छत्तीसगढ़ राज्य 1 नवम्बर को राज्योत्वस मनाता है। इसी दिन ,1 नवम्बर 2020 को छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश से अलग होकर स्वतंत्र भारत का राज्य बना । और अजीत जोगी राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बने।
छत्तीसगढ़ को प्राचीन काल मेें दक्षिण कोसल कहा जाता था फिर इसमें गढ़ों यानि किलों (forts) की संख्या 36 होने के चलते यह छत्तीसगढ़ बन गया ।
छत्तसीगढ़ प्राचीन काल से ही सांस्कृतिक कला का प्रमुख केन्द्र रहा है। यहाँ शैव, वैष्णव, बौद्ध एवं शाक्त संस्कृतियों का प्रभाव देखने को मिलता है। किसी राज्य की खूबी उसकी कला,संस्कृति और संपदा पर निर्भर करती है।
बिजली उत्पादन के क्षेत्र में यह एक संसाधन संपन्न राज्य है।
राज्य की स्वयं की विद्युत उत्पादन की कुल क्षमता (2000) 1360 मेगावाट से बढ़कर 2015 तक 2424.70 मेगावाट हो गई है। इस प्रकार 15 वर्षों में 78.23 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्तमान में उच्च एवं निम्नदाब विद्युत लाईन की लंबाई 265770 कि. मी. है।
छत्तीसगढ़ में कितने जिले हैं
छत्तीसगढ़ राज्य में नवम्बर 2022 तक कुल 33 जिले हैं । जिनके नाम इस प्रकार हैं।
यह सूची छत्तीसगढ़ के जिलों की है- जिलों की संख्या
1 कवर्धा जिला
2 कांकेर जिला
3 कोरबा जिला
4 कोरिया जिला
5 जशपुर जिला
6 जांजगीर-चाम्पा जिला
7 मनेंद्रगढ-चिरमिरी-भरतपुर जिला
8 सक्ती जिला
9 सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिला
10 मोहला-मानपुर जिला
11 दन्तेवाड़ा जिला
12 दुर्ग जिला
13 धमतरी जिला
14 बिलासपुर जिला
15 बस्तर जिला
16 महासमुन्द जिला
17 राजनांदगांव जिला
18 रायगढ जिला
19 रायपुर जिला
20 सरगुजा जिला
21 बलौदाबाजार ज़िला
22 बालोद जिला
23 मुंगेली जिला
24 बेमेतरा जिला
25 सूरजपुर जिला
26 गरियाबंद जिला
27 सुकमा जिला
28 बलरामपुर जिला
29 कोंडागाँव जिला
30 नारायणपुर जिला
31 बीजापुर जिला
32 गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही
33 खैरागढ़-छुईखदान-गंडई
जल्द ही एक अन्य जिला गौरेला-पेंड्रा-मरवाही ज़िला बनाए जाने को है।
छत्तीसगढ़ का इतिहास
इतिहास में यह उल्लेख है कि पहली बार आधिकारिक दस्तावेजों में 1795 में इसे छत्तीसगढ़ कहा गया था। पहले इसे दक्षिण कोसल के नाम से इसे जाना जाता था।
छत्तीसगढ़ का इतिहास तीन भागों में बांटा गया है
1 जो 1000 से 1500 ई
2 दूसरा भाग 1500 से 1900 ई.
3 और तीसरा भाग 1900 से वर्तमान तक।
इतिहास पर एक नजर डालें तो यहां मेघ वंष बाण वंश , नलवंष शरभपुरी वंश, पाण्डु वंश, सोम वंश , वाकाटक वंश और मैकल, कलचुरी वंश आदि राज वंशों ने शासन किया था।
हर्ष वर्धन के शासन काल में 7 वीं सदी जब हेन सांग भारत आया तो उसने बौद्ध धर्म से जुड़ी जगहों की यात्रा की और अपनी पुस्तक सीयूकि में अपनी यात्रा वृतांत लिखा है। इतिहासकारों के मुताबिक हेनसांग के ये विवरण 639 ई के आसपास के हैं जिसमें छत्तीसगढ़ को दक्षिण कोसल के तौर पर उल्लेख किया गया है।
छत्तीसगढ़ क्यों है खास
हेनसांग के मुताबिक बौद्ध धर्म की महायान शाखा के संस्थापक बोधिसत्व नागार्जुन का आश्रम सिरपुर (श्रीपुर) में ही था। इस समय छत्तीसगढ़ पर सातवाहन वंश की एक शाखा का शासन था। महाकवि कालिदास का जन्म भी छत्तीसगढ़ में हुआ माना जाता है। प्राचीन काल में दक्षिण-कौसल के नाम से प्रसिद्ध इस प्रदेश में मौर्यों, सातवाहनों, वकाटकों, गुप्तों, राजर्षितुल्य कुल, शरभपुरीय वंशों, सोमवंशियों, नल वंशियों, कलचुरियों का शासन था। छत्तीसगढ़ में क्षेत्रीय राजवंशो का शासन भी कई जगहों पर मौजूद था।
छत्तीसगढ़ में क्षेत्रिय राजवंश
बस्तर के नल और नाग वंश, कांकेर के सोमवंशी और कवर्धा के फणि-नाग वंशी। बिलासपुर जिले के पास स्थित कवर्धा रियासत में चौरा नाम का एक मंदिर है जिसे लोग मंडवा-महल भी कहा जाता है। इस मंदिर में सन् 1349 ई. का एक शिलालेख है जिसमें नाग वंश के राजाओं की वंशावली दी गयी है। नाग वंश के राजा रामचन्द्र ने यह लेख खुदवाया था। इस वंश के प्रथम राजा अहिराज कहे जाते हैं। भोरमदेव के क्षेत्र पर इस नागवंश का राजत्व 14 वीं सदी तक कायम रहा।
छत्तीसगसगढ़ में वन संपदा
क्षेत्रफल के दृष्टि से भारत में छत्तीसगढ़ के वनों का तीसरा स्थान है। पर्यावरण ,वन एवं जलवायु मंत्रालय द्वारा जारी प्रतिवेदन 2022 के अनुसार छत्तीसगढ़ में 59,772 वर्ग किमी तक वन क्षेत्र फैला हुआ है। जिसमें 55,717 वर्ग किमी भाग पर वन है ।
छत्तीसगढ़ में प्रशासनिक आधार पर वनों को तीन भागों में बांटा गया है।
a आरक्षित वन
b संरक्षित वन
c अवर्गीकृत वन
आरक्षित वन
आरक्षित वन में वे वन आते हैं जहाँ वृक्षों की कटाई प्रतिबंधित है। सर्वाधिक आरक्षित वन दंतेवाड़ा में है तो न्यूनतम
आरक्षित वन कोरबा जिले में हैं। प्रतिशत --43. 13 :
क्षेत्रफल --27, 782 वर्ग किमी
सर्वाधिक आरक्षित वन वाला जिला ----दंतेवाड़ा
न्यूनतम आरक्षित वन वाला जिला ---कोरबा भारतीय वन प्रतिवेदन 2017 के अनुसार छत्तीसगढ़ में 27, 782 वर्ग किमी वन क्षेत्र आरक्षित हैं जो पूरे देश का 44.14 प्रतिशत क्षेत्र है। राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य तथा बायोस्फीयर रिजर्व आरक्षित वन के अन्तर्गत आते हैं।
संरक्षित वन
भारतीय वन प्रतिवेदन के अनुसार छत्तीसगढ़ में संरक्षित वन -24036 वर्ग किमी क्षेत्र में है जो पूरे देश का 40.21 प्रतिशत क्षेत्र है। संरक्षित वन में वनों के संरक्षण के साथ वनोपज की गतिविधियां संचालित की जाती है। इन क्षेत्रों में केवल स्थानीय लोगों को ही पशु चराने तथा निजी उपयोग हेते लकड़ियां काटने की अनुमति होती है।
तीसरे श्रेणी में अवर्गीकृत वन आते हैं।
अवर्गीकृत वन
इन क्षेत्रों में स्थानीय निवासियों को अपने निजी व दैनिक उपयोग हेतु लकड़ी कटाई, पशुओं को चराने की सुविधा दी जाती है।
राज्य में कुल वन क्षेत्र का 40.22 प्रतिशत संरक्षित वन है। राज्य में कुल वन क्षेत्र का 16.65 प्रतिशत अवर्गीकृत वन है। छत्तीसगढ़ में कुल वन क्षेत्र में साल वृक्ष का प्रतिशत 40.56ः सर्वाधिक हैं। राज्य में कुल वन क्षेत्र के 9.42 प्रतिशत क्षेत्र में सागौन के वन पाये जाते हैं।
छत्तीसगढ़ में सरगुजा जिले के उदयपुर इलाके में कोयला खदान के नाम पर हसदेव अरण्य के जंगलों की बेतहाशा कटाई की जा रही है. मंगलवार को सैकड़ों पुलिस बल की मौजूदगी में हजारों पेड़ काट दिए गए।
छत्तीसगढ़ में खनिज
यहां प्रमुख खनिज कोयला, चूना पत्थर, बाक्साईट, टिन अयस्क, लोह अयस्क हीरा और सोना है। छत्तीसगढ़ देश का 38.11 प्रतिशत टिन अयस्क, 28.38 प्रतिशत हीरा, 18.55 प्रतिशत लौह अयस्क और 16.13 प्रतिशत कोयला, 12.42 प्रतिशत डोलोमाईट, 4.62 प्रतिशत बाक्साइट देता है।
छत्तीसगढ़ में जलप्रवाह
छत्तीसगढ़ अंचल प्राकृतिक सुंदरता के मामले में समृद्धशाली है। यहाँ की नदियां कई सुन्दर जलप्रपात बनाती है। देश में चार प्रवाह क्रम हैं। इन्हें गंगा प्रवाह, महानदी प्रवाह,गोदावरी प्रवाह और नर्मदा प्रवाह कहते हैं । पहले जानते इन प्रवाह क्रमों में कौन-कौन से क्षेत्र आते हैं ।
गंगा प्रवाह क्रम पूर्व सरगुजा, कोरिया,जशपुर,बगीचा व बिलासपुर की पेंड्रा तहसील इत्यादि आते हैं।
महानदी प्रवाह तंत्र इसका विस्तार मुख्यतः धमतरी, महासमुंद,राजनांदगाँव, कर्वधा, राजिम,जाँजगीर-चांपा,रायगढ़ जिले में मिलता है।प्रदेश का 55.51 प्रतिशत क्षेत्रों में इसका प्रवाह है। ।
गोदावरी प्रवाह तंत्र इसका विस्तार दण्डकारण्य क्षेत्र में है। यानि कांकेर, बस्तर व दंतेवाड़ा जिले इस प्रवाह के अंतर्गत आते हैं।
नर्मदा प्रवाह तंत्र रूकर्वधा तहसील में इसका विस्तार है।
छत्तीसगढ़ के जलप्रपात के इन्ही चार जल प्रवाह के अंतर्गत आने वाली नदियों पर बनते हैं।
जब जल की विशालकाय बहाव ऊँचाई से नीचे गिरती है इसे जलप्रपात कहते हैं।
छत्तीसगढ़ के जलप्रपात के इन्ही चार जल प्रवाह के अंतर्गत आने वाली नदियों पर बनते हैं। प्रदेश में मौजूद जलप्रपातों का आनन्द सितम्बर से मई के बीच लिया जा सकता है ।
बस्तर में मौजूद चित्रकोट और तीरथगढ़ जलप्रतात की ख्याति देश भर में है। चित्रकोट जलप्रपात को मिनी नियाग्रा की संज्ञा दी गई है। छत्तीसगढ़ के जलप्रपात के इन्ही चार जल प्रवाह के अंतर्गत आने वाली नदियों पर बनते हैं। जब जल की विशालकाय बहाव ऊँचाई से नीचे गिरती है इसे जलप्रपात कहते हैं।
प्रदेश में मौजूद जलप्रपातों का आनन्द सितम्बर से मई के बीच लिया जा सकता है । बस्तर में मौजूद चित्रकोट और तीरथगढ़ जलप्रतात की ख्याति देश भर में है।
चित्रकोट जलप्रपात को मिनी नियाग्रा की संज्ञा दी गई है। प्रदेश के प्रमुख जलप्रपातों निम्न लिखित प्रपात आते है।
रानी दाह जलप्रपात
यह जशपुर से 15 किमी दूर है। ईचकेला और टुकुटोली होते हुए यहाँ पहुँचा जा सकता है। कहते है उड़िसा की किसी रानी ने यहाँ आत्महत्या की थी इसीलिए इसे रानी दाह कहा जात है। इस प्रपात के पास ही महाकालेश्वर का मंदिर है। यह जलप्रपात जून से फरवरी तक पर्यटकों से भरा रहता है। इसकी गुफाओं और ट्रेकिंग का आनन्द गर्मियों में लिया जाता है। यहां से एक किमी दूरी पर पंचभैयानामक एतिहासिक स्थल मौजूद है।
रानीदाह प्रपात के कुछ आगे बिहार की राम रेखा की प्रसिद्ध गुफाएं है। और एक पुराने मंदिर में जाने का मार्ग है। इसीलिए रानीदाह की महत्ता काफी है।
राजपुरी जलप्रपात
जशपुर के बगीचा से मात्र तीन किमी दूर राजपुरी जलप्रपात स्थित है। यह एक नाले पर आधारित है। गर्मियों में भी इसकी सुंदरता बनी रहती है। जून से लेकर जनवरी तक इसकी सुंदरता बेमिसाल रहती है। स्थानीय प्रशासन ने इसे एक पर्यटक स्थल में बदल दिया है।
दमेरा जलप्रपात
यह जलप्रपात जशपुर से 8 किमी दूर है। इसके समीप एक हनुमान मंदिर है इसे जून के अंत से दिसम्बर तक देखा जा सकता है
रक्सगण्डा जलप्रपात
यह सरगुजा जिले के चांदी थाना एवं बंगली नामक स्थान के पास है। यहाँ एक नदी बहती है जिसका नाम है रेंड नदी यही नदी यह जलप्रपात का निर्माण करती है।
यह सकरे कुण्ड का निर्माण करती है जिसे देखने लोग दूर-दूर से आते हैं। इसी कुण्ड से एक सरंग निकलती है जो लगभग 100 मीटर तक दूरी तक जाती है। यह सुरंग जहाँ खत्म होती है वहाँ एक गड्डा बना गया है जिसमें से रंग-बिरंगा पानी निकलता है। अपनी इसी खूबियों के कारण रक्तगण्डा जलप्रपात पर्यटकों को आकर्षित करता है।
अमृतधारा जलप्रपात
मनेन्द्रगढ़ तहसील के बरबसपुर नामक स्थान से 10 किमी दूर है यह जलप्रपात ।अम्बिकापुर से इसकी दूरी लगभग 120 किमी है। कोरिया की पहाड़ियों से निकलने वली इसदो नदी मनेन्द्र गढ़ तहसील में इस जलप्रपात का निर्माण करती है।
यह जलधारा कोरिया जिले में है। यह अंबिकापुर कुसमी मार्ग पर 70 किमी की दूरी पर स्थित है जहाँ डीपाडीह नामक दर्शनीय स्थल मौजूद है। यहाँ से 15 किमी उत्तरी दिशा में कोठरी जलप्रपात है।
कन्दई जलप्रपात
कोरबा बिलासपुर अंबिकापुर सड़क मागर्् पर कटघोरा से लगभग 50 किमी दूर है। यहाँ पहाड़ी नदी 200 फीट की ऊँचाई से नीचे गिरकर एक विशालकाय जलप्रपात का निर्माण करती है। इस जलप्रपात का नजारा पास ही मौजूद एक विशाल शिलाखण्ड से देखा जा सकता है। जलप्रपात पर नीचे उतरकर भी इसका नजार देखा जा सकता है।
तीरथगढ़, मेंदरी घूमर, चित्रधारा, तीरथगढ़,चित्रधारा, महादेव घूमर, कांगेर धारा, गुप्तेष्वर ,तोकापाल का मण्डवा
दंतेवाड़ाका बोग्तुम जलप्रपात,हांदावाड़ा या मिल्कुलवाड़ा, मल्गेर, इदुल, सातधार बारसूर, पुलपाड़, सुकमा जिले का रानी दरहा ।
बस्तर जिले के जलप्रपातों के बारे में विस्तार से जानिए क्लिक कीजिए लिंक पर बस्तर संभाग के जलप्रपात
मलाज कुण्डलम
यह जलप्रपात कांकेर जिला मुख्यालय से 17 किमी दूर दक्षिण-पश्चिम मौजूद है। यह प्रताप दूध नदी का उद्गम स्थल भी है चुर्रेमुर्रे झरना नारायणपुर से अंतागढ़-आमाबेड़ा बनमर्ग पर अंतागढ़ से 12 किमी दूर पिंजाड़िन घाटी में यह झरना है। उत्तर-पश्चिम दिशा में यह , कई कुण्डों का निर्माण करता है।
फिर दक्षिण दिशा में लम्बी दूरी तय करने के बाद इंद्रवती की सहायक नदी कोटरी नदी में यह मिल जाता है।
खुरसेल झरना
अंग्रेजों के जमाने से अपनी नैसर्गिक वन सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध था यह झरना। यह नारायणपुर से कोयलीबेड़ा होते हुए खुरसेल घाटी में प्रवेश करता है।
खुरसेल घाटी से 9 किमी दूर यह झरना लगभग 400 फीट ऊँचाई से तेज ढाल पर कई खण्डों में रूक-रूक कर कई कुण्डों का निर्माण करता है। इसके आसपास पाषाणीय सुंदरता देखते ही बनती है। वर्तमान में नक्सली गढ़ होने के कारण यहाँ आवागमन अवरूद्ध है।