पूरे देश में 12 जोर्तिलिंग है ।मै बात कर रहा हूँ समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊँचाई पर मौजूद केदारनाथ धाम की ।अकेले उत्तराखण्ड की बात कहें तो भगवान शंकर के 200 से ज्यादा मंदिर हैं । जानते हैं कैसे आप केदारनाथ जा सकते हैं ।
केदारनाथ मंदाकनी नदी के तट पर स्थित उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में गढ़वाल
में मौजूद है। मई से नवम्बर के बीच यानि यह 6 महिने खुला रहता है। मई जून जुलाई अगस्त सितम्बर अक्टूबर नवम्बर । केदारनाथ चारधामों में से एक है और देश में मौजूद 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक यह हैकैसे पहुँचे ?
हवाई मार्ग
हवाई सेवा जोली ग्राण्ट एअर पोर्ट है जो दिल्ली से सीधे आपको ले चलेगी। केदारनाथ से 228 किमी दूर आपको छोड़ देगी। उसके बाद आप कार, बस बाकि सफर तय कर सकते हैं
रेल मार्ग
सबसे नजदीकी रेल्वे स्टेषन रिषिकेष है। कुल मिलाकर गौरी कुण्ड तक आपका सफर तय करना हो तो रिषिकेष सबसे नजदीकी रेल्वे स्टेषन है । रिशिकेश है जो यहाँ से 228 किमी है। दिल्ली से केदारनाथ 460 किमी दूर है ।
सड़क मार्ग
गौरीकुण्ड तक बाईक, कार की सुविधा है। कुल मिलाकर पूरा सफर इस प्रकार आप तय कर सकते हैं । प्रमुख स्टोपेज आपको कुछ ऐसे मिलेंगें।
दिल्ली ,हरिद्वार,रिशिकेश,देवप्रयाग,श्रीनगर,रूद्रप्रयाग, तिलवाड़ा, कुण्ड, गुप्तकाशी सोनप्रयाग,गौरकुण्ड और केदारनाथ धाम। इस तरह 460 किमी दिल्ली से केदारनाथ का सफर है। गौरीकुण्ड से केदारनाथ केवल 16 किमी है जिसे आप पैदल तय करते हैं ।
पंच केदार क्या है
कहते है भगवान शंकर धरती में समाने के बाद पांच जगहों पर उनके चिन्ह देखने को मिले यही पांच जगहें पंचकेदार कहलाती है । ये जगहें है।
तुंगनाथ जहाँ भगवान शिव की बांहें हैं ।
रूद्रनाथ में चेहरा है तो
पेट वाला हिस्सा महामहेश्वर में दिखाई देता है।
जटाएं बाल कल्पेश्वर में
और फिर है केदारनाथ
उक्त चारों तीर्थ स्थान पंच केदार कहलाता है।
निर्माण
निर्माण सबसे पहले इस मंदिर के पीछे पांडवों ने एक मंदिर बनावाया था जो आगे चलकर विलुप्त हो गया ।तब वर्तमान मंदिर 508 ई.पू. से 476 ई.पू. आदि शंकराचार्य ने करवाया ।
मंदिर में आते ही पीछे उनकी समाधि आज भी है। मंदिर का गर्भ गृह इससे भी पुराना है
जो 80 वीं शताब्दी के आसपास का माना जाता है। 10 वीं सदी में इसका जीर्णोद्धार किया गया । यह काम मालवा के राजा भोज ने करवाया था। और फिर 13 सदी में इसका एक बार फिर जीणोद्धार का उल्लेख इतिहास में मिलता है। खास बात दीपावली के दूसरे दिन मंदिर आगामी छ महिनों के लिए बंद हो जाता है और फिर मई के महिने में मंदिर के कपाट जब खोले जाते हैं तो मंदिर वैसा ही साफ सुथरा नजर आता है जैसा इसे छोड़कर रखा गया था। इसमें छः महिने पहले जलाए दीप छ महिने के बाद जलते हुए पाए जाते हैं ।
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