त्वरित टिप्पणी। सुरेश महापात्र (Editor- cgimpact.org)
हिंदुस्तान ने अपना फैसला सुना दिया है। जनादेश का पिटारा खुलने के पहले लगाए जा रहे सारे कयास विफल हो चुके हैं। हिंदुस्तान में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार बनना तय है। इसे बहुमत से मात्र 23 सीटे ज्यादा हासिल हुई हैं। पर यह बढ़त सरकार चलाने के लिए पर्याप्त है। विपक्ष के गठबंधन को करीब 235 सीटें मिलती दिख रही हैं।
यानी बेहद मजबूत विपक्ष की भूमिका के साथ अब 'मोदी सरकार' की जगह “एनडीए सरकार” अपना काम करेगी। मोदी सरकार का नारा भारतीय जनता पार्टी ने दिया था। पार्टी की उम्मीदें बहुत बड़ीं थीं। लक्ष्य 370 सीटों को अपने दम पर हासिल करने का रहा। यह लक्ष्य 2019 के चुनाव से काफी ज्यादा बड़ा था। पूरे देश से मिला जुला परिणाम देखने को मिला है।
भाजपा को 2019 में हासिल 37.36 प्रतिशत के मुकाबले 36.66 प्रतिशत करीब एक प्रतिशत कम मत प्राप्त हुए हैं वहीं कांग्रेस को व्यक्तिगत तौर पर 2019 के 19.51 प्रतिशत के मुकाबले 21.31 करीब पौने दो प्रतिशत मत ज्यादा मिले हैं। यह चुनाव परिणाम कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण है। पहला यह कि हिंदुस्तान में लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री चुने जाने का गौरव आजादी के बाद केवल जवाहर लाल नेहरू के नाम था। उन्होंने लगातार तीन चुनाव में पूर्ण बहुमत के साथ जीत हासिल की थी।
इसके बाद यह रिकार्ड अब नरेंद्र मोदी के नाम दर्ज होगा कि वे लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री चुने जाएंगे। हांलाकि यदि यह भाजपा की पूर्ण बहुमत के साथ जीत वाली सरकार होती तो उनका गौरव और भी ज्यादा बड़ा होता!
तीसरी बार नरेंद्र मोदी पीएम तो बनेंगे पर उनके साथ एनडीए गठबंधन का संतुलन बनाए रखने की जिम्मेदारी साथ होगी। विपक्ष पहले से ज्यादा मजबूत होगा तो कई बड़े फैसलों के लिए अटल जी की भूमिका निभाने की बारी होगी।
वैसे 2024 का यह चुनाव एक प्रकार से देखा जाए तो राजनीति की चाणक्य नीति में साम, दाम, दंड और भेद की कूटनीति के साथ लड़े जाने की प्रक्रिया के खिलाफ जनादेश जैसा भी है।
पूरे देश में इस बार के चुनाव परिणाम इन चार सूत्रों साम, दाम, दंड और भेद की हार को भी रेखांकित करते हैं। श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में जहां भाजपा सरकार के कार्यकाल में श्रीराम मंदिर का फैसला कोर्ट ने सुनाया, पीएम नरेंद्र मोदी ने श्रीराम मंदिर के लिए भूमिपूजन किया और इसी साल 22 जनवरी को अर्धनिर्मित मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा भी कर दी।
उसके बावजूद अयोध्या की लोकसभा सीट में सत्तारूढ़ भाजपा का पराजित होना कई संकेत दे रहे हैं। वाराणसी की हाई प्रोफाइल सीट जहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार निर्वाचित हुए हैं वहां हार—जीत के बीच का फासला प्रधानमंत्री की गरिमा के अनुकूल नहीं है।
एक प्रकार से देखा जाए तो भारतीय लोकतंत्र में यह प्रखर जनादेश है। इस जनादेश के मायने तो निकाले ही जाएंगे पर यह साफ हो गया है कि एक राष्ट्र एक दल जैसी परिकल्पना के खिलाफ जनता खुलकर सामने आई है। एक सरकार के तौर पर भाजपा की सरकार को मौका दिया है पर छुट्टा सांढ बनाने की जगह नकेल भी कसा है।
विपक्ष को संसद में आवाज बुलंद करने लायक ही छोड़ा है। भारतीय लोकतंत्र में निरंकुशता के खिलाफ यह आंशिक आपातकाल का संकेत मात्र है। यह भी समझा जा सकता है कि महज डेढ़ प्रतिशत मत के फासले से जनता ने जमीनी मुद्दों की ओर सरकार को लौटने का आदेश दिया है...!