दिया जाता है।
वे क्षेत्र हैं शान्ति, साहित्य, भौतिकी, रसायन, अर्थ शास्त्र एवं चिकित्सा।
वे क्षेत्र हैं शान्ति, साहित्य, भौतिकी, रसायन, अर्थ शास्त्र एवं चिकित्सा।
2006 में नॉर्वे की नोबेल कमेटी के सचिव गीर ल्यूंडेस्टैड ने कहा था। " बगैर नोबेल पुरस्कार के गांधी बरकरार हैं लेकिन बगैर गांधी के नोबेल कमेटी पर सवालिया निशान जरूर है.।"
इस बातें ने पुरी दुनियाँ में हलचल मचा दी। और फिर तर्क वितर्क का दौर शुरू हो गया।
गांधी जी प्रतिष्ठा और चमक पूरी दुनियाँ में आज भी वैसे ही है जैसे पहले थी । आज उनके विचारों और सिद्धांतों की राह पर चलकर न जानें कितनों को विश्व का प्रतिष्ठित माना जाने वाला पुरस्कार नोबल पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। मगर गांधीजी को नहीं मिला ? आखिर क्यों ?
नोबल शान्ति पुरस्कार के सौ साल से ज्यादा हो चुके हैं और इतिहास में सबसे बड़ी चूक यह रही कि महात्मा गांधी को इससे नहीं नवाजा गया.
वैसे भी, डायनामाइट और हथियारों के आविष्कारक व प्रचारक अल्फ्रेड नोबेल के नाम पर स्थापित एक पुरस्कार अगर गांधीजी को दिया भी जाता, तो क्या गांधीजी इस पुरस्कार को स्वीकार करते? इस प्रश्न पर भी विचार किया जाना चाहिए लेकिन अब तक ऐसा कोई दस्तावेज नहीं मिलता है जिससे पता चले कि नोबेल पुरस्कार को लेकर गांधीजी के खुद के विचार क्या रहे थे ? मगर इतना तो जरूर है उन्हें यह पुरस्कार नहीं मिलेने से विश्व के इस प्रतिष्ठित पुरस्कार की चमक अवश्य फीकी पड़ गई है। गांधीजी की नहीं वे आज भी आर्दश और अंहिसा की प्रतिमूर्ति हैं । उनकी राह पर चलकर लोगों ने कई इबारतें लिखी हैं ।
बहरहाल,
वे क्या वजहें रहीं कि गांधी जी को यह पुरस्कार नहीं मिला। या इस पुरस्कार को गांधीजी नहीं मिले? सच तो यह है कि दुनियाँ में अब भी बहुत कम लोग जानते हैं कि गांधीजी एक या दो नहीं, 5 बार इस पुरस्कार के लिए नॉमिनेट हो चुके थे।
इस ब्लाॅग में यह जानें कि गांधी को ये प्रतिष्ठि अवॉर्ड न मिलने का मतलब क्या है ?
तो पहले एक नजर उन वर्षो पर जब बापू नोबल शान्ति पुरस्कार के लिए नामिनेट हुए थे। और वे तर्क जो गांधीजी के पक्ष- विपक्ष में होेते हैं
1937 में पहली बार हुए थे नामित
पहला मौका था जब गांधीजी नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट हुए लेकिन पुरस्कार न देने का एक तरह से कारण बताते हुए नोबेल कमेटी के सलाहकार प्रोफेसर जैकब वॉर्म म्यूलर ने कहा थावो बेशक एक बेहतरीन और आदर्श व्यक्ति हैं और लोग उन्हें पर्याप्त प्यार और सम्मान देते हैं, जिसके वो हकदार भी हैं. लेकिन, उनकी नीतियों में कई उलट मोड़ दिखते हैं जो संतोषजनक नहीं कहे जा सकते. वो एक ही समय में स्वतंत्रता सेनानी भी हैं और तानाशाह भी, आदर्शवादी भी हैं और राष्ट्रवादी भी. कहीं वो ईसा जैसे मसीहा दिखते हैं तो कहीं एक सामान्य राजनीतिज्ञ.
1938 और 1939 का किस्सा
1938 और 1939 किस्सा कुछ और था वो समय था, जब गांधीवादी आंदोलन अपने चरम पर थे और दुनिया भर में इसके समर्थक बन रहे थे. 1930 के दशक में यूरोप और अमेरिका में एक संस्था बनी थी Friends of India Association. नॉर्वे की लेबर पार्टी के एक नेता ओले कॉर्बजॉर्नसन ने लगातार इन दो सालों में गांधीजी का नाम नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया था, जिसे एसोसिएशन का समर्थन भी हासिल था, लेकिन इन दो सालों में नोबेल कमेटी ने इस नाम को तरजीह नहीं दी
1947 दस साल बाद फिर शॉर्टलिस्ट
भारत को ब्रिटिश राज से आजादी मिली और गांधीजी का नाम दस साल बाद फिर नोबेल कमेटी में शॉर्टलिस्ट किया गया. इस बार गोविंद वल्लभ पंत, जीवी मालवणकर और जीबी खेर की तरफ से नामांकन हुआ था और इस बार के सलाहकार एरप सीप ने म्यूलर की तरह कठोर रिपोर्ट भी नहीं दी थी लेकिन पैनल के प्रमुख गुन्नार जैन ने कहा
ये सही है कि जितने लोग नॉमिनेट हुए हैं, उनमें गांधी सबसे महान हैं. लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि वो सिर्फ शांतिदूत नहीं हैं, बल्कि पहले और बड़े अर्थों में देशभक्त हैं. साथ ही, गांधी कोई दूध के धुले नहीं हैं, वो एक कामयाब वकील भी रह चुके हैं.
1948 में मरणोपरांत!
उस समय तक ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी कि नोबेल पुरस्कार किसी व्यक्ति को मरणोपरांत दिया जा सके. हालांकि हुआ ये था कि 1948 में हत्या से पहले ही गांधीजी फिर नामांकित किए गए थे और हत्या के बाद नोबेल कमेटी ने गंभीरता से उन्हें शांति पुरस्कार देने का मन भी बनाया था. इस बार गांधीजी के जीवन के आखिरी 5 महीनों के जीवन को लेकर सीप ने कहा था
गांधी ने बेशक वो जीवन जिया जिसमें राजनीतिक और नैतिक एटिट्यूड के वो आयाम रहे, जो लंबे समय तक भारत और दुनिया के लिए आदर्श बने रहेंगे. उनके इस जीवन के मद्देनजर कहा जा सकता है कि उनकी हैसियत किसी धर्म के प्रवर्तक से कम नहीं थी.
इसके बावजूद इस साल भी गांधीजी को नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिल सका क्योंकि गांधी का किसी संस्था विशेष के साथ संबंध नहीं पाया गया. उनकी कोई वसीयत और उपयुक्त वारिस नहीं पाया गया, जिसे पुरस्कार की राशि सौंपी जा सके. एक पेंच ये भी था कि नोबेल मरणोपरांत तब दिया जा सकता था, जब कमेटी के फैसले के बाद नॉमिनेट हुए व्यक्ति की मौत हुई हो.
ये थी हक़ीकत
ये तो नोबेल कमेटी के तर्कों और बयानों की बात लेकिन क्या यही हकीकत भी थी कि गांधीजी को नोबेल पुरस्कार नहीं दिया गया.- देखा जाए तो 1960 तक नोबेल पुरस्कार यूरोप और अमेरिका के लोगों को ही ज्यादातर बांटे गए।
- दूसरी बात ये थी कि नोबेल पुरस्कार के लिए जो दायरे बने थे, गांधीजी उन दायरों से बाहर की हस्ती थी. वो एक पैटर्न वाली हस्ती नहीं थे. मसलन, न तो वो पूरी तरह राजनेता थे, न अंतर्राष्ट्रीय कानूनों से जुड़े कार्यकर्ता, न ही मानवतावादी संस्था के कार्यकर्ता और न ही ऐसी किसी संस्था के तहत किसी किस्म के शांति आंदोलन के प्रणेता. उन्हें समझने के लिए नोबेल कमेटी को अपनी परिभाषाओं के दायरे से निकलना था।
- दूसरी बात, कहा जाता है कि नॉर्वे की नोबेल कमेटी ब्रिटिश हुकूमत से किसी किस्म का दुराव नहीं चाहती थी इसलिए भी भारत के उस व्यक्ति को नोबेल नहीं दिया गया जो ब्रिटिश राज के खिलाफ खड़ा था. इसका सबूत ये माना जाता है कि 1961 में दिए गए शांति पुरस्कार के बाद एक बयान सामने आया था कि आखिरकार नोबेल कमेटी को पश्चिमी सभ्यता से बाहर भी कोई दिखा ।
- तीसरी बात, महात्मा गांधी के जीवित रहते ही भारत पाकिस्तान के बंटवारे को लेकर उनके खिलाफ काफी कुछ छपा जिसमें उनके नजरिए को मिसकोट करते हुए भी छापा गया, जिससे दुनिया भर में गांधीजी की छवि को लेकर भी सवाल खड़े भी हुए.
पुरस्कार को लेकर विवाद
1948 में जब गांधीजी को पुरस्कार नहीं दिया गया तब उस साल किसी और को ये अवॉर्ड न देने का फैसला करते हुए कमेटी ने कहा था कि कोई उपयुक्त व्यक्ति नहीं था. इससे पहले भी 1933 में किसी को इस अवॉर्ड के योग्य नहीं माना गया था और ये नोबेल शांति पुरस्कार के शुरूआती 35 सालों में सातवीं बार हुआ था जब पुरस्कार को रिजर्व रख लिया गया था.
इसके अलावा मिखाइल गोर्बाचोव और बराक ओबामा जैसी हस्तियों को शांति पुरस्कार देकर और गांधी के साथ ही एलेनॉर रूजवेल्ट और फज्ले हसन आबेद जैसी हस्तियों को अनेदखा करने की वजह से भी नोबेल शांति पुरस्कार और कमेटी विवादों में घिरती रही.
इसके अलावा मिखाइल गोर्बाचोव और बराक ओबामा जैसी हस्तियों को शांति पुरस्कार देकर और गांधी के साथ ही एलेनॉर रूजवेल्ट और फज्ले हसन आबेद जैसी हस्तियों को अनेदखा करने की वजह से भी नोबेल शांति पुरस्कार और कमेटी विवादों में घिरती रही.
गांधी को नोबेल न मिलने के मायने
जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि गांधीजी को नोबेल न देकर नोबेल पुरस्कार की प्रतिष्ठा पर प्रश्नचिह्न लगता है, न कि गांधीजी के कद पर. रिटायर्ड आईएएस अमिताभ भट्टाचार्य ने एक लेख में लिखा था आधुनिक इतिहास में ऐसा कोई और शख्स नहीं है जो अपने जिंदा रहते इस कदर पूज्यनीय भी रहा हो और इस कदर गलत समझा गया होश्. नोबेल के दुर्भाग्य को आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि गांधीवाद अपनाने वाले कई लोगों को इस पुरस्कार से नवाजा गया और 1989 में जब दलाई लामा को यह पुरस्कार दिया गया, तब खुद नोबेल कमेटी ने कहा था कि श्यह महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि है।
इस बीच दुनियाँ में ऐसे भी हस्तियाँ हुई जिन्होने नोबल पुरस्कार को लेने से इंकार कर दिया। जानते हैं कौन थे वे हस्तियाँ
वे थे जीन पाॅल सतारे, हेनरी किसनेगर और ली डक थो
दादा सहाब फाल्के पुरस्कार की कहानी!
वे जिन्होंने ठुकराया नोबल पुरस्कार
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वे थे जीन पाॅल सतारे, हेनरी किसनेगर और ली डक थो