बस्तर में नक्सली गतिविधियां 1980 में शुरू हुई और तब से लेकर कभी कम-तो कभी ज्यादा नक्सली घटनाएं होती रहीं । इस बीच नक्सली वारदातों पर अंकुष लगाने के लिए 2005 में एक चर्चित आंदोलन हुआ जिसे हम सल्वाजुडुम के नाम से जानते हैं।
मगर 2009 तक यह खत्म भी हो गया क्योंकि इसे कोर्ट ने असंवैधानिक करार दे दिया । नक्सली उन्मूलन के लिए चलाए गए इस आंदोलन में क्या हुआ था? क्यों यह खत्म हो गया ? यह सवाल उठना लाजमी है। जानते हैं क्या था सल्वाजुडुम?
मगर 2009 तक यह खत्म भी हो गया क्योंकि इसे कोर्ट ने असंवैधानिक करार दे दिया । नक्सली उन्मूलन के लिए चलाए गए इस आंदोलन में क्या हुआ था? क्यों यह खत्म हो गया ? यह सवाल उठना लाजमी है। जानते हैं क्या था सल्वाजुडुम?
क्या था सल्वाजुडुम ?
जब नक्सली उत्पात हद से ज्यादा हो गया तो बीजापुर के कुटरू से 2005 में इसकी शुरूआत हुई । सल्वा (सल्वा यानि शांति के लिये उपयोग किया गया पानी )जुडुम का शाब्दिक अर्थ गोडी बोली से लिया गया है जिसका मतलब कुछ लोग कहते हैं सभी जुडे़ तो कुछ इसे शांति मार्च भी कहते हैं ।
किस प्रकार इसकी प्रगति हुई और फिर यह समाप्त हो गया ?
सरकारी समर्थन के बाद इसकी स्थिति भयंकर होती गई। सरकार ने जब इसका समर्थन दिया तो लोग इसमें जुड़ने लगे । वे गांव से दूर एक कैंप में रहते थे जिन्हें सरकार स्पांसर करती थी । सरकार ने इन्हें 1500 से 3000 तक का वेतन और 303 रायफल चलाने का प्रषिक्षण भी दिया । ये एसपीओ कहलाते थे जिन्हें कोया कमाण्डो कहा जाने लगा।
सरकारी समर्थन के बाद इसकी स्थिति भयंकर होती गई। सरकार ने जब इसका समर्थन दिया तो लोग इसमें जुड़ने लगे । वे गांव से दूर एक कैंप में रहते थे जिन्हें सरकार स्पांसर करती थी । सरकार ने इन्हें 1500 से 3000 तक का वेतन और 303 रायफल चलाने का प्रषिक्षण भी दिया । ये एसपीओ कहलाते थे जिन्हें कोया कमाण्डो कहा जाने लगा।
प्रतिबंधित हो गया सल्वा जुडुम
सल्वा जुड़ुम के ग्रामीण जिन्होंने नक्सलियों से लोहा लिया सीधे तौर पर वे नक्सलियों के निषाने पर आ गए । और जुडुम ने भी अपनी संख्या बढ़ाने के लिए गांवों से जबरन लोगों को कैंप में लाने लगे । यहां तक की छोटे बच्चों को भी हथियार थमा दिया गया । इसके बाद मानव अधिकार, और सुरक्षा एंजेसियों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई । फिर 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया ।
प्रतिबंध के बाद कैप में रहने वाले और सल्वाजुडुम के एसपीओ का क्या हुआ ?
चूंकि ये नक्सली विरोधी हो चुके थे तो वे नक्सलियों के निषाने पर थे। वे कैंप छोड़कर गांव वापस नहीं जाना चाहते थे और वे कैंप में भी नहीं रह सकते थे क्योंकि आना वाला फंड बंद हो चुका था। परिणामस्वरूप वे अपराध में उतर आए और सरकार उन्हें नक्सली मानकर उनके पीछे पड़ गई।