कुछ नाम कुछ विधाओं से ऐसे जुड़ जाते हैं जैसे उस विधा के वही जन्म दाता हैं। वह विधा उन्ही की देन हैं । पंडवानी का नाम सुनते ही एक ही नाम जहेन में आता है वह तीजन बाई का । तीजन बाई ने पंडवानी को राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय पहचान दी ,ठीक उसी तरह जैसे पतंजली योग को स्वामी रामदेवजी ने दी है। चर्चा करते हैं तीजन बाई पंडवानी की । कुछ लोग इसे तीजन बाई की पंडवानी भी कहते है। पंडवानी को पहचान दिलाने मेें छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग की गुनियारी गांव में जन्मी तीजन बाई को कठिन मेहनत करना पड़ा । यह सफर इतना आसान नहीं था। मगर उनमें जो जन्मजात प्रतिभा थी उसके चलते तीजन बाई ने पंडवानी को नई ऊँचाईयां दी।
आज एक प्रसिद्ध पंडवानी गायि
का का नाम लेना हो तो सबसे पहले तीजन बाई का नाम आता है। आज तीजन बाई (Teejan Bai)पंडवानी का पर्याय बन चुकी है।
तीजन बाई का जीवन परिचय
पंडवानी कथा के जरिए पूरे विश्व में अपनी शाख बनाने वाली पंडवानी गायिका तीजन बाई का जन्म 24 अप्रेल 1956 को दुर्ग के गुनियारी गांव में हुआ था। Teejan Bai परिधान जाति से तालुक्क रखती हैं। पिता का नाम छुनकलाल परिधी था और माता का नाम सुखवती।
जन्मजात प्रतिभा के बूते नन्हीं तीजन ने 13 साल की उम्र में लम्बे चौड़े श्लोकों को रट लिया था। अपने नाना बृजलाल को तीजनबाई श्लोक सीखाने का श्रेय देती है। बाद में उम्मेद सिंह देशमुख से उन्होंने विधिवत पंडवानी गायन की शिक्षा ली।
12 साल की उम्र तीजन बाई का विवाह हो गया था। पंडवानी गायन के कारण उन्हें परिधी समाज से बेदखल कर दिया गया था। वे दिन Teejan Bai के बड़े कष्ट में गुजरे थे। अपने बुरे दिनों में भी Teejan Bai ने पंडवानी गायन नहीं छोड़ा। गांव से दूर एक कुटिया बना कर वे रहने लगी। जनश्रुति के मुताबिक वे बर्तन भी उधार लेकर अपना खाना बनाया करती थी।
तीजन बाई ने 13 साल की उम्र में एक पड़वानी गायिका के रूप में अपना करियर शुरू किया और लोक गायन उनके विशिष्ट शैली में काफी प्रसिद्ध हो गया। मशहूर रंगकर्मी हबीब तनवीर ने जब तीजन बाई की पंडवानी सुनी तब से उनके जीवन में बड़े बदलाव आए। वे क्षेत्रिय से राष्ट्रीय पंडवानी कलाकर बन गई। उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर देश-विदेश के अतिविशिष्ट लोगों के सामने तीजन बाई ने पंडवानी का प्रदर्शन किया ।
तीजन बाई का योगदान
पंडवानी में दो शैलियां प्रचलित हैं एक हैं वेदमती शैली तो दूसरा है कपालिक शैली ।वेदमती शैली में कलाकर बैठे-बैठे पंडवानी गयान करते हैं। तो कपालिक शैली में कलाकर खड़े होकर पंडवानी गाते हैं। कापालिक शैली के प्रमुख कलाकारों में ऋतु वर्मा का नाम आता है इसकी भी दो रूप देखने को मिलते हैं।
1. सारंगिया देवा
2. दूगारू देवा
तीजन बाई ने अपनी शुरूआत वेदमती शैली से की बाद में वे कपालिक शैली में उतनी ही दक्षता से पंडवानी गायन करने लगी। पहले पंडवानी गायन महिलाओं द्वारा नहीं किया जाता था । महिलाओं के लिए बाद में वेदमती शैली में गायन करना मान्य हुआ। Teejan Bai ने दोनों ही शैली में गायन कर एक नई परम्परा की शुरूआत की। जिसका प्रारम्भ में लोगों ने विरोध भी किया ।
छत्तीसगढ़ में पंडवानी की वेदमती शैली के तीन रूप देखने को मिलते हैं।
बैठा हुआ नाट्य शैली : - इसमें गायक घुटनों के बल बैठकर तंबूरा द्वारा अभिनय करता है। झाडूराम देवांगन इस शैली के श्रेष्ठतम कलाकार हैं।
खड़े होकर अभिनय:- वेदमती गायन की दूसरी शैली में गायक खड़े होकर अभिनय करता है, रागी हुंकार भरने के साथ कड़ियों को दोहराता है। इस शैली के श्रेष्ठ कलाकार रेवाराम गंजीर हैं।
उठता हुआ नाट्य शैली:- इसमें गायक खड़े होकर या चलते फिरते हुए कथा प्रस्तुत करता है। इस विधा के श्रेष्ठतम कलाकार तीजन बाई हैं।
आज तीजन बाई और पंडवानी एक दूसरे के पूरक माने जाते थे। लोग पंडवानी को तीजन बाई के नाम से और तीजन बाई को पंडवानी के नाम से जानते थे। बाद में और भी पंडवानी कलाकार आए और वे पंडवानी को नई ऊँचाईयों तक लेकर गए। आज के दौर में पंडवानी के कलाकार की लिस्ट लम्बी है -इनमें Teejan Bai के अलावा, खुबलाल यादव, जेना बाई, ऋतु वर्मा, रामाधार सिन्हा, लक्ष्मी साहू, फूल सिंह साहू, प्रभा यादव, सोमे शास्री, पुनिया बाई प्रमुख रूप से जाने जाते हैं। झाड़ूराम देंवागन को पंडवानी गुरू कहते हैं । मगर तीजन बाई को इस विधा में अनेक अवार्ड मिल चुके हैं उन पर एक फिल्म भी बन रही है।
पंडवानी क्या है
पंडवानी छत्तीसगढ़ की एकल नाटक विधा है जिसे देवार या परधान जाति के लोक वाद्य यंत्र लेकर गाया करते थे। पंडवानी यानि पांडव की वाणी या यू कहें पंडवानी यानि पाण्डव कथा।
कहते हैं देवार जाति के लोग घूम-घमकर पंडवानी करते हैं तो परिधान जाति के लोग यजमानों के बुलावे पर पंडवानी कथा सुनाते हैं। परधान जाति की पंडवानी महाभारत पर आधारित होने के साथ-साथ गोंड मिथकों का मिश्रण है। पंडवानी पांडवों की माँ कुन्ती को माता कोतमा कहा गया है और गान्धारी को गन्धारिन। गन्धारिन के इक्कीस बेटे बताए गए हैं। पंडवानी में छत्तीसगढ़ क्षेत्र की ही बात होती है। पाण्डव जहाँ रहते थे उसे जैतनगरी कहा गया है। कौरवों के निवास स्थान को हसना नगरी कहा गया है। पण्डवानी में पाण्डव तथा कौरव दोनों पशुपालक है। पाण्डव और कौरव पशुओं को लेकर चराने जाते थे। कौरव हमेशा अर्जुन को तंग किया करते थे और भीम ही थे जो कौरवों को सबक सिखाते थे।
पंडवानी कब करते हैं
पंडवानी करने के लिए किसी त्यौहार या पर्व की जरुरत नहीं होती है। कभी भी कहीं भी पंडवानी आयोजित कर सकते हैं।
पंडवानी में किस प्रकार बैठक होती है
कभी-कभी कई रातों तक पंडवानी लगातार चलती रहती है। वर्तमान में पंडवानी गायिका गायक तंबूरे को हाथ में लेकर मंच पर घूमते हुए कहानी प्रस्तुत करते हैं। तंबूरे कभी भीम की गदा तो कभी अर्जुन का धनुष बन जाता है। संगत के कलाकार पीछे अर्ध चन्द्राकर में बैठते हैं। उनमें से एक रागी है, जो हुंकार भरते जाता है और साथ-साथ गाता है और रोचक प्रश्नों के द्वारा कथा को आगे बढ़ाने में मदद करता है।
तीजन बाई की शिक्षा
तीजन बाई ने विधिवत कोई शिक्षा प्राप्त नहीं की है। फिर भी तीजन बाई को 2017 में खैरागढ़ विश्व विद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि मिली है। इसके अलावा महिला नौ रत्न, कला शिरोमणि सम्मान, आदित्य बिरला कला शिखर सम्मान से भी इन्हे नवाजा गया है।
तीजन बाई को कौन कौन से अवार्ड मिले हैं
सम्मानों की लिस्ट बड़ी लम्बी है। Teejan Bai को मिले सम्मान और भी हैं। उन्हें 1988 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया है।
1995 में उन्हें संगीत नाटक पुरस्कार मिला।
2001 में बिलासपुर विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टर ऑफ लेटर (डी.लिट.) से सम्मानित किया।
पंडवानी के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें 2003 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
2003 में पद्म भूषण मिला
तीजन बाई की उम्र 66 साल की है मगर आज भी वह पंडवानी साधना में उसी दमखम से लगी है।