छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले का गढ़बेंगाल, वहां का निवासी चेंदरू अपने अद्भुत षौर्य का परिचय देते हुए भारत ही नहीं वरन् पूरी दुनिया में बस्तर का नाम रौषन किया। आदिवासी अंचल का एक 10 वर्षीय बालक चेंदरू राम मंडावी ने विदेषी फिल्म में वह अनूठा कारनामा कर दिखाया जो आज तक किसी ने नहीं किया। 1955 में प्रारंभ हुई स्वीडिष फिल्म एन द जंगल सागा (En the Jungle Saga)में बतौर मुख्य भूमिका निभाने वाला अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म का नायक चेंदरू, बाघों और तेंदुओं के बीच रहकर मानव और वन्यप्राणियों के बीच रहकर मानवता का परिचय दिया। चेंदरू वह शख्स था जिसने 10 वर्ष की उम्र में फिल्म में काम किया था उसके बाद आज तक किसी अन्तरराष्ट्रीय फिल्मों में छत्तीसगढ़ के किसी नायक को इतनी प्रसिद्धि नहीं मिली। छत्तीसगढ़ का मोंगली, बस्तर का टाइगर ब्वाय के नाम से परिचित, अन्तरराष्ट्रीय हीरो आज हमारे बीच नहीं रहा। 18 सितम्बर 2013 को 78 वर्ष की उम्र में, सदा-सदा के लिए अनंत यात्रा पर चला गया। एक शेरदिल इंसान के नाम से मशहूर और अपनी पहचान रखने वाला चेंदरू मंडावी पंच-तत्व में विलीन हो गया। समय के फेर ने इस महान हस्ती को खूब छकाया, उसका परिवार बिखर कर रह गया। चेंदरु को छोड़कर भाई बहन सब अलग अलग रहने लगे। सबसे छोटा बेटा जयराम ही उसके साथ था। फिल्म निर्माता अर्न सक्सड्रोर्फ की पत्नी ‘‘एस्ट्रिड’’ ने चेंदरू और बाघ की दोस्ती पर ‘‘वाय सू अमिगो एल टाइगर’’ नाम से पुस्तक लिखी थी. स्वीडिश भाषा में लिखी गई इस पुस्तक का न्यूयार्क के एक प्रकाशक हारकोर्ट ब्रेश ने विलियम सेनसम के सहयोग से इसका अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित किया. स्वीडिश फिल्मकार अर्न सक्सड्रोर्फ की पत्नी व स्वीडिश पर्यटक स्टेन बर्गमेन की बेटी एस्ट्रीड सक्सड्रोर्फ ने ‘‘चेंदरू’’ नाम से पुस्तक पहली बार स्वीडिश भाषा में 1959 में डेनमार्क से फिर उसके बाद चेंदरू द ब्वाय एंड द टाइगर के नाम से विलियम सेनसम ने अंग्रेजी भाषा में 1960 में पुस्तक प्रकाशित की. इसके अलावा चेंदरू और बाघ पर लंदन पैलेस के कोलिंस स्टीफन जेम्स ने एक फोटो फीचर भी बनाया था, इस पुस्तक का प्रकाशन पहली बार फ्रांस में किया गया.पं. जवाहर लाल नेहरु ने चेंदरु के उच्च शिक्षा के लिए प्रस्ताव रखा था।
चेंदरू पर प्रकाशित बेस्टसेलर किताब द ब्वाय एण्ड द टाइगर (The Boy and the Tiger) अन्तरराष्ट्रीय बाजार में आज भी मंहगी बिकती है। चेंदरू के बारे में अंग्रेजी तथा स्वीडिश भाषाओं में पुस्तक प्रकाशित हुई । फिल्म निर्माता की पत्नी एस्ट्रिड ने चेंदरू और बाघ की दोस्ती पर ‘‘वाय सू अमिगो एल टाइगर’’ नाम से स्वीडिश भाषा में 1959 में पुस्तक लिखी तथा बाद में चेंदरू बॉय एण्ड द टाइगर के नाम से विलियम सेनसम ने अंग्रेजी भाषा में 1960 में पुस्तक प्रकाशित की।
चेंदरु उस चमक-दमक की दुनिया से अपने गांव लौटा तो उसके पास था कुछ मंहगी घड़िया, कैमरा, कुछ पैसे तथा उसके उपर फिल्माई गई फिल्म की सी.डी. और किताबें। लो उसकी एक झलक पाना चाहते थे। उसके घर पर लोगों का हजुम लगा रहता। मुलाकातियों ने उससे उसका सारा सामान लौटा देने का भरोसा दिखा कर सब कुछ लूट लिया। लोगों ने जमकर उसका भरोसा तोड़ा और अपना उल्लू सीधा कर लिया। अपना परिचय देने के लिए भी प्रमाण नहीं बचा पाया। समय के फेर ने उसे दिहाड़ी मजदूर बना कर पेट पालने के लिए मजबूर कर दिया। जिंदगी के शेष दिन उसने गरीबी में काटे। पक्षाघात ने चेंदरू तथा उसके परिवार को और भी मुश्किल में डाल दिया । कभी नाराणपुर, रायपुर और कभी जगदलपुर के अस्पतालों में इलाज कराता रहा, किन्तु छत्तीसगढ़ का मोंगली, बस्तर का टाइगर ब्वाय के नाम से परिचित, अन्तरराष्ट्रीय हीरो हमारे बीच नहीं रहा। 18 सितम्बर 2013 को 78 वर्ष की उम्र में, सदा-सदा के लिए अनंत यात्रा पर चला गया। एक शेरदिल इंसान के नाम से मशहूर और अपनी पहचान रखने वाला चेंदरू मंडावी पंच-तत्व में विलीन हो
चेंदरू कोे अपनी गाँव की माटी पर जीना और मरना पसंद था, उसने वही किया। चेंदरू ने अपनों के बीच प्राण त्याग दिया, अन्यथा चेंदरू जैसे लोग तो अक्सर सड़क पर भी मर जाया करते हैं. चेंदरू के निधन के साथ ही एक बेहतरीन कालखण्ड भी काल के गर्त में समा गया, रह गई धुंधली सी तस्वीर। अब स्मृति ही शेष रह गई है। चेंदरू के परिवार में उसका बड़ा पुत्र शंकर जो सफल लोक चित्रकार के रूप में उभर कर सामने आया है, पिता के गुजर जाने के बाद आदिम कलाओं की पेंटिंग बनाता है। इस कलाकार ने भोपाल स्थित भारत भवन में अपनी कलाकृतियों का भी प्रदर्शन किया है। इसके अलावा समय-समय पर जगदलपुर स्थित मानव विज्ञान संग्रहालय में भी अपनी कला का जादू बिखेर चुका है।
एक बेहद सफल, बेहद चर्चित अंतरराष्ट्रीय फिल्म के हीरो चेंदरू के जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा गुमनामियों में बीता, कोई नहीं जानता था कि बस्तर के घने जंगलों में बीच एक छोटे से गाँव की झोपड़ी में वह हस्ती रहता है। फिल्मी दुनिया की चमक-दमक जिसके लिए दुनिया के महान हस्तियों ने महानगरों में अपनी बाहें पसार रखी थी, उन सबसे परे, चेंदरू ने गढ़बेंगाल में अपने परिवारजनों की अंगुलियाँ थाम ली थी ।
नौकरी नहीं मिली
किसी तरह नारायणपुर से ही 12 वीं तक की शिक्षा प्राप्त कर लिया। आगे की पढ़ाई छोड़कर पेट के लिए मजदूरी करने लगा। कार्यालयों का चक्कर लगाता रहा, लेकिन उसके बाद भी कोई नौकरी नहीं मिली। चेंदरु अपने बेटे को लेकर किसी भी विभाग में चपरासी की नौकरी मांगने कलेक्टर, कमिश्नर के कार्यालयों का चक्कर लगाता रहा। किस्मत ने वहां भी साथ न दिया। थोड़ी बहुत खेती थी लेकिन फांके की जिंदगी में वह क्या कर पाता। एक दिन गांव में खूब जोरों की बारिस हुई। किसी ने बताया कि बादल फट गया और घर के पास बहने वाली कुकुर नदी में अचानक बाढ़, पानी का रेला ऐसा आया कि चेंदरु की जिंदगी तबाह हो गई। बाढ़ ने उसके परिवार के सदस्यों को बहा ले गया, घर-द्वार, उसके पाले हुए जानवर सब कुछ बह गया। वह बेघर हो गया। किसी तरह हिम्मत न हारते हुए वह आवास प्लाट में रहने लगा। फिर चेंदरु जब बीमार पड़ा तो कोई मदद के लिए आगे नहीं आया। जयराम के किसी परिचित ने जगदलपुर के महारानी हास्पिटल में भर्ती करवाया। स्थानीय विधायक केदार कश्यप ने यथायोग्य मदद भी की, लेकिन होनी को कौन टाल सकता है।
चेंदरु बीमारियों से संघर्ष करता रहा, लड़ता रहा और एक दिन अपने ही गांव, अपने ही माटी में परिवाजनों को सदा-सदा के लिए छोड़ कर चला गया।चेंदरु ने अन्तरराष्ट्रीय पटल पर भारत का नाम रौशन किया। छत्तीसगढ़ का नाम रौशन किया, उसने नारायणपुर गढ़बेंगाल का नाम रौशन किया, अपने परिवार का नाम रौशन किया। कुछ लोगों ने उसे प्रशासन की राह दिखा कर इतिश्री कर लिया। आज उसे जो सम्मान मिलना चाहिए था उसे नहीं मिला। प्रश्न यह है कि यदि भविष्य में उसे जो सम्मान मिल भी गया तो क्या वह भारत का, राज्य का, जिले का, उसके परिवार का सम्मान नहीं होगा ? राज्य शासन, जिला प्रशासन 1960 के दशक में स्वीडिश तथा अंग्रेजी भाषा में चेंदरु के नाम से जो किताबें प्रकाशित हुई थी उसे हिंदी, हल्बी, तथा गोंडी भाषा-बोली पर किताब प्रकाशित करवाए तथा उसकी फिल्म को तत्काल संरक्षित करवाया जावे साथ ही बस्तर के प्राथमिक शालाओं में चेंदरु के बारे में एक पाठ, पाठ्यक्रम में शामिल करवाया जावे, ताकि आने वाली पीढ़ी को चेंदरु सेे अवगत कराया जा सके। यही उसके तथा उसके परिवारजनों का वास्तविक सम्मान होगा।
जिन देशों में फिल्म रिलीज़ हुई
गढ़बेंगाल के बीहड़ों में रहने वाला 10 वर्षीय चेंदरू के उपर बतौर नायक फिल्म, रावघाट तथा गढ़बेंगाल के समीप बहने वाली कुकुर नदी के प्राकृतिक सौन्दर्य व दृश्यों को लेकर फिल्म तैयार की गई थी. उस फिल्म की शुरूआत 1955 में प्रारंभ हुआ तथा फिल्म निर्माण में लगभग दो वर्ष का समय लगा. इस फिल्म में लगभग 10 बाघ और छः तेंदुओं को लेकर फिल्माकंन किया गया था. निर्माण के पश्चात् फिल्म पहली बार स्वीडन में 26 दिसम्बर 1957 में फिल्म दिखाया गया. यह फिल्म पांच रील और 88 मिनट की बनकर तैयार हुई. वर्ष 1958 में कांस फिल्म फेस्टिवल में भी इसे प्रर्दशित किया गया था.
स्वीडन में दिखाए जाने के बाद
फीनलैण्ड में 13 मार्च 1959 को, डेनमार्क में 13 अक्टूबर 1959 को, वेस्ट जर्मनी में 27 अक्टूबर 1959 को, आस्ट्रीया में नवम्बर 1959, मेक्सिको में 26 दिसम्बर 1963 में रिलीज हुई
दुनिया के विभिन्न देशों में इस फिल्म की कई भाषाओं में फिल्म तैयार और प्रदर्शित हुई उनमें से प्रमुख रूप से -
आस्ट्रीया में DSCHUNGEL SAGA
ब्राजील में DSCHUNGEL SAGA
डेनमार्क में En Jungle Saga
फिनलैण्ड में Viidakkota ru
फ्रांस में L'arc et la Flute
इटली में La Freccia e il leopardo
मेक्सिको में La Flecha y el Leopardo
यू.एस.ए. में The Flute and the Arrow
वेस्ट जर्मनी में DSCHUNGEL SAGA के नाम से प्रदर्शित हुई.
चेंदरू पर पुस्तक
कुछ समय के बाद, प्रमोद कुमार एवं निलीमा माथुर ने चेंदरू की जीवनी पर एक और डाक्यूमेंट्री फिल्म ‘‘जंगल ड्रीम्स’’ बनाई. इस फिल्म में चेंदरू अपने अतीत के पन्नों को पलटते हुए बताया है कि जब वह स्वीडन से मुम्बई के रास्ते भारत लौटा तो भारत के तत्कालिन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से चेंदरू की मुलाकात हुई, जवाहर लाल नेहरू जी ने चेंदरू पर बनी फिल्म की प्रसिद्धि सुन रखी थी. उन्होनें चेंदरू से कहा था कि मुंबई में रहकर उच्च शिक्षा प्राप्त करे, जिसके लिए वे हर संभव मदद करेंगे. इस प्रस्ताव को चेंदरू के पिता ने चेंदरू के चाहते हुए भी अस्वीकार कर दिया था. उसके पिता को लगा कि उसके आखों का तारा न जाने किस दुनिया में जाकर शिक्षा ग्रहण करेगा. बाहरी दुनिया की चकाचौंध से दूर गढ़बेंगाल गाँव से चेंदरू और उसका परिवार कभी बाहर नहीं गया, उसके पिता चेंदरू को कैसे बम्बई भेजते. घर में कौन रहेगा 1960 के दशक में अबूझमाड़ का एक बच्चा बम्बई जाकर पढे़, ये बहुत बड़ी बात थी, और तब जब उसे गोंडी के अलावा हिन्दी नहीं आती थी. काश चेंदरु के पिता , नेहरु जी की बात मान लेते तो चेंदरु पढ़ लिखकर कुछ और बन जाता। आज चेंदरु नहीं है किन्तु उसकी पत्नी रैनी बाई अपने पोते और पोतियों की पढ़ाई-लिखाई पर जोर देती है। बस्तर के तत्कालिन संभागायुक्त श्री श्याम धावड़े नारायणपुर प्रवास के दौरान, चेंदरू के परिवार से मुलाकात की। उनके सामने चेंदरू की पत्नी ने अपनी समस्या से अवगत कराया। उसने अपने पोते-पोतियों के शिक्षा के लिए आयुक्त महोदय से निवेदन किया तथा अपनी शिक्षित बहू के लिए आंगनबाड़ी में परिचारिका की नौकरी । आयुक्त ने उसके संबंध में यथासंभव प्रयास भी किया। वह चाहती है कि उसके परिवार में कोई पढ़-लिखकर आगे बढ़े। आज उसकी पोती आठंवी में तथा पोता चौथी कक्षा में अध्ययनरत है।
चेंदरू जब विदेश से लौट कर आया तो उसके पास बहुत कुछ था किन्तु लोगों ने सब कुछ लूट लिया। घर के पास ही बहती कुकुर नदी और उस पार उसका खेत था। वह दिन भर खेतों में काम करता और आगन्तुकों से मेल-मिलाप करने से बचता था। लोग उसे एक बार देखने के लिए उसके घर गड़बेंगाल जा पहुंचते थे। लोग चेंदरू से एक ही सवाल पूछते जिससे उब कर वह लोगों से मिलना-जुलना बंद कर दिया।
1910 में बादल फटने से अचानक आई बाढ़ से उसके परिवार के तीन सदस्य बह गये। उसके घर का अनाज, पालतू पशु सब कुछ बह गया। किसी तरह जान बची किन्तु तब तक सब कुछ तबाह हो चुका था। उसे नारायणपुर के खाली पड़े प्लाट पर उसके गांव वालों के साथ आवास के लिए सुविधाएं दी गई किन्तु वह भी तात्कालिक व्यवस्था के अन्तर्गत। मूलभूत सुविधा न होने से बसाये गये सभी लोगों ने अस्थाई घर छोड़ कर जंगलों के बीच जा बसे। तब से लेकर आज तक एक अदद आवास के लिए चेंदरू का परिवार भटकता फिर रहा है। पहाड़ की तलहटी पर अस्थाई घर बनाकर चेंदरू का पुत्र जयराम और उसकी पत्नी रैनी बाई रहते हैं किन्तु वर्षा के दिनों में बारिश का पानी और कीचड़ से भर जाता है। रात-दिन जंगली जानवरों का डर अलग। वह स्थानीय प्रशासन से इंदिरा आवास के लिए कई बार गुहार लगा चुका है। हाल ही में नारायणपुर के एक कलाकार ने राष्ट्रपति भवन में टायगर ब्वाय चेंदरू की पेंटिंग का प्रदर्शन किया । उसे राष्ट्रपति महोदया की ओर से प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया। भले ही चेंदरू की ख्याति सात समुंदर पार और पूरे भारत में मिलि हो किन्तु उसके परिवार जनों को सिर छुपाने की जगह नही मिली। आज चेंदरू की पत्नी और उसका छोटा बेटा शासन प्रशासन से इंदिरा आवास के लिए गुहार लगाता फिर रहा है ।
बस्तर का टाइगर ब्वाय- चेंदरु
11/25/2024
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