यह बात 1916 की है महाराजा रूद्रप्रताप देव ने एक कुँए का निर्माण कराया और इस कुँएं को सीधे पाईप लाईन के जरिए दलपत सागर से जोड़ा गया और यहीं एक फिल्टर प्लांटलगाया गया था।
आज यह जगह कहाँ है ? कौन सा है यह कुँआ? जाहिर है यह प्रश्न आपके जहन में उठ रहा होगा।
वर्तमान में जिसे आर्ट गैलरी के नाम से हम जानते हैं यह कुँआं ठीक इसके पीछे है मगर आज यह उपेक्षित पड़ा हुआ है । सुरक्षा के मद्देनजर इसके बाड़ लगा दी गई है। एक जमाने में यह लोगों की प्यास बुझाता था।
यह दलपत सागर से लगा हुआ है। निचोड़ पत्रिका के मुताबिक सन 1772-75 के बीच मौजूद गांव जगतूगुड़ा (जगदलपुर) और धर्मुगुड़ा (षायद धरमपुरा) के तीन तालाबों को मिलाकर श्रमदान के जरिए इस तालाब की निर्माण कराया गया था इनके नाम बोडनतराई, झारतराई और सिवनातराई थे । इसी तालाब को महाराजा दलपत देव के नाम पर रखा गया जिसे दलपत सागर कहते हैं ।
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बाद में उनके वंशज रूद्रप्रताप देव ने सन् 1916 में नगर में पेयजल व्यवस्था दुरुस्त करने के उद्देष्य से अपने कोष से 57 हजार 731 रुपये तथा जगदलपुर की जनता से 38 हजार 167 रुपए अंशदान लेकर एक फिल्टर प्लांट लगवाया साथ ही एक कुँआं खुदवाया । इस तरह इसकी कुल लागत 95 हजार 898 रूपये थी । कुंए को पाईपलाईन से दलपत सागर से जोड़ा गया ।
इंग्लैण्ड से आया था जल शोधन संयत्र।
जल शोधन संयंत्र का उद्घाटन 20 सितंबर 1916 को रायपुर के तत्कालीन अंग्रेज पोलिटिकल एजेंट की पत्नी राबर्टसन ने किया था। इस फिल्टर प्लांट के लिए इंग्लैंड निर्मित जल शोधन संयंत्र मंगवाया गया था। यह प्लांट कुंआ के पानी को शोधित कर नगर तक पहुंचाता था।
पचास दशक से उपेक्षित
वर्ष 1962 के आसपास इंद्रावती नदी में पंप हाउस स्थापित करने तथा नदी का पानी शोधित कर नगरवासियों को दिया जाने लगा इसलिए दलपत सागर किनारे वाले फिल्टर प्लांट से जल प्रदाय बंद कर दिया गया।
जब आप बस्तर आर्ट गैलरी घुमने आएं तो पीछे कुँए को अवष्य देखें जिसमें बस्तर की समृद्धशाली इतिहास की एक झलक मिलेगी ।
वर्तमान में यह केन्द्र आर्ट गैलरी है
तब से जल शोधन केंद्र का कुआं उपेक्षित पड़ा है। पुराने जल शोधन केंद्र को अब बस्तर आर्ट गैलरी के रूप में विकसित किया गया है परंतु 106 साल पुराने कुए की साफ- सफाई नहीं की गई है। पॉलिथीन तथा अन्य वस्तुओं से कुआं अटा हुआ है और एक टुल्लू पंप के माध्यम से बस्तर आर्ट गैलरी की छोटी सी फुलवारी की प्यास बुझा रहा है।
इसके जल को लिफ्ट कर दलपत सागर में डाला जा सकता है। दलपत सागर में आक्सीजन बढ़ाने फौवारा चलाया जा सकता है। इस दिशा में जिला प्रशासन को सार्थक पहल करनी चाहिए।