4 जनवरी 2023 को मेरे पास किरंदुल के एसबीआई डिप्टी मैनेजर चेतन राठौर का फोन आया । आदर भाव से नमस्कार करने के बाद उन्होंने बताया कि 1996-97 के दरम्यान वे नवोदय में मेरे Student रहे ,अब 7 जनवरी 2023 को जिला मुख्यालय जगदलपुर में नवोदय विद्यालय, बारसूर के
उस दौर के छात्रों का एक समूह अलमनाई मीट करने जा रहा है। चेतन ने मुझे आमंत्रित किया और औपचारिक चर्चा के बाद फोन कट गया ।
फोन तो कट गया ,मगर मै चला गया पुरानी यादों में । मेरी उम्र बमुश्किल 22-23 साल की रही होगी। 1993 में स्थापित नवोदय विद्यायल बारसूर उस वक्त के एसवीडीसी कॉलोनी संभवतः एसीबीआई कॉलोनी मे लगा करता था। जाहिर है उस वक्त स्कूल की बिल्डिंग नहीं थी। आज बन चुकी है। ऐसे में तत्कालीन प्राचार्य के केशव राव जी का फोन मुझे आया । तब मै पहली बाद बारसूर गया। दिन के लगभग 11 बजे थे, स्कूल चल रहा था । और स्कूल संगीत शिक्षक मुनराज त्रिवेदी जी बच्चों के साथ आराम के वक्त गाना गुनगुना रहे थे।
चार पैसे कमाने मै आया शहर - गांव मेरा मुझे यादा आता रहा ।
ये गाना, मुझे लगा मेरे लिए गाया जा रहा है ।
हेरिटेज के कार्यक्रम में यह गाना सिगनेचर ट्यून बन गया था। जो कोई भी त्रिवेदी सर से मिलता इसी गाने की फरर्माइश करता ।
खैर, फिर मै उस दौर में आपको लिए चलता हूँ- मैने मुस्कराकर अभिवादन किया और अपना परिचय दिया । उन्होंने मुझे कला के शिक्षक सुकांत बर्मन सर से मिलाया । वे बच्चों के साथ पोर्टेट बना रहे थे।
उस समय आज की तरह मोबाईल फोन और इंटरनेट का जमाना नहीं था। बारसूर में इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी । एकमात्र फोन मुझे याद है बिजली विभाग के पास था । और स्कूल से दूर एक टेलीफोन बूथ बन रहा था ।
छत्तीसगढ़ का गठन नहीं हुआ था और बस्तर मध्यपदेश का हिस्सा था। बारसूर पहुँचना ही एक चुनौती से कम नहीं था। एकाध टैक्सी चला करती था जो शाम के बाद बंद हो जाती थी ।
1996-97 के बाद आज 2023 के दौर में वे सभी छात्र बिनाका हेरिटेज में जमा हुए । शानदार कार्यक्रम चला , मेल मिलाप का दौर, लोगों को एक दूसरे को पहचान पाने की ललक, पहचाने जाने के बाद भावनाओं का सैलाब देखते ही बनाता था। दिवंगत हो चुके छात्रों को श्रद्धांजली भी दी गई । इसी बीच जो इस सभा में नहीं आये उनका नंबर मिल गया। मैंने अपने सहयोगी रहे प्रदीप सर से बात की। अनुभव मैं शब्दों में बयाँ नहीं कर सकूंगा।
आज, दिन-समय दौर बदल चुका है। उस दौर के छोटे मासूम आज प्रशासनिक अधिकारी हैं तो कुछ बिजनेस मेन है। मगर फिर भी ,उस दौर की मासूमियत और रिश्तों की प्रगाढ़ता देखने को मिली जब मै हेरिटेज पहुँचा ।
मेरी मुलाकात जाहिर है ,चेतन से तो फोन पर हो चुकी थी । मगर व्यक्तिगत तौर पर जब मै अपने सहयोगी, मनुराज त्रिवेदी सर से मिला तो वे झट से पहचान गए। गले लगा लिया और फिर हम उलटने लगे यादों के पन्ने । हेरिटेज में हुई इस बैठक में मेरे हिस्से में मनुराज सर ,छात्र चेतन राठौर और कुछ अन्य ही मिल सके । बाकि अपने जीवन की व्यस्तता की वजह से नहीं आ सके। इसका थोड़ा अफसोस है। हालांकि प्रदीप सर ने फ़ोन पर बातचीत में कहा कि फुर्सत निकालकर बस्तर ज़रूर आऊँगा।
उस वक्त संगीत शिक्षक मुनराज त्रिवेदी जी के अलावा केरल के रहने वाले हिन्दी शिक्षक प्रदीप कुमार वी सर, हल्दकार जी और लायब्रेरिअन प्रकाश गजभिए जी से मेरी अच्छी ट्यूनिंग बनती थी । मेरी आंखे इन्हें हेरिटेज में ढूँढ रही थी। मुझे अच्छी तरह याद है, प्रकाश जी ने मुझे अपने रूम में जगह भी दी थी । हम दोनोें अक्सर शाम को बारसूर की सुनसान सड़कों पर गुनगुनाते थे। उन्हें म्यूजिक का बड़ा शौक था। जब वे बाहर गए तो एक अन्य शिक्षक के साथ मै कुछ दिन रहा ।
नवोदय विद्यालय की अवधारणा मेरे लिए नई जरूर थी मगर काम करते मजा आ रहा था।
दिन की शुरूआत प्रार्थना "हम नवयुग की नई आरती" से होती थी । त्रिवेदी सर हारमोनियम के साथ बच्चों के बीच होते थे।
आज के स्कूलों की तरह प्रार्थना में प्रमुख -समाचार, सामान्य ज्ञान वाचन भी होता था।
उस समय एक बड़ी घटना भी घटी जिसकी सूचना हमें संचार साधनों के अभावों के चलते दूसरे दिन मिली । वह था मदर टेरेसा का निधन । उनका निधन 5 सितंबर 1997 को निधन हुआ । उस वक्त हम अपने विद्यायल में शिक्षक दिवस मना रहे थे। उस रात निधन की सूचना मिलने पर दूसरे दिन शोक सभा हुई ।
आज 25 साल गुजर गए हैं । सभी की भूमिकाएं बदल चुकी है । उस समय के बच्चे आज पालक -अभिभावक बन चुके हैं। मै भी
शिक्षक से आज एक ब्लॉगर के तौर पर स्थापित हूँ। मगर नवोदय विद्यालय बारसूर में शिक्षक के तौर पर बिताए पल आज भी मेरे ज़हन में सजीव है। स्कूल में छोटे-मोटे कार्यक्रम संचालन का काम मुझे करने को मिलता था। यहीं से मुझमें मंच संचालन करने का विश्वास जागा । नवोदय से विदा होकर शिक्षकीय कार्य कुछ दिन ही कर पाया । फिर दूरदर्शन और आकाशवाणी में बतौर उद्घोषक सेवाएं मैने दी । आज मै स्थापित ब्लॉगर हूँ । गूगल पर बस्तर जिले की जानकारियों में कुछेक मेरी लिखी होती हैं । मुझमें पर्सनालिटी बदलाव का श्रेय नवोदय विद्यालय बारसूर को ही जाता है। आखिर सर्वपल्ली राधाकृष्णन भी शिक्षक से राजनीतिक बने !
अपनी राय कमेंट कर देंगे तो मुझे खुशी होगी।