बस्तर जिले में 2022 में तीन-तीन उपचुनाव हो गए हैं। उपचुनाव का होना एक संवैधानिक व्यवस्था है। मगर बस्तर की बात करें तो 2022 में तीन-तीन उपचुनाव का होना एक एतिहासिक घटना है। जाहिर है संविधान की इस व्यवस्था पर जानकारी होना चाहिए। तो उपचुनाव क्या हैं? क्यों और किसे कहते हैं उपचुनाव ? इन सब बातों के बारे में जानने के लिए इसे अंत तक जरूर पढ़िए।
यहां यह बताना जरूरी है कि उपचुनाव और मध्यावधि चुनाव में अंतर होता है, दोनों एक नहीं हैं । हालांकि दोनों ही अप्रत्याशित घटना के कारण हो सकते हैं। भारत में प्रजातंत्रिक व्यवस्था है जिसमें लोगों के प्रति जवाब देह प्रतिनिधि तैयार होते हैं और इनका चुनाव भी लोग यानि जनता ही करती है। इन्हें हर पांच साल में जनता ही चुनती हैं जिन्हें हम सांसद या एमपी, विधायक या एमएलए और वार्ड मेंबर कहते हैं। और जनता की सेवा में ये पांच लगे रहते हैं।
उपचुनाव किसे कहते हैं?
पांच साल के चुने गए सेवकों के साथ कुछ घटनाएं हो जाती है जिसके कारण ये अपनी सेवाएं नहीं दे पाते लिहाजा चुनाव के जरिए उनकी जगह पर किसी और को जनता अपना प्रतिनिधि चुनती है। तो वे क्या घटनाएँ हैं इन्हें समझते हैं
- प्रत्याशी का देहांत हो जाने से
- स्वतः ही अपना इस्तीफा देने से
- प्रत्याशी अगर अयोग्य घोषित हो जाने से
इन तीन कारणों से जनप्रतिनिधि अपने पद पर सेवाएं नहीं दे सकने की सूरत पर जो चुनाव होता है ऐसे चुनाव को उपचुनाव कहते हैं। अकेले बस्तर में 2022 में ही तीन उपचुनाव हुए। बस्तर में कुछ ऐसा हुआ कि 2022 में तीन उपचुनाव का सामना जनता को करना पड़ा।
बस्तर में तीन उपचुनाव
दीपक बैज के सांसद बनने के कारण चित्रकोट विधान सभा खाली हो गए तो उपचुनाव हुए। भीमामंडावी की मौत के कारण दंतेवाड़ा में उपचुनाव हुए। नक्सली हमले में भीमा मंडावी की मौत हो गई थी। और भानुप्रतापुर में विधायक मनोज मंडावी मौत की वजह उपचुनाव हो रहा है मनोज मंडावी को हार्ट अटैक आया । उपचुनाव के दौरान वही सारी प्रकियाओं से जनता को गुजरना पड़ता है। और पूरा प्रषासन मुख्य चुनाव की तरह लगा रहता है। तो उपचुनाव होते हैं
मध्यावधि चुनाव
अब मध्यावधि चुनाव को समझते हैं । लोकसभा या विधान सभा का कार्यकाल पांच साल का होता है। और जब यह कार्यकाल पूरा होने के पहले ही लोकसभा या विधानसभा भंग हो जाता है और कोई अन्य पार्टी सरकार बनाने में सक्षम नहीं है तो इसके बाद जो चुनाव होते हैं उसे मध्यावधि चुनाव कहते हैं । इसमें प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री और पूरा मंत्रिमंडल ही बदल जाता है। भारत में कौन चुनाव करवाता है? भारत निर्वाचन आयोग नाम की एक संस्था होती है जिसके हाथ में पूरे देश में केन्द्र और राज्य में होने वाले चुनावों के जिम्मेदारी होती है। चुनाव लोकसभा, राज्यसभा विधानसभा देश में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति जैसे कई पदों के लिए निर्वान का काम करती है।
उपचुनाव और मध्यावधि चुनाव के नुकसान
दोनों ही प्रकार के चुनावों पर पूरी व्यवस्था करने में अतिरिक्त धन लगता है। पांच साल के बाद होने वाले चुनावों में धन पांच साल बाद ही लगेगा मगर उपचुनाव और मध्यावधि चुनाव के कारण अतिरिक्त धन का भार लगता है। जिसका सीधा भार जनता पर ही पड़ता है। इसीलिए ये चुनाव न हों तो बेहजह खर्च बच सकेगा। दूसरा नुकसान यह है कि धनभार होता है तो मंहगाई बढ़ती है। जाहिर है जनता ही पीसती हैं। तीसरा इसमें सरकारी मषीनरी का खुलकर उपयोग होने के चलते आम जनों के काम काज प्रभावित होते हैं। जनता के छोटे-मोटे चुनावों तक प्रभावित रहते हैं। लोग अपने काम-काज प्रभावित रहते हैं । नई सरकार के गठन होने तक जनता परेशान रहती है।