आम तौर पर बच्चों के कार्यक्रमों में पालक-अभिभावक उसी समय तक शिरकत करते हैं जब तक उनके बच्चे कार्यक्रमों में भागीदार रहते हैं और फिर उनके बच्चों के कार्यक्रम की समाप्ति के साथ ही वे बच्चों को लेकर अपने घर के लिए निकल पड़ते हैं। ये मेरा अपना व्यक्तिगत अनुभव है।
मगर संस्कार द गुरूकुल इंटरनेश्न स्कूल का लर्न बाय फन कार्यक्रम में ऐसा नहीं हुआ । सभी कार्यक्रम के अंत तक डटे रहे और बच्चों की प्रतिभा देखकर अचंभित होते रहे।
क्या था कार्यक्रम
पिछले दिनों चेड़ई पदर के संस्कार द गुरूकुल इंटरनैश्नल स्कूल के आमंत्रण पर मै गया था। हालांकि एक पालक के साथ था मगर जिस कार्यक्रम में शामिल होने बुलाया गया था उसका विषय मुझे दिलचस्प लगा । इस शिक्षण पद्धति द्वारा संस्कार के सजे-धजे हाल में बच्चों को उनके विषयों का ज्ञान दिया जा रहा था , यह एक क्विज कार्यक्रम की तरह था। माता-पिता पालक-अभिभाव इसमें भाग लेने वाले बच्चों से सीधा माईक लेकर प्रश्न पूछ रहे थे जो उनके कोर्स में था।
मेरी बातचीत संस्कार के जूनिअर कोआर्डिनेटर प्रीति से हुई तो उन्होंने जो जानकारी दी उसके मुताबिक लर्न बाय फन एक शैक्षिक सोच है -खासतौर पर जूनिअर गु्रप के छात्रों के लिए । उनके सीखाने की पद्धति को यह आकर्षक, मनोरंजक और इंटरैक्टिव बनाता है।
उन्होने आगे बताया यह इस विचार पर आधारित है कि किसी चीज को सीखना हो तो उसे खेल बनाकर सीखें । इससे जाहिर तौर पर उसे सीखने की ललक होगी । ठीक उसीतरह जिस तरह हम खेल -खेल में कई चीजें सीखते । यही है लर्न बाय फन!
इसमें एक कान्सेप्ट काम करता है कि जब बच्चे खुशी या आंनन्द के मूड में होते हैं तो उनमें एकाग्रता और जानकारी को बनाए रखने की संभावना अधिक होती है।
इसका असर भी देखने को मिलता है । अभिभावक शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय घाटलोंहगा की लेक्चरर रीना परिहार बताती है कि उनकी बेटी संस्कार में एल के जी से पढ़ रही है और इस कार्यक्रम में हिस्सा लेती आ रही है । यह हर साल होता है । इस कार्यक्रम में हिस्सा बनने के बाद बच्ची में गजब का आत्मविश्वास जागा है। बच्ची हर चीज को याद करने और उसे पै्रक्टिकल तौर पर समझने के काबिल हुई ।
दूसरी तरफ जगदलपुर के रूपेश चौधरी बताते हैं कि इस पद्धति के बुते उसके बच्चे के व्यक्तित्व में बदलाव आया है । पहले वह बोलने हिचकिचाता था अब वह पूरे आत्मविश्वास से बोल पाता है।
कैसे हुआ यह सब
इस बारे में जानकरी देते हुए संस्कार द गुरूकुल इंटरनेश्नल स्कूल के निदेशक अमित जैन बताते हैं कि सीखने की चीज़ों को और अधिक मजेदार बनाने के लिए अक्सर खेल, पहेलियाँ, क्विज और अन्य इंटरैक्टिव गतिविधियों का उपयोग होता है। इसका उपयोग अलग-अलग तौर पर किया जा सकता है। मसलन,पारंपरिक कक्षाओं से लेकर ऑनलाइन माध्यमों का सहारा लेना।
दूसरी तरफ ,चीजों को याद रखने और बच्चों के साईकोलोजी पर वर्षाे से काम करते आ रहे धीरेन्द्र पटनायक बताते हैं कि कोई भी इंसान किसी चीज को तीन तरीके से सीखता है ।
सुनकर, देखकर और छूकर यानि महसूस करके
लर्न बाई फन इन्ही माध्यमों का सहारा लेकर बच्चों को उनके विषय का ज्ञान देता है। विभिन्न आयु, सीखने की शैली और विषय क्षेत्रों के अनुरूप लर्न बाय फन शिक्षण पद्धति से बच्चों को सीखाया जा सकता है।
द लर्न बाय फन का दृष्टिकोण मानता है कि सीखना एक काम नहीं है, बल्कि एक मजेदार और पुरस्कृत अनुभव हो सकता है। जो जिज्ञासा, रचनात्मकता और महत्वपूर्ण सोच तथा कौशल को बढ़ावा देता है। इसका अनुभव करने के लिए एक बार अपने बच्चों के साथ संस्कार अवश्य जाना चाहिए!