एतिहासिक भवन, पुरातात्विक अवशेष, हरीभरी वादियां, झरने, तालाब,जलप्रपात और जनजातिय संस्कृति देखने में आपकी दिलचस्पी है तो बस्तर आपके लिए सबसे बेहतरीन जगह है। यहाँ सैर-सपाटे की लिए लाजवाब जगह हैं तो अध्ययन के आदिवासी संस्कृति भी है।
जानते है बस्तर में आप किस प्रकार पहुँचे और कहाँ-कहाँ घूमने जा सकते हैं ?
जानते है बस्तर में आप किस प्रकार पहुँचे और कहाँ-कहाँ घूमने जा सकते हैं ?
How to Reach Here?
राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 300 किमी दूर इंद्रवती नदी के तट पर है बस्तर । जगदलपुर से निकटतम हवाई एवं रेल्वे Station विषाखापट्टनम और रायपुर है। वैसे हाल ही में बस्तर में एअर एलिंयास की हवाई सेवा चालू है जो हैदराबाद-जगदलपुर- रायपुर और हैदराबाद-जगदलपुर- रायपुर है । जगदलपुर में नाईट लैण्डिग न होने से कभी -कभी यह रायपुर से सीधे हैदराबाद चली जाती है। बस्तर दर्शन के लिए सबसे बेहतर है आप जिला मुख्यालय जगदलपुर पहले आ जाएं । क्योंकि यहाँ रहने और ठहरने के लिए कई छोटे बड़े बजट के होटल्स उपलब्ध हैं। शाकाहारी होटल्स में
आकांक्षा और नमन बस्तर है तो मांसाहारी होटल्स में रेनबो, और अतिथी है। मै यहाँ पूरे बस्तर संभाग की सैर करवाता हूँ
आकांक्षा और नमन बस्तर है तो मांसाहारी होटल्स में रेनबो, और अतिथी है। मै यहाँ पूरे बस्तर संभाग की सैर करवाता हूँ
जिला मुख्यालय जगदलपुर से शुरूआत करते हैं
जगदलपुर में अगर आप टहलते हुए निकलें तो आपको काकतीय यानि चालुक्य वंशीय राजमहल और राजमहल परिसर में ही मौजूद दंतेश्वरी मंदिर आप देख सकते हैं । फिर आप 14 काकतीय राजा दलपतदेव द्वारा निर्मित उनकी रानी समुद्र देवी के लिए बनाया गया दलपत सागर, यहाँ बस्तर रियासत में बनाया गया कुछ अवशेष ही देखने को मिलेगा। और धरमपुरा में स्थित मानव संग्राहलय आपको देखने को मिलेगा। साथ एक पुराना चर्च है जिसका निर्माण 1936 में हुआ था । यह आज भी अपने मूल रूप में हैं। फिर आप आते हैं ।
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मानव संग्राहालय
इसकी स्थापना 1972 में हुई थी। ये मानव संग्राहालय धरमपुरा में जो चित्रकोट जलप्रपात जाने वाले रास्ते पर है। यहाँ रखे नमूनों और वस्तुओं से आदिवासी जनजीवन के अध्ययन में मदद मिलती है । आदिवासियों द्वारा उपयोग की जाने वाली उपकरणों, बर्तनों , उनके मनोरंजन के साधनों को आप सीधा यहाँ देख सकते हैं। उनके रीतिरिवाजों से संबंधित माडल, और काम में लाए जाने वाले उपकारणों की छायाचित्र और माॅडल देखे जा सकते है। इसके अलावा पुरातत्विक महत्व की चीज़ भी आप यहाँ देख सकते हैं। उड़िसा, आंध्र प्रदेश,महाराष्ट्र के आदिवासियों से जुड़ी जानकारियां भी यहाँ देखने को मिलती हैं । वहीं दूसरी तरफ जिला पुरातत्व संग्राहालय है जिसकी स्थापना 1988 में हुई । इस संग्राहालय में मुख्यरूप से प्रतिमाओं और शिलालेख का संग्रह है जो करूसपाल, केशरपाल, चित्रकोट, छोटे ड़ोगर इत्यादि जगहों से लाए हुए है। एक शहीद पार्क भी है जो देखने लायक है। ये सारी जगहें आप जगदलपुर में देख सकते हैं।
अगर आप शैक्षणिक रिसर्च में दिलचस्पी रखते हैं तो माता रूकमणी सेवा संस्था भी जगदलपुर में एक देखने योग्य जगह है
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान
यहाँ आपको देखने के ये जगहें मिलेगी
झुलना दरहा,
शिवगंगा जलकुंड,
कांगेर करपन गुफा,
कोटेमसर गुफा,
कांगेर धारा,
दंडक गुफा,
भीमकाय वृक्ष,
हाथी पखना,
परेवा बाड़ी जलकुंड,
देवगिरी गुफा,
कैलाश गुफा,
कैलाश झील,
कोटरी बहार झील,
दीवान डोंगरी,
मनारम दृश्य,
भैंसा दरहा झील,
कांगेर खेलाब संगम
खेलाब का विहंगम दृश्य आदि है।
आम लोग कांगेर घाटी में आकर केवल तीरथगढ़ और कोटेमसर घूमकर चले जाते हैं । वन विभाग ने यहाँ घूमने के लिए व्यापक व्यवस्था की है।
बस्तर के जलप्रपात के बारे में विस्तार से पढ़े !
बस्तर के प्रमुख जलप्रपात
बस्तर के प्रमुख जलप्रपात
यहाँ एक बार आएं तो लम्बा प्लान करके आएं ताकि अधिकांश समय इन जगहों को घूमने में बिता सकें । कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान 200 वर्ग किमी के विशाल भूभाग में फैला है । पूरा क्षेत्र समुद्र तल से 38 से 781 ऊँचाई पर स्थित है।
यह हैदराबाद रोड पर है। यहीं पर मिलती है पहाड़ी मैना जो हुबहु मनुष्य की आवाज निकालती है जिसे छत्तीसगढ़ सरकार ने राजकीय पक्षी घोषित किया है। जगदलपुर के वन विद्यालय में इसे प्राकृतिक वातावरण में रखा गया है। कांगेर घाटी का पूरा एरिया घने वनों से ढका हुआ है। इसमें गुफाएं, कंदराएं और जंगली जानवर मिलते हैं । यहा शेर, हिरण,सांभर, तंेदुआ,चीतल भालू और विभिन्न प्रकार के सरीसृप आदि मिलते हैं। यहीं पर मौजूद है भैंसा दरहा जिसे मगर संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है जो कांगेर-खोलाब के संगम पर स्थित है। इसके अलावा कोडरी बहरा-कांगेर संगम पर भी मगरमच्छ पाये जाने की सूचना है। कांगेर घाटी में आने का उपयुक्त समय फरवरी से मई अंत तक का होता है।पर्यटकों के लिए निरीक्षण पाईंट बनाए गये हैं ।
नारायणपाल का एतिहासिक मंदिर
जगदलपुर से 43 किमी दूरी पर चित्रकोट जलप्रपात के मार्ग पर नारायपाल का मंदिर है जिसे छिंदक राजाओं ने 1111 में बनाया ।मंदिर में संरक्षित शिलालेखों से जानकारी मिलती है कि यह क्षेत्र भगवान विष्णु और भगवान लोकेश्वर को दान के तौर पर दिया गया था।
एक टूटे शिलालेख से पता चलता है कि यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित था जिन्हें रूद्रेश्वर कहते थे। छिंदक वंश के राजा सोमेश्वर की माता गुण्डादेवी के अभिलेख मिले हैं । इससे ज्ञात होता है कि यह मंदिर पूर्व में भगवान शिव को समर्पित था और आगामी जो राजाओ ने यहाँ भगवना विष्णु की मूर्ति स्थापित कर दी । जिससे यह विष्णु मंदिर या नारायण मंदिर कहा जाने लगा।
मंदिर एक आठ कोण वाले मंडप में बना हुआ है और इस पर खूबसूरत नक्काशी की मूर्तियां इसमें देखने को मिलेंगी। जो 1111 ई में बनाई गई हैं । पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इसे संरक्षित घोषित किया हैं । 11 सदी की लाजवाब कलाकृति देखने के लिए यहाँ एक बार जरूर आना चाहिए!
मंदिर एक आठ कोण वाले मंडप में बना हुआ है और इस पर खूबसूरत नक्काशी की मूर्तियां इसमें देखने को मिलेंगी। जो 1111 ई में बनाई गई हैं । पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इसे संरक्षित घोषित किया हैं । 11 सदी की लाजवाब कलाकृति देखने के लिए यहाँ एक बार जरूर आना चाहिए!
तीरथ गढ जलप्रपात के बारे में यहाँ पढ़िए Tirathgarh.
नारायण पाल से आगे कुछ दूरी पर विशाल जलप्रपात है । जिसे चित्रकोट जलप्रपात कहते हैं । इस जलप्रपात को छत्तीसगढ़ पर्यटन विभाग ने मिनी ( छोटी) नियाग्रा कहा है ।
यह भारत का सबसे चैड़ा जल प्रपात है जो घोड़े की नाल के आकार में प्राकृतिक रूप से बना है। दिन में इंद्रावती नदी की विशाल धारा को 90 फीट की ऊँचाई से गिरता देखना बड़ा ही रोमांचक अनुभव देता है। और चांदनी रात में इसी सुंदरता और भी बेहतर हो जाती है। रात में इसकी सुंदरता निहारने भारत के राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और रामराथ कोविंद भी यहां ठहर चुके है। जलप्रपात के पास ठहरने के लिए आकर्षक रेस्ट हाऊस बने हुए हैं। यहाँ 14-15 सदी के बने शिव मंदिर हैं साथ ही 13 वीं सदी से लेकर 17 सदी की हनुमान,स्कन्द माता, महिषासुर मर्दिनी, भैरव, योद्धा आदि की मूर्तियां भी प्रपात के समीप देखने को मिलेगी।
शिल्पग्राम
शिल्पग्राम
यह राष्ट्रीय राजमार्ग पर जगदलपुर से 76 किमी दूर है। कोण्डागाँव में मौजूद शिल्पग्राम में घड़वा, लोहा, कांसा, आदि के धातु शिल्प सहित लकड़ी, पत्थर,टेराकोटा और बाँस की उत्कृष्ट एवं कलात्मक बस्तुयें बनती और विक्रय की जाती है। यहा की बनी चीज़ भारत के कोने कोने में तो बिकती साथ ही विदेशों में इसकी अच्छी मांग है।
शिल्पग्राम की बात आती है तो जयदेव बघेल का नाम आना स्वाभाविक है।
जानते हैं कौन है जयदेव बघेल जानते हैं
शिखर सम्मान से सम्मानित जयदेव बघेल इस कला के प्रसिद्ध कलाकार हैं। बस्तर की प्राचीन और परम्परागत शिल्प कला को शिखर तक पहुँचाने का काम उन्होने किया है। उनकी कलाकृतियां देश विदेश के संग्राहालय में रखी हुई हैं। इनकी कई एकल प्रर्दशनी लग चुकी हैं। इन्हें मास्टर क्रफ्टसमैन का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है।
भोंगापाल
एतिहासिक और पुरातात्विक महत्व की जगह है ग्राम भोंगापाल। कोंडगाँव से 51 किमी दूर नारायणपुर और कोंडागाँव मार्ग पर यह स्थित है। यह भोगापाल गाँव नारायणपुर से 25 दूर है। जहाँ मौर्यकालीन अवशेष देखने को मिलते हैं। यहाँ 5 -6 वीं सदी में बने भगवान बुद्ध की आसन लगाए एक प्रतिमा है । उस दौर में बना एक ईटों से निर्मित एक टीला है। इसी टीले के पास सप्तमातृका की प्रतिमा भी है जो कुषाणकालीन लगती है। संभवतः इस जगह पर सिरपुर की तरह एक बौद्ध विहार रहा होगा।
केशकाल
प्राकृतिक नजारों के लिए केषकाल सबसे बेहतर जगह है। यह 5 किमी की लम्बी घाटी है। जो पूरी तरह से हरी भरी वादियों से घिरी है। यह समुद्र तल से 728 मीटर की ऊँचाई पर स्थित हैं । और National Highway 30 पर जगदलपुर से 150 किमी दूर है। सूर्य रौशनी में इसका विहंगम दृष्य और रात में गुजरते वाहनों की लाईटस बहुत ही खूबसूरत दृश्य दिखाती हैं। इसके नाम के पीछे कहते हैं जीवन और मरण के बीच केश यानि बाल का फासला होता है । इसी लिए इसका नाम केशकाल पड़ा होगा। घाटी के बीच तेलीन माता को समर्पित एक मंदिर जहाँ यात्री ठहरकर दर्शन करते हैं और अपना सफर जारी रखते हैं।
यही 12 किमी दूर एक पुरातात्विक महत्व का एक गांव है जिसका नाम है गढ़ धनोरा। यहाँ मौजूद कई मंदिर खुदाई में मिले हैं। रायबहादुर बैजनाथ पण्डा (1908-10) ने यहाँ एक टीले की सफाई करवाई तो ईटों से बना एक शिव मंदिर मिला है। फिर अनेक टीलों की सफाई हुई तो विष्णुमंदिरों का समूह, मोबरहीनपारा मंदिर समूह,बंजारिन मंदिर समूह आदि मिले।
यही 12 किमी दूर एक पुरातात्विक महत्व का एक गांव है जिसका नाम है गढ़ धनोरा। यहाँ मौजूद कई मंदिर खुदाई में मिले हैं। रायबहादुर बैजनाथ पण्डा (1908-10) ने यहाँ एक टीले की सफाई करवाई तो ईटों से बना एक शिव मंदिर मिला है। फिर अनेक टीलों की सफाई हुई तो विष्णुमंदिरों का समूह, मोबरहीनपारा मंदिर समूह,बंजारिन मंदिर समूह आदि मिले।
.बारसूर का बत्तीसा मंदिर
यहाँ एक तरफ सात धार नाम जलधारा है तो दूसरी तरफ पुराने स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने दर्शाते मंदिर भी हैं ।
यह स्थल एंतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टिकोण से बस्तर का महत्वपूर्ण स्थान है। प्रचीन अभिलेखों से ज्ञात होता है यह प्राचीन समय में चक्रकोट या भ्रमर कोट्स कहा जाता था। बारसूर में नागवंषीय अवषेषों से पता चलता है कि इस समय धर्म, दर्षन तथा स्थापत्यकला की बहुत उन्नत थी। ऐसा मानना है कि केवल बारसूर में ही 147 मंदिर एवं इतने ही तालाब थे किन्तु आज यहाँ नागयुगीन तीन मंदिर मामा-भांजा मंदिर,बत्तीसा मंदिर, चन्द्रादित्येश्वर मंदिर यथावत् हैं । यहां एक पुराततव संग्रहालय है जिसमें बारसूर के आसपास खुदाई से प्राप्त प्राचीन पुरावशेष रखें हैं ।
ढोलकाल गणेश प्रतिमा । जो एक हजार साल पुरानी है यह 2 हजार 594 फीट की ऊँचाई पर बैलाडीला की पहाड़ियों में स्थित है। यहाँ की नैसर्गिक सुंदरता देखते ही बनती है। कहते हैं इसे छिंदक नागवंशीय राजाओं ने बनवाया था।
पर्यटक जब भी बारसूर आते है तो यहां 10 वीं सदी में बने मंदिरों को निहारने अवष्य आते हैं जिनमें मामा भांजा का मंदिर, विषालकाय गणेष प्रतिमा तो है ही साथ यह स्थित है बारसूर का बत्तीसा मंदिर ।
मंदिर की एक झलक
बारसूर के संयुक्त मंडप के इस मंदिर की खासियत यह है कि इसमें दो गर्भगृह है। और इसी लिए बारसूर का बत्तीसा मंदिर बस्तर के सभी मंदिरों में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। बारसूर नाग वंशीय प्राचीन मंदिरों के लिये पुरे छत्तीसगढ़ में प्रसिद्ध है। यहां के मंदिरों की स्थापत्य कला बस्तर के अन्य मंदिरों से श्रेष्ठ है। ये मंदिर नागर शैली में बनाया गए हैं ।
वीर सोमेश्वर एवं गंगाधरेश्वर नामक दो शिवालयों का संयुक्त मंडप वाला यह मंदिर..बारसूर का बत्तीसा मंदिर........कहलाता है।
वीर सोमेश्वर एवं गंगाधरेश्वर नामक दो शिवालयों का संयुक्त मंडप वाला यह मंदिर..बारसूर का बत्तीसा मंदिर........कहलाता है।
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