Bastar High School
अगर 60-70 के दशक की मै बात कहूँ तो ऐसा कोई भी नहीं होगा जो बस्तर हाई स्कूल में नहीं पढ़ा होगा। इस स्कूल ने अपने लगभग 100 सालों के इतिहास में अनगिनत शिक्षा विदों, इतिहासकारों, उच्च पदस्थ अधिकारियों, चिकित्सकों को जन्म दिया है। मै आपको अपने क्षेत्र की सबसे पुराने स्कूल बस्तर हाई स्कूल के बारे में बताता हूँ।
इतिहास
Bastar High School का वर्तमान स्वरूप 1926 को जरूर बना मगर इसकी नींव 135 साल पहले ही डल चुकी थी । यानि 1886-1887 के दरम्यान जब यहाँ प्रांतीय शासन हुआ करता था। उस वक्त बस्तर में भैरमदेव का शासन था और कृष्ण राव यहां के दीवान थे । उसी समय सिरोंचा (महाराष्ट्र)के डिप्टी कमीश्नर ग्लाफोर्ड बस्तर आए थे उनके संस्मरण के मुताबिक बस्तर में उन दिनों कोई विद्यालय नहीं था।
ब्रिटिष सरकार ने प्रांतिय राजाओं पर स्कूल खोलने के लिए यहां दबाव बनाया । तब जाकर महाराजा भैरमदेव ने प्राईमरी स्कूल की बस्तर में 1886 में स्थापना की जिसमें उडिया, उर्दू अरेबिक माध्यमों में पढ़ाई होती थी । महाराजा के प्रायासों की बदौलत संस्कृत की पढ़ाई होने लगी। ऐसा कहा जाता है कि महाराज भैरमदेव स्वयं पढ़े लिखे नहीं थे मगर बस्तर में उन्होने शिक्षा की ज्याति जलाई। फिर दीवान कृष्ण राव की पहल पर 1888 में केशकाल, भेज्जी, भोपाल पट्टनम़ और दंतेवाड़ा में भी प्राईमरी स्कूल खोले गए।
और आज 2011 की जनगणना के मुताबिक 78 प्राईमरी, 43 मीडिल और 21 हाईस्कूल और 23 हायर सकेण्ड्री स्कूल हैं।
कौन है जगतु महारा ?
आज इसका नाम जगतु महारा विद्यालय है। ऐसे में जानना आवश्यक हो जाता है कि कौन है जगतु महारा ? क्यों इसके नाम पर 100 साल पुराने स्कूल नाम रखा जा रहा है?
हांलाकि इसके एतिहासिक प्रमाण नहीं है मगर अंचल के इतिहासकार जाने माने लेखक रूद्रनारायण पानीग्राही ने अपनी पुस्तक हैरिटेज वॉक और विरासत जगदलपुर की में लिखा है वर्तमान जगदलपुर एक कबीला हुआ करता था। यहां मौजूद जंगली जानवरों से परेशान कबीले का सरदार जगतु ने महाराजा दलपतदेव को गुहार लगाई और अपने कबीले को इस घातक परेशानी से मुक्ति दिलाने का अनुरोध किया । महाराजा दलपत देव जगतु के आग्रह पर यहां आए और हिंसक जानवरों को मार गिराया । मगर उन्हें यह क्षेत्र इतना भा गया कि यहीं बसने का विचार कर लिया । उन्होने अपनी मंशा जगतु को बताई जगतु ने अपने कुलदेवी से अनुमति लेकर महाराजा यहां बसने पर दे दिया । इस तरह जगतु का पहला अक्षर जग और दलपत देव का के पहले अक्षर दल से पुर यानि नगरी जगदलपुर बनी ।
वहीं 1908 में प्रकाशित केदारनाथ ठाकुर की रचना बस्तर भूषण में कुछ और ही उल्लेख है। इसके मुताबिक दलपत देव अपनी राजधानी बस्तर से इंद्रावती तट पर शिकार के लिए आए और उन्होंने अपने शिकारी कुत्तों को एक मादा खरगोश से डरकर भागते देखा और यहां उन्होनें बसने का मन बना लिया । बहरहाल! जगतु महारा आज 21 सदी में शिक्षा के क्षेत्र में जाना जाएगा।
यह भी जरूरी है जानना
18जनवरी 1938 की है निरंजन दीवान और तत्कालीन प्राचार्य के साथ Bastar High School की एक तस्वीर सोशल मिडिया में खूब चली थी।
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