फिल्म उद्योग जिसे पहले माया नगरी कहा जाता था। जिसे आज हम बॉलीवुड के नाम से जानते हैं। इसका इतिहास 100 साल से अधिक पुराना है । एक अध्ययन के मुताबिक भारत में एक साल में 1500 से अधिक फिल्में बनती है और यह 2.1 अरब डॉरल 13,800 करोड़ रूपए की आमदनी करती है। सबसे ज्यादा फिल्में भारत में ही बनती हैं।
इसके बावजूद बाकि दुनियां भर में फिल्म व्यापार के मुकाबले यह उद्योग काफी पीछे है। एक बात और बता दूँ इस उद्योग ने 1950 से 1960 के बीच अपना स्वर्ण युग भी देखा है। और फिर 1980 आते आते उद्योग चरमराने लगा।
दिलचस्प है फिल्म उद्योग का इतिहास
1913 से इस उद्योग की शुरूआत मानी जाती है । 1913 में बनी मूक फिल्म राजा हरिशचंद से इसका पहला पन्ना लिखा गया ।
यह फिल्म मुंबई (पहले बंम्बई कहा जाता था।) के कोरोनेशन सिनेमेटोग्राफ में दिखाई गई थी ।
इसके बाद अर्देशिर ईरानी ने पहली भारतीय बोलती फिल्म आलमआरा 14 मार्च 1931 को रिलीज़ की । ईरानी ने 7 महीने बाद 31 अक्टूबर 1931, को एक और फिल्म रिलीज़ की जिसका नाम कालीदास था।
यह यह पहली दक्षिण भारतीय बोलती फिल्म थी। जिसका निर्देशन एच. एम. रेड्डी ने किया था।
राजा हरिशचंद्र के पहले बनी थी फिल्म पुण्डलिक
दादा साहेब तोरणे की पुण्डलिक एक मूक मराठी फिल्म पहली भारतीय फिल्म थी जो 18 मई 1912 को कोरोनेशन सिनेमेटोग्राफ, मुंबई, भारत में रिलीज़ हुई। कुछ लोगो का मत है की पुण्डलिक पहली भारतीय फिल्म नहीं हो सकती है। इसकी तीन वजहें वे बताते हैं।
1.उनकी यह फ़िल्म एक लोकप्रिय मराठी नाटक की रिकॉर्डिंग मात्र थी।
2. इसका चलचित्रकार जॉनसन एक ब्रिटिश नागरिक था।
3. इस फिल्म की प्रोसेसिंग लंदन में हुई थी
हिन्दी फिल्म का स्वर्ण युग
1950 से 1960 के दौर में मुम्बई फिल्म उद्योग ने स्वर्ण युग देखा था। इसी युग में नरगिस, राजकपूर, दिलीपकुमार, देवानंद मीनाकुमारी, अशोकुमार जैसे कई अभिनेता फिल्मों में आए और अपनी एक छाप छोड़ गए। स्वर्ण युग देखने वाला यह उद्योग आज अपने बुरे दौर से गुजर रहा है।
मुम्बई फिल्म उद्योग का बुरा हाल
एक जमाने में दक्षिण भारतीय फिल्मों की आलोचना करने वालों के लिए हैरानी की बात है कि आज यह उद्योग दक्षिण भारतीय फिल्में के रिमेक के जरिए ही सांस ले रहा है। दक्षिण भारतीय फिल्में आज मुम्बई फिल्म नगरी के लिए ऑक्सीजन का काम कर रही है। वजह चाहे जो भी पर है दुर्भाग्य जनक । अभिनेता मुकेश खन्ना के मुताबिक कुछ उपाय के जरिए इस उद्योग को बचाया जा सकता है मगर है मुश्किल । मुकेश खन्ना ने यूट्यूब पर अपने channel में कुछ सुझाव दिए हैं । जिन्हें गौर करना चाहिए।
1 पुराने वितरण प्रणाली यानि डिस्ट्रीब्यूशन सिसटम को वापस लाना
आजकल प्रमोशन के दौर में निर्माता और निदेशक खुद ही ये काम कर रहें है। मुकेश खन्ना के मुताबिक यही फिल्म उद्योग के पिछड़ने का प्रमुख कारण है। जिससे फिल्मों के बनाने के बाद नए कंटेट पर निर्माता निदेशक काम नहीं कर पाते जिसके कारण फिल्म की क्वालिटी गिरने लगी । जबकि वितरक पुराने दौर में एक कान्ट्रेक्ट के जरिए फिल्म खरीदते थे और उसकी मार्केटिंग की जाती थी जिसका जिम्मा वितरक का होता था । ये पूरे देश में अलग-अलग प्रांतों में वितरक सर्किट होते थे जो ये काम करते थे। , प्रोड्यूसर चुपचाप उन्हें फिल्म देकर दूसरी फिल्म में अपना ध्यान लगाते थे। अब ऐसा नहीं हो रहा है।
कलाकार अपनी कीमत कम करें
फिल्म के कलाकार एक दो फिल्में हिट हो जाने से अपनी कीमतें दोगुनी कर देते हैं और साधरण से साधरण कलाकार भी अपनी कीमतें काफी रखें हुए हैं। जिसका सीधा असर फिल्म निर्माण पर हो रहा है। निर्माण में जो धन लगना चाहिए वह कलाकार को देने में व्यव हो रहा है। इस पर हाल ही में अक्षय कुमार का बयान आया था कि वे अपनी कीमत 25 से 30 फीसदी कम करने को तैयार हैं । जाहिर बाकि कलाकर भी कुछ ऐसा करें तो बालीवुड फिल्म उद्योग के लिए अच्छा रहेगा।
पहले स्क्रिप्ट पर काम हो फिर कलाकारों का चयन
आज के दौर में हर निर्माता निदेशक का अपना कलाकार होता है वह किरदार को समझे बिना उसे ही काम देता है। यानि फिल्म की स्क्रिप्ट बाद में लिखी जाती है कलाकार पहले ही तय रहता है। भले ही वह कलाकार उस किरदार के साथ न्याय करने में सक्षम है ही नहीं । यह बात हाल ही में एतिहासिक चरित्र को निभाने में कुछ कलाकार पूरी तरह से फेल हुए जाहिर उन्हें कोई दूसरा कलाकार जंच सकता था मगर निर्माता के चेहते होने की वजह से वे उस चरित्र को निभाने लगे।
हिन्दू देवी देवताओं का मजाक नहीं उड़ाना
फिल्मों आज से ही नहीं पहले से भी हिन्दु देवी-देवताओं का मजाक बनाया गया है । जिसने बहुसंख्यक हिन्दु समुदाय में एक रोष पैदा कर दिया है हांलाकि हिन्दुओं की उदार नीति की वजह से फिल्मों में हिन्दु देवी-देवताओं पर दिखाए जाने वाले दृष्यों पर आपत्ति काफी बाद में दर्ज की गई । लेकिन सोशल मीडिया के इस दौर में खबरें खूब फैली
ओरिजनल आईडिया लाना
मुंबई फिल्म उद्योग में फिल्म निर्माण करते समय आज कल ओरिजनल आईडिया की बड़ी कमी है। बॉलीवुड फिल्म केवल साउथ की फिल्मों के रिमेक बनाकर ही जिंदा है । कोई ओरिजनल आईडिया नहीं है। जैसे बाहुबली, दृष्यम जैसे नए आईडिया लेकर बालीवुड वाले फिल्म बनाते तो कोई बात होती । लेकिन इनकी कहानी साउथ से प्ररित होती है । जाहिर ऐसे में बालीवुड के भविष्य पर प्रष्न चिन्ह लग जाता है।