अक्सर ऐसा होता है कुछ चीजें बार-बार आपके जहन में आती है या उससे जुड़ी बातें आपके ईर्द गिर्द टकराती हैं। पिछले दिनों महारानी अस्पताल जाना हुआ था। जहाँ पर बस्तर की महारानी प्रफुल्ल कुमारी की प्रतिमा देखी । प्रतिमा के नीचे महारानी अस्पताल के बारे में यह लिखा गया है कि यह अस्पताल 1935 में बना
महारानी प्रफुल्ल कुमारी का जन्म और मृत्यु दोनों के सन् लिखा गए हैं । जिससे पता चलता है महारानी की महज 26 साल में मौत हो गई । बस्तर के इतिहासकारों के अनुसार उनकी मौत एक षड़यंत्र राजनितिक षड़यंत्र का परिणाम था । इनके बारे में बहुत सी जानकारी राजीव रंजन प्रसाद के Youtube Channel पर भी मिलती है।
प्रफुल्ल कुमारी देवी का प्रारम्भिक जीवन
जिला अस्पताल में प्रदर्शित जानकारी के मुताबिक प्रफुल्ल देवी (prafull kumari devi)ने कैम्ब्रिज विश्विद्यायल से मानव विज्ञान में स्नाकोत्तर की उपाधि ली थी। वे काफी संवेदनशील थीं और मानव कल्याण पर तत्पर रहती थीं । बस्तर में चिकित्सा की जरूरत को अहमियत देते हुए उनके कार्यकाल में ही सन 1935 में महारानी अस्पताल की नीव रखी गई। उस समय 1.15 लाख में बना था। खास बात यह भी है कि महारानी के कार्यकाल में बस्तर का मेथोडिस्ट चर्च भी 1933 में बना था।
इतिहासकार राजीव रंजन प्रसाद के मुताबिक प्रफुल्ल देवी के समय में टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा ने बस्तर में दिलचस्पी दिखाई थी और भूगर्भ शास्त्री पीएन बोस को बस्तर भेजा था। और भोज ने महारानी को कहा था बैलाडीला के पर्वतों में लोहे का अकूत भंडार है।
ब्रिटिश का दौर था इसीलिए
उस वक्त ब्रिटिश राज था। भारत के नियम ब्रिटिश सरकार ही बनाया करती थी। इतिहासकार राजीव रंजन के मुताबिक ऐसे समय में प्रफुल्लकुमारी बस्तर की सत्ता में आई जब यहां के नियम या तो रायपुर में बनते थे या दिल्ली या शिमला में बनाए जाते थे।
महारानी प्रफुल्ल देवी बस्तर महाराजा रूद्रप्रताप देव की की इकलौती बेटी थी। पुत्र के अभाव में बस्तर के आदिवासियों ने प्रफुल्ल कुमारी को सहर्ष महारानी के तौर पर स्वीकार कर लिया। 1 अप्रेल 1933 को उन्हें महारानी का टायटिल मिला। इस प्रकार वे बस्तर ही नहीं अविविभाजित मप्र की वे पहली महिला शासिका थी।
महाराजा रूद्रप्रताप
प्रफुल्ल कुमारी देवी के पिता महाराजा रूद्रप्रताप का कार्यकाल बस्तर में 1891 से 1921 तक था। उनके कार्यकाल में बस्तर में कई निर्माण कार्य हुए । बस्तर का दंतेश्वरी मंदिर आज भी विद्यमान है। इस मंदिर का निर्माण भी राजा रूद्रप्रताप देव ने 1891 में करवाया था। रूद्रप्रताप देव की मृत्यु के बाद कोई पुरूष उत्तराधिकारी नहीं था । तत्कालीन दीवान विलायतुल्ला के सामने प्रश्न यह था कि अब कौन बस्तर की बागडोर संभालेगा। बस्तर के आदिवासियों ने 11 वर्ष की प्रफुल्ल कुमारी (prafull kumari devi) को अपनी महारानी मान लिया । यह बस्तर रियासत के इतिहास में पहली बार हुआ जब किसी महिला ने किसी बस्तर का नेतृत्व किया था।
उनके पति प्रफुल्ल चंद भंजदेव के विषय में जानते है।
इतिहास कार राजीव रंजन के मुताबिक प्रफुल्लचंद भंजदेव का जन्म 1908 में मई महिने में उड़िसा में हुआ था। राजकुमार कालेज रायपुर में उनकी प्रारम्भिक शिक्षा हुई। और उन्होंने इंग्लैण्ड के कैम्ब्रीज विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा हासिल की । द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश एम्ब्युलेंस सेवा में रहकर जर्मनी इटली फ्रांस आदि देशों में भी गए। इंग्लैण्ड के सफर के दौरान वे कृष्ण मेनन के संपर्क में आए और भारतीय राजनीति को समझा। 1934 में प्रफुल्ल चंद भंजदेव का आलेख रिकवर्ड पत्रिका में छपा था जिसमें उन्होंने समझाया था किस प्रकार भारतीय राजा ब्रिटिश राज में कुछ भी कर पाने में असमर्थ हैं । न्यू स्टेट्स मेन एण्ड नेशन नाम का इस आलेख ने ब्रिटिश राज में खलबली मचा दी। इस लेख की प्रफुल्ल को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी उन्हें डरपोक,व्यसनी, सिफलिस से पीड़ित घोषित कर दिया गया । उनका चरित्र हनन करने की कोशिश की गई।
उनकी सोच महारानी की सोच एक ही थी।
वे बस्तर की राजनीति में ऐसे व्यक्ति थे जो ब्रिटिश को चुभने लगे थे। महारानी के बाद उन्हें बच्चों से दूर रखा गया । महारानी की मौत के बाद 6 साल के प्रवीर चंद भंजदेव राजा बने
राजीव रंजन ने अपने चौनल में बताया है कि एक किताब फायनेशिअल पोजिशन आफ गर्वनमेंट आफ इंडिया हाउ डिके हैज सेट इन यानि भारत सरकार की वित्तिय स्थिति कैसे गिरी। इसके लेखक थे प्रफुल्ल चंद भंजदेव। यह किताब आज प्रचलन में नहीं है।
26 फरवरी 1936 को महारानी Prafull kumari devi ने लंदन के एक नर्सिंग होम में अंतिम सांस ली । उनका अपेंडिक्स का आपरेशन हो रहा था।