कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि मनाए जाने वाले छठ पर्व का अपनी खूबियां हैं। यह तीन प्रकार के रस्मों से होकर गुजरती है जिसे नहाय खाय, खरना और सूरज को अर्ध्य जल अपर्ण कहते हैं।
छठ पूजा क्यों मनाया जाता है?
दीपावली के छठवें दिन संतान की ख्वाईश या सुख के लिए अथवा परिवार की सुख समृद्धि के लिए यह व्रत करने की प्रथा है।
छठ पूजा भारत में कहाँ-कहाँ मनाई जाती है
यह त्यौहार वैसे तो उत्तर प्रदेश, बिहार में प्रमुखता से मनाया जाता है। और इसका उद्भव भी यहीं से हुआ है। हांलाकि यह झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पष्चिम बंगाल में भी मनाया जाता है प्रमुखता से मनाया जाता है। मगर इन प्रांतों के लोग कामकाज की तलाश में पूरे देश में फैले होने की वजह से पूरे देश में छठ पूजा धूमधाम और पूरी धार्मिक आस्था के साथ मनाई जाती हैै।
नहाय खाय और खरना क्या है
ये पूजा के छठ पूजा के दौरान निभाए जाने वाले विधि विधान या पूजा के नियम हैं जो प्रत्येक व्रतधारी महिला पुरूष करते हैं। बारी बारी से इन्हें समझते हैं।
नहाय खाय
इसे शुद्धिकरण के तौर पर समझा जाता है। इस विधान के तहत व्रत करने वाली महिलाएं और पुरुष एक समय का भोजन करके अपने मन को शुद्ध करते हैं। इस दिन से घर में शुद्धता का बहुत ध्यान रखा जाता है, यहां तक कि लहसुन-प्याज़ बनाना भी वर्जित होता है। क्योंकि लहसून प्याज को तामसिक भोज्य पदार्थ माना गया है। जाहिर है भोजन भी सात्विक होना चाहिए । नहाय-खाय वाले दिन व्रती महिलाएं लौकी की सब्ज़ी, चने की दाल, चावल और मूली इत्यादि खाती हैं।
अब समझते हैं खरना
खरना क्या है?
छठ पूजा में दूसरे दिन निभाए जाने वाले रस्म को “खरना” के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत करने वाले पूरे दिन का उपवास होना होता है। खरना का मतलब होता है, शुद्धिकरण। महिलाएं गुड़ से बनी प्रसार खाकर शाम को अपना व्रत तोड़ती हैं। फिर इस प्रसाद को सभी में बाँट दिया जाता है। इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।
सूर्य अर्ध्य
तीसरे दिन शाम को सूर्य अर्ध्य दिया जाता है। डूबते हुए सूर्य को अर्ध्य देने के कारण इसे संध्या अर्ध्य भी कहते हैं। इस दिन व्रतधारी सूर्य निकलने से पहले रात को रखा मिश्री पानी पीते हैं। इसके बाद अगले दिन ही पानी पीने का प्रावधान है। संध्या अर्ध्य के दिन खास पकवान बनाया जाता है जिसे ठेकवा कहते है। सूर्य देवता को ठेकवा चढ़ाया जाता है । साथ ही मौसमी फल सूर्य देव को चढ़ाए जाते हैं, और उन्हें दूध और जल से अर्घ्य दिया जाता है।
ये खास बात है।
इस दिन प्रसाद बनाने के लिए नए मिट्टी के चूल्हे और आम की लकड़ी का प्रयोग करना शुभ माना जाता है।
छठ पूजा से जुड़ी धार्मिक कथाएं
एक मान्यता यह भी है कि भगवान सूर्य की एक बहन थी जिसका नाम छठ माता था, इसलिए लोग उनकी बहन की कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान सूर्य से प्रार्थना करते हैं। इसके पीछे प्रचलित धर्मिक कहानी है जो इस प्रकार है।
1 राजा देवव्रत को मृत संतान हुआ तो राजा दुखी हुए और मृत संतान को गोद में लेकर निकल पड़े रास्ते में देवकन्या की सलाह पर राजा ने देवी षष्ठी का व्रत किया तो उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई ।
2 एक अन्य प्रचलित मान्यता में यह है कि 14 वर्ष के बाद भगवान राम और सीता ने भी यही पूजा की थी।
3 महाभारत काल में भी मुसीबत में फंसे पाण्डवों को बचाने के लिए दौपदी ने छठ पूजा की थी।
छठ पूजा में इन नियमों का ध्यान रखें
छोटे बच्चों को पूजा का कोई भी सामान छूने न दें।
जब तक पूजा पूर्ण न हो जाए बच्चे को तब तक प्रसाद न खिलाएं, ।
छठ पूजा के समय व्रती या परिवार के सदस्यों के साथ कभी भी अभद्र भाषा का उपयोग न करें।
जो भी महिलाएं छठ मैय्या का व्रत रखें, वह सभी चार दिनों तक पलंग या चारपाई पर न सोते हुए जमीन पर ही कपड़ा बिछाकर सोएं।
छठ पर्व के दौरान व्रती समेत पूरे परिवार सात्विक भोजन ग्रहण करे।
पूजा की किसी भी चीज को छूने से पहले हाथ अवश्य साफ कर लें।
छठ मैय्या का व्रत रखने वाले अर्घ्य देने से पहले कुछ न खाएं।
छठ पूजा के दिनों में गलती से भी फल न खाएं ।
इस पर्व के दौरान सूर्यदेव को अर्घ्य देने के लिए तांबे या कांसे का बर्तन उपयोग में लाएं।
छठ का प्रसाद बनाने के लिए ऐसी जगह चुनें, जहां पहले खाना न बनता हो।
छठ पूजा के दौरान स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
छठ पूजा में ठेकुआ मुख्य प्रसाद होता है।
छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा एक पारिवारिक त्यौहार है । इसमें परिवार के सभी सदस्य पूजा तक एक दूसरे के साथ रहते हुए पूजा विधान करते हैं। इस प्रकार यह एक बहुत बड़ा त्योहार है।
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