भारत की आजादी के 75 साल बीत चुके हैं । ऐसे में बस्तर में ब्रिटिश काल में मौजूद चिन्हों का जिक्र करना लाजमी हो जाता है।
मध्यप्रदेश हिन्दी अकादमी द्वारा प्रकाशित सुधीर सक्सेना की किताब पढ़ रहा था। इसका शीर्षक गुण्डाधूर था। इसमें काफी जानकारी मिली । किताब के मुताबिक जब रियासतों के शासक एक-एक करके कम्पनी राज के सामने अपमान जनक संधियों पर हस्ताक्षर कर अपनी संप्रभुता और सम्मान गिरवी रख रहे थे , तब दूरस्थ बस्तर राज ने आत्माभिमान और गौरव की रक्षा के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी मगर इस लड़ाई का जिक्र राष्ट्रीय इतिहास में नहीं है। ( पृष्ठ 2 गुण्डाधुर ) ऐसे ही एक लड़ाई है भूमकाल के नाम से प्रसिद्ध है।
मध्यप्रदेश हिन्दी अकादमी द्वारा प्रकाशित सुधीर सक्सेना की किताब पढ़ रहा था। इसका शीर्षक गुण्डाधूर था। इसमें काफी जानकारी मिली । किताब के मुताबिक जब रियासतों के शासक एक-एक करके कम्पनी राज के सामने अपमान जनक संधियों पर हस्ताक्षर कर अपनी संप्रभुता और सम्मान गिरवी रख रहे थे , तब दूरस्थ बस्तर राज ने आत्माभिमान और गौरव की रक्षा के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी मगर इस लड़ाई का जिक्र राष्ट्रीय इतिहास में नहीं है। ( पृष्ठ 2 गुण्डाधुर ) ऐसे ही एक लड़ाई है भूमकाल के नाम से प्रसिद्ध है।
अंचल के इतिहासकार और लेखक रूद्रनारायण पानीग्राही ने अपनी किताब विरासत जगलदपुर में शहर के मध्य स्थित गोल बाजार (Gol Bazar) का एतिहासिक महत्व बताते हैं। अपनी किताब में उन्होने लिखा है कि गोल बाजार पहले गेयर बाजार कहलाता था।
कौन थे गेयर?
बस्तर रियासत में फैगन के पश्चात जी.डब्लू.गेयर, जो पूर्व में पुलिस अधीक्षक भी थे, बस्तर के प्रशासक बनकर आए । उनके कार्यकाल में दुर्भिक्ष अकाल पड़ा, जिसका गेयर ने योग्यतापूर्वक प्रबंध किया था। गेयर ने अकाल के समय अनेक मंदिरों व भवनों का निर्माण तथा पुनर्निर्माण करवाया था। उस दौर में गंगामुण्डा बगीचे का कम्पाउंड तैयार करवाया तथा जगदलपुर शहर के मध्य गेयर बाजार के नाम से एक बाजार भी लगा करता था, का निर्माण करवाया।
इसके एतिहासिक प्रमाण के बारे में किताब में लिखा है कि Gol Bazar के प्रवेश द्वार पर आज भी एक स्तंभ में संगमरमर पत्थर पर 23 दिसम्बर 1932 की तारीख खुदी हुई है।
रियासतकालीन गेयर बाजार ही वर्तमान गोलबाजार (Gol Bazar) के नाम से जाना जाता है। वर्तमान गोल बाजार के क्षेत्र में अनेंक ऐतिहासिक महत्व के स्थल भी हैं।
बस्तर रियासत का विलीनीकरण 1 जनवरी 1948 को हुआ। स्वतंत्र भारत में, गेयर बाजार परिसर में पहली बार ध्वजारोहण हुआ था।
जानिए कैसे बस्तर मिला भारतीय संघ में
इमली का पेड़
रियासतकालीन गेयर बाजार ही वर्तमान गोलबाजार (Gol Bazar) के नाम से जाना जाता है। वर्तमान गोल बाजार के क्षेत्र में अनेंक ऐतिहासिक महत्व के स्थल भी हैं।
बस्तर रियासत का विलीनीकरण 1 जनवरी 1948 को हुआ। स्वतंत्र भारत में, गेयर बाजार परिसर में पहली बार ध्वजारोहण हुआ था।
जानिए कैसे बस्तर मिला भारतीय संघ में
इमली का पेड़
बस्तर के इतिहास में अनेक ऐसे अवसर आए जब अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन हुए जिसमें से 1910 के भूमकाल में सामाजिक संकट की स्थिति आई और बस्तर की जनता ने अपना संघर्ष छेड़ दिया। उन संघर्षों को स्थानीय भाषा में भूमक या भूमकाल कहा गया। जनश्रुति है कि उक्त विदोह में भाग लेने वाले डेबरीधूर तथा माड़िया माझी आदि को जगदलपुर के गोलबाजार में सरेआम फांसी पर लटका दिया गया, जिससे लोगों में आतंक छा जाए। 1910 के भूमकाल में जिन आंदोलनकारियों को इमली पेड़ पर फांसी दी गई वह ऐतिहासिक इमली का पेड़ आज भी गोलबाजार परिसर में मौजूद है।
दूसरा एतिहासिक पहलू
बस्तर दशहरा पर्व के दौरान रैला पूजा विधान का एक स्थल गोलबाजार परिसर में निश्चित किया गया है। दशहरा पर्व के प्रारंभिक रस्मों में से एक रैला पूजा आयोजित होती है। एक जनश्रुति के अनुसार राजपरिवार से त्याग कर दी गई रैला देवी को बस्तर के मिरगान परिवार ने आश्रय दिया था। परिवार वालों से तिरस्कृत रैला देवी ने अवसर देखकर गोदावरी नदी में जलसमाधि ले ली थी। जल-समाधि से मिरगान परिवार के लोगों को भारी दुख पहुँचा था। उस दिन से अपनी लाड़ली रैला का प्रतिवर्ष अपने ढंग से श्राद्ध मनाने का निश्चय किया और रैला देवी का वही श्राद्ध-कर्म, बस्तर दशहरा में पितृमोक्ष अमावस्या के दिन ‘रैला पूजा’ के नाम से जाना जाता है। इस श्राद्धकर्म में मिरगानी महिलाएँ आज भी रैला देवी के प्रति, शोक-गीत गाकर अपना शोक व्यक्त करती हैं।
गांधी की अस्थियां गोलबाजार लाई गई थीं
उक्त परिसर में ध्वजारोहण स्थल पर गांधी चौरा नामक स्थल है। 1948 में गांधी जी के मृत्यु उपरांत अस्थि कलश देश भर में घुमाया गया था। गांधी चौरा के समीप ध्वजारोहण स्थल में गांधी जी की अस्थि कलश आज भी सुरक्षित रखा गया है। 26 जनवरी तथा 15 अगस्त के अवसर पर उस स्थल पर राष्ट्रगान किया जाता है।
बस्तर दशहरा पर्व के दौरान रैला पूजा विधान का एक स्थल गोलबाजार परिसर में निश्चित किया गया है। दशहरा पर्व के प्रारंभिक रस्मों में से एक रैला पूजा आयोजित होती है। एक जनश्रुति के अनुसार राजपरिवार से त्याग कर दी गई रैला देवी को बस्तर के मिरगान परिवार ने आश्रय दिया था। परिवार वालों से तिरस्कृत रैला देवी ने अवसर देखकर गोदावरी नदी में जलसमाधि ले ली थी। जल-समाधि से मिरगान परिवार के लोगों को भारी दुख पहुँचा था। उस दिन से अपनी लाड़ली रैला का प्रतिवर्ष अपने ढंग से श्राद्ध मनाने का निश्चय किया और रैला देवी का वही श्राद्ध-कर्म, बस्तर दशहरा में पितृमोक्ष अमावस्या के दिन ‘रैला पूजा’ के नाम से जाना जाता है। इस श्राद्धकर्म में मिरगानी महिलाएँ आज भी रैला देवी के प्रति, शोक-गीत गाकर अपना शोक व्यक्त करती हैं।
गांधी की अस्थियां गोलबाजार लाई गई थीं
उक्त परिसर में ध्वजारोहण स्थल पर गांधी चौरा नामक स्थल है। 1948 में गांधी जी के मृत्यु उपरांत अस्थि कलश देश भर में घुमाया गया था। गांधी चौरा के समीप ध्वजारोहण स्थल में गांधी जी की अस्थि कलश आज भी सुरक्षित रखा गया है। 26 जनवरी तथा 15 अगस्त के अवसर पर उस स्थल पर राष्ट्रगान किया जाता है।