50 से अधिक जगह और 106 पक्षिओं की प्रजातियां । अपने लुभावने झरनों और प्राचीन गुफाओं के लिए प्रसिद्ध कांगेर घाटी नेषनल पार्क में किया गया पक्षिओं का सर्वे कई मायनों में दिलचस्प रहा है। 2022 में किए गए इस सर्वे में पक्षिओं और अन्य जीव-जन्तुओं की प्रजातियों में दिलचस्प मिश्रण नजर आया । प्रस्तुत लेख सर्वे में लगे पक्षी -अवलोकन कर्ताओं की रिपोर्ट के आधार पर लिखा गया है।
कांगेर वैली नेशनल पार्क अपने लुभावने झरनों और प्राचीन चूना पत्थर की गुफाओं के लिए जाना जाता है। लेकिन ये भी सच है कि यहाँ पक्षियों का अवलोकन सम्पूर्णतः नहीं किया गया है
इसी उद्देष्य से छत्तीसगढ़ वन विभाग ने 25 से 27 नवंबर, 2022 तक स्वयंसेवी बर्डवॉचर्स की मदद से एक व्यवस्थित समुदाय/नागरिक विज्ञान पक्षी प्रलेखन अभ्यास और पक्षी सर्वेक्षण शुरू किया। देश भर के कुछ अनुभवी पक्षी अवलोकनकर्ता यानि बर्डवॉचर्स की मदद ली गई और इस प्रकार छत्तीसगढ़ में पहली बार 11 राज्यों के 70 से अधिक बर्डवॉचर्स ने भाग लिया। इस काम में लगभग 1,000 पक्षिओं के चेकलिस्ट तैयार किए थे। 200 से अधिक पक्षियों की प्रजातियां दर्ज की गई । ये पूरा काम बर्ड काउंट इंडिया, बेंगलुरु और छत्तीसगढ़ समूह के बर्ड एंड वाइल्डलाइफ के सहयोग से की गई।
ऐसे हुआ सर्वे
प्रतिभागियों द्वारा 50 से अधिक जगहों का चयन अवलोकर के लिए किया गया जिसमें पक्षी विचरण करते हैं । वे अलग-अलग समूहों में विभाजित होकर यहां विचरण किए ताकि पक्षिओं के ठिकानों जैसे वुडलैंड, वेटलैंड्स, रिपेरियन फॉरेस्ट और स्क्रबलैंड्स / घास के मैदानों का अध्ययन कर सकें। इन अंतरराज्यीय बर्डवॉचर्स को गिधवा (दुर्ग जिला) के वालंटियर बर्डर्स और केवीएनपी वन रक्षकों और कर्मियों के साथ जोड़ा गया था। विभिन्न पृष्ठभूमि के बर्डर्स के साथ टीम बनाने की अवधारणा बहुत अच्छी थी। अनुभवी अवलोकन कार्ताओं ने पक्षियों की पहचान करने में मदद की, न केवल उनके पंखों से बल्कि उनके चहचहाटों और व्यवहार से भी। इसके बदले में क्षेत्रीय पक्षी अवलोकर्ताओं ने केवीएनपी के क्षेत्र में पाए जाने वाले पेड़, स्थानीय रूप में उपलब्ध पक्षियों के नाम और इनसे जुड़ी कहानियों के बारे में अपने विचारों को आदान प्रदान किया । जैसे गिधवा स्वयंसेवकों, जो जल में रहने वाले पक्षियों के विषेषज्ञ है, उन्होंने जमीन पर रहने पक्षियों के बारे में जाना।
ऐसे पक्षी आए
इस सर्वेक्षण के दौरान, उल्लुओं की 9 प्रजातियां (भव्य और मायावी स्पॉट-बेलिड ईगल-उल्लू सहित), शिकार के 10 पक्षी, कठफोड़वा की 11 प्रजातियां (सफेद पेट वाले कठफोड़वा सहित - प्रायद्वीपीय भारत में सबसे बड़ा कठफोड़वा) दर्ज की गईं। साथ ही, यूरेशिया से फ्लाईकैचर्स और वॉरब्लर्स की कई शीतकालीन-प्रवासी प्रजातियों का भी दस्तावेजीकरण किया गया था। अब तक प्रतिभागियों ने 106 प्रजातियों की तस्वीरें अपलोड की हैं और कई ने पक्षियों की ध्वनि रिकॉर्डिंग भी अपलोड की हैं। उनमें से कुछ दुर्लभ और असामान्य हैं। एकत्र किए गए डेटा के प्रमाणीकरण की प्रक्रिया जारी है क्योंकि राज्य, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के एजेंसी ईबर्ड (एजेंसी जिसने पक्षी देखे जाने की रिकॉर्डिंग की पद्धति विकसित की) के समीक्षक इस संबध में विचार कर रहे हैं। उनके नाम के साथ रिकॉर्ड की गई एवियन प्रजातियों की सटीक संख्या की अंतिम रिपोर्ट जल्द ही प्रकाशित की जाएगी।
सर्वेक्षण के बाद आने वाले लोगों में कुछ पक्षिओं की तलाष में रायपुर चले गए और उन्होंने एक पाइड व्हीटियर रिकॉर्ड किया! और लगभग उसी समय, रायपुर के दो निवासी बर्डर्स (जागेश्वर वर्मा और डॉ. दिलीप वर्मा) ने एक उत्तरी लैपविंग देखा! ये दोनों पक्षी- पाइड व्हीटियर और नॉर्दर्न लैपविंग छत्तीसगढ़ में पाए गए पक्षिओं के रिकॉर्ड हैं (पाइड व्हीटियर को मध्य भारत में पहले कभी नहीं देखा गया है)। ये शानदार खोजें समान लक्ष्य को प्राप्त करने वाले अनुभवी बर्डवॉचर्स को एक मंच पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है
बर्डवॉचर्स एक पक्षिओं के अध्ययन में ही सीमित नहीं किए है पक्षिओं के अलावा वे कुछ तितलियों, पतंगों, अरचिन्ड्स, पौधों, सरीसृपों और लुप्तप्राय भारतीय भेड़िये सहित स्तनधारियों के अध्ययन भी किए और इनका दस्तावेजी करण किया। इसमें खास बात यह रही है कि इन्होंने स्लॉथ बीयर और तेंदुए के स्कैट और ट्रैक का भी दस्तावेजीकरण किया।
भविष्य के उद्देश्य
पक्षी ग्रह पर सबसे अधिक शोधित जानवरों में से हैं, और वे जलवायु में होने वाले परिवर्तन एवं उसके परिणामों के अध्ययन में महत्वपूर्ण भमिका निभाते हैं। विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय पारिस्थितिक तंत्र पर जलवायु परिवर्तन में पक्षिओं की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। अध्ययनों से पता चला है कि कई वर्षों में किए गए लम्बे व्यवस्थित पक्षी सर्वेक्षणों ने पर्यावरण और मानवजनित परिवर्तनों और पक्षियों पर उनके प्रभाव का पता लगाने में मदद की है। लगभग समान प्रयास के साथ एक ही जगह पर एक निष्चित अंतराल में सतत निगरानी की आवश्यकता होती है ताकि बीते दिनों में किए गए अध्ययनों से उसकी तुलना की जा सके।
कांगेर का भौतिक भूगोल अभी भी पूरी तरह से समझा नहीं गया है और इसलिए अलग-अलग मौसमों में यह अध्ययन किया जाय तो नई जानकारियां सामने आ सकती हैं ।
इस तरह के सर्वेक्षण दिलचस्प परिणाम उत्पन्न कर सकते हैं जो डेटा संग्रह पर ध्यान देने के साथ बर्डवॉचिंग को और लोकप्रिय बना सकते हैं । जो पक्षी आबादी को सकारात्मक रूप से लाभान्वित करेगा। साथ ही, इस तरह के सर्वेक्षण से वन विभाग को बर्डवॉचिंग पर केंद्रित सस्टेनेबल इकोटूरिज्म के लिए रोडमैप तैयार करने और लागू करने में मदद मिलेगी।