भारत की आजादी के 75 साल हो चुके है। आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहें हैं। आजादी के अमृत महोत्सव में हम उन लोगों को याद करते हैं जिन्होनें देश की आजादी में अपना बलिदान दिया । जिन्होंने अपने व्यक्तिगत सुख को अलग रख कर देशहित के लिए काम किया । 22 फरवरी है के दिन महात्मागाधी जी धर्मपत्नि कस्तूरबा गांधी की पुण्य तिथि है। 1944 को कस्तूबा गांधी ने इस दुनियां को अलविदा कह दिया था।
हम इस कार्यक्रम में देष की आजादी में उनके योगदान को याद करते हैं । और उनके प्रयासों के प्रति अपनी अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं जिसे उन्होने महात्मागाधीं के साथ मिलकर किया । ऐसे में पहले उनके प्रारम्भिक जीवन के बारे में जानना आवश्यक हो जाता है।
प्रारम्भिक जीवन
कस्तूरबा गाँधी का जन्म 11 अप्रैल सन 1869 में काठियावाड़ के पोरबंदर नगर में हुआ था। कस्तूरबा के पिता ‘गोकुलदास मकनजी’ एक साधारण व्यापारी थे और कस्तूरबा उनकी तीसरी संतान थी। उस जमाने में ज्यादातर लोग अपनी बेटियों को पढ़ाते नहीं थे और विवाह भी छोटी उम्र में ही कर देते थे। अतः उनका विवाह भी महात्मागाधी के साथ बाल्यवस्था में ही हो गया । कस्तूरबा के पिता महात्मा गांधी के पिता के करीबी मित्र थे और दोनों मित्रों ने अपनी मित्रता को रिश्तेदारी में बदलने का निर्णय कर लिया था।
चूंकि उनका नाम महात्मा गांधी से जुड़ चुका था अतः उनका हर कदम महात्मागांधी के साथ ही चला।
शिक्षा समाप्त करने के बाद गाँधीजी इंग्लैंड से लौट आये पर शीघ्र ही उन्हें दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा।
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इसके पश्चात मोहनदास सन 1896 में भारत आए और तब कस्तूरबा को अपने साथ ले गए। दक्षिण अफ्रीका जाने से लेकर अपनी मृत्यु तक ‘बा’ महात्मा गाँधी का अनुसरण करती रहीं।
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उन्होंने अपने जीवन को गाँधी की तरह ही सादा और साधारण बना लिया था। वे गाँधी के सभी कार्यों में सदैव उनके साथ रहीं। बापू ने स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान अनेकों उपवास रखे और इन उपवासों में वो अक्सर उनके साथ रहीं और देखभाल करती रहीं।
योगदान
जब गांधीजी दक्षिण अफ्रीका में थे तब वहां ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सत्याग्रह किया था। कस्तूरबा ने गांधीजी का बखूबी साथ दिया। वहां पर भारतियों की दशा के विरोध में जब वो आन्दोलन में शामिल हुईं तब उन्हें गिरफ्तार कर तीन महीनों की कड़ी सजा के साथ जेल भेज दिया गया। जेल में मिला भोजन खाने लायक नहीं होता था। उन्होंने फलाहार करने का निश्चय किया पर अधिकारियों द्वारा उनके इस अनुरोध पर ध्यान नहीं दिया गया तो फिर उन्होंने विरोध स्वरूप उपवास किया जिसके पश्चात अधिकारियों को झुकना पड़ा। और उन्हें उनकी मंशानुरूप भोजन मिलने लगा। सत्याग्रह का यह प्रयास उनकी पहली जीत थी।
महात्मा गांधी की प्रेरणास्रोत
महात्मा गांधी का अफ्रीका में आदोलन समाप्त हुआ और गांधीजी ने भारत में ब्रिटिश सरकार द्वारा किए जा रहे भेदभाव पूर्ण रवैये के बारे में सुना तो उन्होनें भारत आकर ब्रिटिष हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ने की सोची । वे 1915 में भारत आए कस्तूरबा भी महात्मा गाँधी के साथ भारत लौट आयीं और हर कदम पर उनका साथ दिया। कई बार जब गांधीजी जेल गए तब उन्होंने उनका स्थान लिया। चंपारण सत्याग्रह के दौरान वो भी गाँधी जी के साथ वहां गयीं और लोगों को सफाई, अनुशासन, पढाई आदि के महत्व के बारे में बताया। इसी दौरान वो गाँवों में घूमकर दवा वितरण करती रहीं। खेड़ा सत्याग्रह के दौरान भी बा स्त्रियों का उत्साहवर्धन करती रही।
सन 1922 में गाँधीजी की गिरफ्तारी के पश्चात उन्होंने वीरांगनाओं जैसा वक्तव्य दिया और इस गिरफ्तारी के विरोध में विदेशी कपड़ों के परित्याग का लोगों से आह्वान किया। उन्होंने गांधीजी का संदेश प्रसारित करने के लिए गुजरात के हर गाँवों का दौरा भी किया। 1930 में दांडी और धरासणा के बाद जब बापू जेल चले गए तब बा ने उनका स्थान लिया और लोगों का मनोबल बढाती रहीं। क्रन्तिकारी गतिविधियों के कारण 1932 और 1933 में उनका अधिकांश समय जेल में ही बीता।
सन 1939 में उन्होंने राजकोट रियासत के राजा के विरोध में भी सत्याग्रह में भाग लिया। वहां के शासक ठाकुर साहब ने प्रजा को कुछ अधिकार देना स्वीकार किया था परन्तु बाद में वो अपने वादे से मुकर गए।
भारत छोड़ो’ आन्दोलन के दौरान अंग्रेजी सरकार ने बापू समेत कांग्रेस के सभी शीर्ष नेताओं को 9 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिया। इसके पश्चात बा ने मुंबई के शिवाजी पार्क में भाषण करने का निश्चय किया किंतु वहां पहुँचने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और पूना के आगा खाँ महल में भेज दिया गया। सरकार ने महात्मा गाँधी को भी यहीं रखा था। उस समय वे अस्वस्थ थीं। गिरफ्तारी के बाद उनका स्वास्थ्य बिगड़ता ही गया और कभी भी संतोषजनक रूप से नहीं सुधरा।
अंतिम दिन
जनवरी 1944 में उन्हें दो बार दिल का दौरा पड़ा। उनके निवेदन पर सरकार ने आयुर्वेद के डॉक्टर का प्रबंध भी कर दिया और कुछ समय के लिए उन्हें थोडा आराम भी मिला पर 22 फरवरी, 1944 को उन्हें एक बार फिर भयंकर दिल का दौरा पड़ा और बा हमेशा के लिए ये दुनिया छोड़कर चली गयीं।
हम भारत के स्वतंत्रता संग्राम की बात करें तो हमारे मस्तिष्क में अनेकों महिलाओं का नाम प्रतिबिंबित होता है पर वो महिला जिनका नाम ही स्वतंत्रता का पर्याय बन गया है वो हैं ‘कस्तूरबा गाँधी’। उन्होंने ताउम्र बुराई का डटकर सामना किया उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन अपने देश के लिए व्यतीत कर दिया। इस प्रकार देश की आजादी और सामाजिक उत्थान में कस्तूरबा गाँधी ने बहुमूल्य योगदान दिया है । कृतज्ञ राष्ट्र आज 22 फरवरी को उन्हें नमन करता है।
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