भारत की सबसे पुरानी लोकतांत्रिक पार्टी कांग्रेस पार्टी की स्थापना 1885 में हुई थी। आजादी की लड़ई में कांग्रेस के योगदान को नकार नहीं सकते । कांग्रेस की अगुवाई करने वालों में कई नाम हैं जो अध्यक्ष के तौर पर कांग्रेस की कमान संभाल चुके हैं ।
इसमें हम इस विषय पर चर्चा करेंगें कि अध्यक्ष का चुनाव किस प्रकार होता है? कौन और किन योग्यताओं के बूते कांगेेस का अध्यक्ष बन सकता है?
आज के दौर में 2022 में कांग्रेस सिमट कर केवल 2 राज्यों (छत्तीसगढ़ और राजस्थान )में रह गई है और कांग्रेस के जाने माने नेता आज कांग्रेस को छोड़ दूसरी पार्टियों का दामन थामने लगे हैं । ऐसे में अक्टूबर में होने वाले कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है ।
कौन होगा अगला कांग्रेस अध्यक्ष ?
शुरू-शुरू में बीजेपी को ही इस बात की टेंशन होती थी अब तो कांग्रेस के भी बड़े नेता ये सवाल खुले आम पूछने लगे हैं।
हाल ही में हुई कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक में आनंद शर्मा ने इस बारे में सबसे पहले सवाल उठाया था । फिर मनीष तिवारी ने भी सवाल उठाया । मनीष तिवारी के सवाल में कई सवाल और निकल आते हैं । बहरहाल मनीष तिवारी के सवाल पर गौर करते हैं।
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ट्वीटर में मनीष तिवारी ने पूछा है कि जब पार्टी की मतदाता सूची सार्वजनिक रूप से उपलब्ध ही नहीं है,
तो यह चुनाव निष्पक्ष और स्वतंत्र कैसे हो सकता है? पार्टी की अधिकारिक वेबसाईट पर मतदाताओं के नाम पते दर्षाए जाएं ।
ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो कांग्रेस को चुभ सकते हैं।
कांग्रेस पार्टी में चुनाव कराने की जिम्मेदारी मधूसूदन मिस्त्री को है। वे चुनावी प्रक्रिया के चेयरमेन जो हैं । हांलकि इंडियन एक्सप्रेस को दिए अपने इंटरव्यू में मधुसूदन ने कहा है कि जो भी सदस्य वोट देने वालों की सूची चाहता है, वो उसे प्रदेश कांग्रेस कमिटी से ले सकता है. इतना ही नहीं अध्यक्ष पद के लिए जो भी नामांकन दाखिल करेगा, उसे भी वो सूची उपलब्ध कराई जाएगी ।
ऐसे में ये जानना समझना जरूरी हो जाता है कि आखिर कांग्रेस में अध्यक्ष पद का चुनाव कैसे होता है। 1885 में बने इस पार्टी के 137 साल का समय बीत चुका है। अब जब इसके अध्यक्ष के चुनाव की प्रकिया को समझना होना हो तो इसके लिए कांग्रेस पार्टी के संविधान को खंगालना जरूरी हो जाता है। इसकी वेबसाईट पर पार्टी का संविधान उपलब्ध है।
तो कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष का चुनाव किस प्रकार होता है ?
इसके लिए कांग्रेस संगठन को समझना पड़ेगा।
अगर ओवरऑल बात करें तो कांग्रेस पार्टी अलग अलग समितियों से मिलकर एक बनती है। अब इन संगठनों को समझिए
ये इस प्रकार हैं।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी ( AICC)
फिर आती है CWC यानि कांग्रेस वर्किंग कमिटी
इसके बाद PPC यानि प्रदेश कांग्रेस कमिटी
डिस्ट्रिक्ट और ब्लॉक कांग्रेस कमिटी
अब इनके सदस्यों पर गौर करते हैं -AICC 1500 सदस्य सीडब्ल्यूसी के 24 सदस्यों को चुनते हैं ।
देश में कुल 30 प्रदेश कांग्रेस कमिटी यानि PCC हैं । और यही कमेटी के सदस्य अध्यक्ष पद के चुनाव में वोटिंग करते हैं। गौर करने लायक बात यह है कि 5 केंद्र शासित प्रदेशों में भी ये कमिटियां हैं जिनमें 9000 से ज़्यादा सदस्य हैं।
पहले प्राधिकरण का निर्माण होता है।
अब गौरतलब है कि जब कांग्रेस में अध्यक्ष का चुनाव होना होता है तो पहले केंद्रीय चुनाव अथॉरिटी (प्राधिकरण) के सदस्यों की नियुक्ति होती है। कांग्रेस वर्किंग कमिटी यानि सीडब्लयू सी इस अथॉरिटी का गठन करती है, जिसमें तीन से पाँच सदस्य होते हैं। इन्हीं में से एक सदस्य को इसका चेयरमैन बनाया जाता है। इस समय कांग्रेस नेता मधुसूदन मिस्त्री इसके चेयरमैन हैं।
कुछ दायरे हैं
1 चुनाव अथॉरिटी के सदस्य चुनाव कराने तक संगठन में कोई पद ग्रहण नहीं कर सकते।
2 इस अथॉरिटी का कार्यकाल तीन साल के लिए होता है।
अब यही चुनाव अथॉरिटी अलग अलग प्रदेशों में चुनाव अथॉरिटी का गठन करती है, जो आगे ज़िला और ब्लॉक में चुनाव अथॉरिटी बनाते हैं।
इसमें एक बात गौर करने लायक है कि कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव कोई भी पार्टी सदस्य लड़ सकता है, मगर उसके पास प्रदेष कांग्रेस कमेटी के 10 सदस्यों का समर्थन प्राप्त होना चाहिए।
Congress Party के संविधान में यह लिखा है कि कांग्रेस के चुनाव के लिए एक रिअर्निंग आफिसर की नियुक्ति जरूरी है। और केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण का चेयरमैन ही यह आधिकारी होता है।
प्रदेश कांग्रेस कमिटी के 10 सदस्य मिल कर किसी कांग्रेस नेता का नाम अध्यक्ष पद के उम्मीदवार के लिए प्रस्तावित करते हैं । ऐसे सभी नामों को रिटर्निंग अधिकारी के सामने तय तारीख पर रखा जाता है। उनमें से कोई भी सात दिन के भीतर अपना नाम वापस लेना चाहे तो ले सकता है।
नाम वापसी के दौरान केवल एक व्यक्ति का नाम अध्यक्ष पद के लिए रह जाए तो वह अध्यक्ष बन जाता है।
कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में दो या दो से अधिक दावेदार हों तो ऐसा होता है।
अगर दो या दो से अधिक लोगों की दावेदारी होती है तो तो फिर रिटर्निंग अधिकारी उन नामों को प्रदेश कांग्रेस कमिटी के पास भेजते हैं ।
वोंटिग होती है । यह बैलेट बॉक्स या पेपर दोनों से चुनाव हो सकता हैैं जिस दिन वोंटिंग होती है उस दिन प्रदेश कांग्रेस कमिटी ( पीसीसी) के सभी सदस्य उसमें हिस्सा लेते हैं।
चुनाव के दौरान वैलेट बॉक्स में किस एक का नाम लिख कर डालना होता है।
इसमें ये छूट भी है।
किसी सदस्य को दो या दो से अधिक सदस्य अध्यक्ष पद के लिए जँचते हैं तो वोट देने वाले को कम से कम अपना पहला दो वरीयता क्रम लिखना होता है । इसे ऐसे समझें कि वरीयता एक और वरीयता दो नंबर के जरिए वह अपनी रूचि दिखता है।
दो से कम प्रेफरेंस लिखने वालों के वोट अमान्य करार दिए जाते हैं। हालांकि वोटिंग करने वाले दो से ज़्यादा प्रेफरेंस दे सकते हैं।
वोटों की गिनती ऐसे होती है।
पीसीसी में जमा किए गए बैलेट बॉक्स को फिर एआईसीसी दफ़्तर भेजा जाता है। एआईसीसी में बैलेट बॉक्स आने के बाद रिटर्निंग ऑफिसर के मौजूदगी में वोटों की गिनती शुरू की जाती है।
मगर, सबसे पहले वरीयता वाले वोटों की गिनती करना होता है।
अब अध्यक्ष वहीं बनता है जिसे 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिलते हैं।
एलिमिनिशन राउण्ड
वरीयता क्रम में भी 50 फीसदी से कम पाने वाले उम्मीदवार का नाम लिस्ट से हटा दिया जाता है। इस तरह से एलिमिनेशन के ज़रिए अध्यक्ष पद का चुनाव होता है। अंत में जिस उम्मीदवार के पास ज़्यादा वोट बचते हैं - उसे अध्यक्ष घोषित कर दिया जाता है.
वैसे तो कांग्रेस के इतिहास में अध्यक्ष पद के चुनाव की नौबत बहुत कम मौकों पर आई है।
कांग्रेस की राजनीति पर दशकों से पैनी नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं, अभी तक पीसीसी डेलिगेट की लिस्ट सार्वजनिक नहीं हुई है । अलग अलग प्रदेश कांग्रेस कमिटी वाले लिस्ट तो किसी नेता विशेष को लिस्ट मुहैया कराएंगे नहीं। मान लीजिए कि नेता अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने का नामांकन दाखिल कर देते हैं, तो उन्हें प्रदेश कांग्रेस कमिटी में जाकर लिस्ट लेनी होगी।
बीते दिनों ऐेसा हुआ है।
साल 2000 में जितेंद्र प्रसाद जब सोनिया गांधी के खिलाफ अध्यक्ष पद का चुनाव लड़े थे तो प्रचार के दौरान भोपाल का कांग्रेस दफ़्तर ही उन्हें बंद मिला था। कई जगह उन्हें काले झंडे दिखाए गए। पीसीसी डेलिगेट को फोन करके बताया गया कि उन्हें किन्हें वोट करना है। उसी तरह से जब शरद पवार और राजेश पायलट ने सीताराम केसरी के खिलाफ़ 1997 में चुनाव लड़ा था तो वो थोड़े प्रभावशाली थे। वो लोग कई जगह चुनाव प्रचार कर पाए। फिर भी सीताराम केसरी तकरीबन 70 फ़ीसदी वोट से चुनाव जीत गए।
बीजेपी में पार्टी अध्यक्ष का चुनाव ऐसे होता है।
बीजेपी में राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है, इस मंडल में राष्ट्रीय परिषद के सदस्य और प्रदेश परिषदों के सदस्य शामिल होते हैं। बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष वही बन सकता है जो 15 वर्षों तक सदस्य रहा हो ।
बीजेपी संविधान में ये भी लिखा है कि निर्वाचक मंडल में से कोई भी बीस सदस्य राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति के नाम का संयुक्त रूप से प्रस्ताव कर सकते हैं।
पांच प्रदेशों से नाम आना ज़रूरी
यह संयुक्त प्रस्ताव कम से कम ऐसे पांच प्रदेशों से आना ज़रूरी है जहां राष्ट्रीय परिषद के चुनाव संपन्न हो चुके हों। साथ ही साथ नामांकन पत्र पर उम्मीदवार की स्वीकृति आवश्य होनी चाहिए।
हालांकि राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीजेपी में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव आम राय से होता है। इसमें आरएसएस की अहम भूमिका होती है। बीजेपी के नेता एक नाम तय करते हैं जिस पर आखिर में मोहर आरएसएस को लगाना होता है।
28 अगस्त को अध्यक्ष पद के लिए चुनाव की तारीखों के ऐलान के कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा था कि भारत में कांग्रेस एकमात्र ऐसी पार्टी है जहाँ अध्यक्ष पद के लिए पारदर्शी तरीके से चुनाव होता आया है, हो रहा है और होता रहेगा । ऐसे में चुनाव की पादर्शिता पर मनीष तिवारी और आनन्द शर्मा ने प्रश्न उठाया है ।