आज एक ऐसी अभिनेत्री के बारे में बात करते है जिसे फिल्म में नायर का किरदार निभाने पर बड़ी सजा मिली । घर जला दिया गया , स्क्रीन पर पत्थर फेंके गए। और बाकि की ज़िदगी उसे तमिल नाडू में गुमनामी में बिताना पड़ा । ठीक मुम्बईया फिल्म की कहानी की तरह।
मिथुन चक्रवर्ती की एक फिल्म आई थी जिसमें एक साधरण गांव की लड़की फिल्म की नायिका बनती है और स्टारडम के बीच वह वापस अपने गांव आना चाहती है मगर उसका स्टारडम रोके रखता है और फिर बड़ी जद्दोजहज के बीच वह अपने गांव वापस आती है और फिर वही साधरण ज़िदगी जीने लगती है जिसे वह छोड़कर गई थी।
मिथुन चक्रवर्ती की एक फिल्म आई थी जिसमें एक साधरण गांव की लड़की फिल्म की नायिका बनती है और स्टारडम के बीच वह वापस अपने गांव आना चाहती है मगर उसका स्टारडम रोके रखता है और फिर बड़ी जद्दोजहज के बीच वह अपने गांव वापस आती है और फिर वही साधरण ज़िदगी जीने लगती है जिसे वह छोड़कर गई थी।
मगर इसके लिए उसे दुनियां की नजरों में मृत होना पडता है । खैर यह तो कहानी है। मगर यही कहानी संभवतः प्रेरित है 1903 में जन्मी पी.के. रोजी (राजम्मा, रोसम्मा, राजम्मल) मलयालम सिनेमा की पहली अभिनेत्री की । जिसे गूगल डूडल ने जगह दी है।
मलयालम सिनेमा की पहली अभिनेत्री
बात मलयालम सिनेमा की पहली अभिनेत्री पी.के. रोजी (P.K.Rosy)की है। वह विगाथाकुमारन (Vigathakumaran) यानि द लास्ट चाइल्ड (Last Child) फिल्म की अभिनेत्री थी। जिसके निर्देशक जे सी डेनियल थे । यह बात उस जमाने की है जब महिलाओं का फिल्मों में अभिनय करना अच्छा नहीं माना जाता था और जो यह काम करने का बीड़ा उठाता उसे कामुक या घराब चरित्र का दर्जा समाज देता था । ऐसे माहौल से गुजरकर पीके रोजी ने इसे अंजाम दिया ।
वह अभिनय में अपनी दिलचस्पी की वजह से फिल्मों में आईं । उसके चाचा ने उसे प्रोत्साहित किया। संगीत अभिनय के लिए शिक्षक की व्यवस्था की । उन दिनों रोजी शिव-पार्वती के पृथ्वी पर आने की कथा के मंचीय कार्यक्रम में हिस्सा लेती थी जो काकरसी नट्टकम नामक नाट्य स्कूल द्वारा संचालित होता था। यह कार्यक्रम तमिल-मलायालम का मिश्रण था। लगातार विरोध और अपनी अभिनय में रूचि के बीच वह लगातार झूलती रहीं ।
प्रारंभिक जीवन
उसका नाम राजम्मा था (बाद मे वह रोजी बनी ) और उसका जन्म 1903 में नंदनकोड त्रिवेंद्रम में एक पुलाया परिवार में हुआ था। रिश्तेदार इस बात की पुष्टि करते हैं कि उसके पिता की मृत्यु हो गई थी जब वह बहुत छोटी थी । परिवार गरीब था। युवावस्था में जीवन यापन के लिए घास काटने का काम वह करती थी। राजम्मा यानि रोजी की कला में भी बहुत रुचि थी और उसके चाचा ने उसे प्रोत्साहित किया।
राजम्मा से रोजी कैसे बनी
ऐसा माना जाता है रोजी नाम निर्देशक डेनियल द्वारा दिया गया था । वे उसे ग्लैमरस लुक देना चाहते थे। नजदीकी रिश्तेदार के मुताबिक उसने ईसाई धर्म सिर्फ अपनी एलएमएस चर्च से शिक्षा लेने के लिए अपनाया था। उन दिनों बच्चों को शिक्षा ऐसे ही शिक्षा दी जाती थी।
आजीविका
1928 तक, वह काकरसी स्कूल नाट्य कला में महिर गई थी। जे.सी. डेनियल की पहली संभावित नायिका भूमिका के लिए अनुपयुक्त साबित होने के बाद, उन्होंने फिल्म की नायिका बनने के लिए कोशिश किया । फिल्म में उसने नायर-महिला सरोजिनी का किरदार निभाया था। जब विगथुकुमारन फिल्म का प्रर्दशन हुआ तो नायर समुदाय के सदस्यों ने इसका विरोध किया ।
जाहिर है वे एक एक दलित महिला को नायर के किरदार में स्वीकार नहीं कर सके । उस जमाने के फिल्म उद्योग के कई प्रतिष्ठित सदस्यों यह कहा कि अगर रोजी प्रीमियर में उपस्थित होती है तो वे कार्यक्रम में नहीं आएंगे। ऐसे लोगों में उस जमाने के प्रसिद्ध वकील गोविंदन पिल्लई भी थे।
फिल्म प्रर्दशन के दौरान एक सीन पर जिमसें नायक रोजी के बालों पर लगे फूल को चूमता है इसे देखकर पत्थर बरसाए गए। इस तरह के बायकाॅट करने वालों के लिए दूसरा शो दिखाया गया । मगर रोजी आई।
घर जला दिया गया ।
मामला इतना संगीन हो गया कि उच्च जाति के लोगों ने फिल्म में दलित द्वारा उच्च जाति की भूमिका पर विरोध जाताया । उसका घर जला दिया गया ।
वह एक लॉरी में भाग गई थी जो तमिलनाडु की ओर जा रही थी। बाद में उसने लॉरी चालक केशवन पिल्लई से शादी की, और तमिलनाडु में ‘‘राजम्मल‘‘ के रूप में चुपचाप अपना जीवन व्यतीत किया। उनके बच्चे उनके संक्षिप्त स्टारडम के बारे में कुछ नहीं जानते थे सिवाय इसके कि वह एक थिएटर कलाकार थीं और वर्तमान में पिल्लई की जाति नायर के रूप में जीवन बसर करने लगी।
थोड़ी जानकारी निर्देशक जे सी डेनियल के बारे में
ओसेफ चेलैय्या डेनियल नादर (28 नवंबर 1900 - 27 अप्रैल 1975) एक भारतीय फिल्म निर्माता थे जिन्हें मलयालम सिनेमा का जनक माना जाता है। वे केरल के पहले फिल्म निर्माता थे। उन्होंने केरल में बनी पहली फिल्म विगाथाकुमारन (द लॉस्ट चाइल्ड) का निर्माण, निर्देशन, लेखन, छायाचित्र, संपादन और अभिनय किया। उन्होंने केरल में बनी पहली फिल्म स्टूडियो, द त्रावणकोर नेशनल पिक्चर्स भी स्थापित किया। केरल सरकार वर्तमान में उनके नाम पर मलयालम सिनेमा में योगदान देने के लिए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड दे रही है इस अवार्ड की स्थपना 1992 में हुई । यह केरल राज्य का पुरस्कार है।