आईए बात करते हैं छत्तीसगढ़ सरकार की ऐसी योजना के बारे में जिससे उम्मीद की जा रही है कि ग्रामीण अर्थ व्यवस्था में सुधार आएगा, ग्रामीणों का रोजगार के लिए पलायान रूकेगा और ग्रामीण आत्मनिर्भर बनेगें । इतना ही नहीं सामुदायिक विकास होगा । इसमें भूजल में बढ़ोत्तरी होगी।आर्गेनिक खेती, पशुधन का ध्यान, खाद की उपलब्धता, पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था बनेगी।
यह योजना छत्तीसगढ़ी बोली के चार शब्दों से बनी हैं
नरवा यानि नाली
गरवा यानि पशुधन और गोठान,
घुरवा यानि खाद या उर्वरक
बाड़ी यानि बाग बगीचा जिसे में हम किचन गार्डन भी कहते हैं।
इन शब्दों को लेकर इसे नरवा गरवा घुरवा बाड़ी योजना कहा जाता है। इस योजना ने छत्तीसगढ़ को खूब नाम दिया नीति आयोग की बैठक में इस पर बड़ी चर्चा हुई । जाहिर है यह योजना देश में छा गया है। जानने की कोशिश करते है यह योजना किस प्रकार काम करता है कैसे इससे ग्रामीण अर्थ व्यवस्था सुधरेगी?
कैसे सुधरेगी अर्थ व्यवस्था?
गांवों में रहने वाले पशुओं के लिए एक डे-केअर यानि गोठान बनेगा जो गांवों में पशुओं की संख्या के आधार पर होगा। गांव भर के आवारा पशुओं को इन गोठानों में लाया जाएगा जिससे अनावश्यक खेतों को इन पशुओं द्वारा चरन की समस्या से छुटकारा मिलेगा । इन पशुओं के गोबर और अन्य बेकार चीजों से वर्मीकम्पोस्ट तैयार किया जाएगा जिसे गांव की स्वसहायता समूह करेंगी इस प्रकार उन्हें रोजगार मिल सकेगा । ये कम्पोस्ट किसानों को कुछ मूल्य देने पर मिल सकेगा ।
दूसरे इस तरह प्रत्येक गांव में 10-15 परिवारों को आसानी काम मिल सकेगा। इसमें सेरिकल्चर, फ्लोरिकल्चर जैसे गतिविधियों को चलने और बेचने की योजना है।
जो लोग इस नरवा,गुरवा, घुरवा बाड़ी योजना के तहत रोजगार पायेंगें, उन्हें पेड़ लगाने तथा उनकों सरंक्षित रखने के एवज में कुछ पैसा सरकार की ओर से दिया जाएगा। जिससे ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार देखने को मिलेगा।
कैसे होगा यह ?
पशुओं का बेसलाईन सर्वे द्वारा गांव में पशुओं की संख्या का पता लगाया जाएगा।
उदाहरण के लिए किसी गांव में 100 गौधन हैं तो एक एकड़ जमीन गोठानों के लिए आबंटित होगा। और उस पर गोठान का निर्माण होगा। इस योजना का संचालन पूरे छत्तीसगढ़ के सभी जिलों की ग्राम पंचायतों में चरणबद्ध तरीके से होगा।प्रत्येक गांव में पशु धन का बेसलाइन सर्वे किया जाएगा।सर्वे के बाद प्रति 100 गौधन अथवा पशु धन के लिये 1 एकड़ जमीन चिन्हित करके उस पर गौठान का निर्मांण कराया जाएगा।
गोठान बनाने में इन बातों का ध्यान रखा जाएगा।
वहां पानी की प्रचुरता हो जिससे पशु प्यासे न रह सकें
गोठानों का निर्माण ऊँचे स्थान पर होगा। जिससे जलभराव और कीचड़ की समस्या न हो सके।
गोठानों के अंदर घरवा यानि जैविक खाद बनाया जाएगा।
और इन गोठानों की देखभाल का जिम्मा गोठान समिति करेगी।
गोठानों के अंदर फलदार, पत्तिदार, एवं छाया दार पेड़ -पौधे होगें। कुल मिलाकर कहें तो पशुओं के लिए चारागाह बनाया जा सकेगा।
गोठानों में गोबर गैस प्लांट होगें जिन्हें गैस इकाई से जोड़ा जा सके।
पशुओं के लिए टीकाकरण की व्यवस्था गोठानों में सुनिश्चित की जाएगी।
एक चौपाल होगें जिसमें ग्रामीण बैठ सकेंगें।
छत्तीसगढ़ में जिले के हर कलेक्टर को यह निर्देष दिया गया है कि इस योजना की सफलता में हर संभव प्रयास करें ।
बाड़ी लगाने के लिए मनरेगा से सहायता दी जा रही है तो वहीं स्वयं सहायता समूहों को महिला एवं समाज कल्याण के ओर से मदद दी जा रही है। ग्रामीण खुद ही आगे बढ़कर मदद कर रहे हैं। गांवों में आवारा मवेशी की समस्या कम हो रही है, इसलिए किसान दूसरी एवं तीसरी फसल लगाने को लेकर भी उत्साहित है। मुख्यमंत्री के सलाहकार प्रदीप शर्मा जो कि नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी योजना के जनक हैं इनका मानना है कि इस योजना से ग्रामीण क्षेत्र की कई समस्याओं का व्यवहारिक हल निकल सकता है।
साउथ एशिया पेस्टोरल एलायंस के कन्वेनर अनु वर्मा का कहना है कि भारत में इस प्रकार की योजनाएं तो सुनने में काफी अच्छी लगती है, लेकिन अगर अमल ईमानदारी से न हो तो फिर उसका कुछ अर्थ नहीं निकलता। सफलता के लिए अमल के साथ-साथ लोगों में जागरूकता की भी आवश्यकता है।फिलहाल गौठानों को औद्योगिक पार्क बनाए जाने की बात की जा रही है। उम्मीद है इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार होगा ।