बस्तर में सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट आरम्भ होने जा रहा है। इसे हम बस्तर को नए साल का तोहफा के तौर पर ले सकते है। ।
इसके लिए सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट होता क्या है ? इससे क्या फायदा होगा । और क्यों यह जरूरी हैं ।
इसे समझने के लिए पहले हमें सिवेज को समझना होगा
सिवेज असल में ऐसे पानी मिश्रित कचरे को कहते है। जो पानी के साथ हमारे घरों से निकलता है। जाहिर है यानि कपड़े धोने, शौचालय, रसोई, नहाने-धोने के उपयोग में निकलने वाले पानी का दोबारा कोई उपयोग नहीं होता है । ऐसे ही पानी को हम सिवेज कहते है। और यही पानी हजारों लीटर की तादाद में नदियों में मिल जाता है । अध्ययन के मुताबिक चार व्यक्तियों का एक परिवार लगभग 400 से 500 लीटर सीवेज पानी देता है।
और यह सीवेज नदी का पानी दूषित करता है ही है साथ ही पानी में रहने वाले जीवों के लिए भी यह नुकसान देय है। क्योंकि नदियों और तालाबों में सिवेज से गए पानी में इ कोलाई, बैक्टेरिया, वायरस, रोगजन्य और दूसरे वायरस होते है। जो जलीय जीवों के लिया नुकसानदायक होते हैं।
इसी तरह के पानी को दोबार उपयोग में लाने को हम सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट कहते हैंम जो बस्तर के बाली कोंटा गांव में लगने जा रहा है। इसी प्लांट में शहर के विभिन्न घरों के गंदे पानी को उपयोग करने लायक बनाया जाएगा। एक अनुमान के मुताबिक दलपत सागर में शहर का 70 सिवेज मिला हुआ है तो जीवन दायनी इंद्रावती नदी में 40 प्रतिषत सिवेज है। इस प्लांट के लगने से तालाब और नदी में मिलने वाले गंदे पानी से छुटकारा मिलेगा। उम्मीद है सिवेज समझ गए होंगे और सिवरेज प्लांट भी समझ आ गया होगा।
आम भाषा या कम शब्दों में समझें तो घर और उद्योग से निकलने वाले दूषित पानी को शुद्ध कर उपयोग लायक बनाने केे काम को सिवरेज ट्रिटमेंट कहते हैं ।
अब समझते हैं ये कैसे काम करता है। यानि सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट कैसे काम करता है।
यह भौतिक रासायनिक और जैविक विधि से किया जाता है ।
इसमें संयत्र को एसी जगह स्थापित किया जाता है जैसे बस्तर में बालीकोंटा में स्थापित किया जा रहा है। जहाँ से क्षेत्र के हर कोने से गंदा पानी लाया जा सके । और जल सफाई की प्रकिया के तीन चरण होती है।
1 इसे एनेरोबिक प्रकिया कहते है। जिसके तहत पहले, ठोस पदार्थ को पानी से अलग किया जाता है। उससे अलग किया जाता है,
2.यह एरोबिक प्रकिया में आता है। जैविक पदार्थ को एक ठोस समूह एवं वातावरण के अनुकूल बनाकर इसका प्रयोग खाद एवं लाभदायक उर्वरक के रूप में किया जाता है। इसके तहत बैक्टिरिया को पानी में डाला जाता है और 15 से 20 दिन में गंदा पानी निस्तारी प्रयोग करने के काम आता है। जैसे पौधों को पानी देना, कपड़े धोना इत्यादि
3. इसके बाद उसे प्रयोग में लाने के लिए नदी, तालाबों आदि में छोड़ दिया जाता है।
खास बात
इसमें केन्द्रिय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक भारत में 269 सिवरेज ट्रिटमेंट प्लांट यानि एसटीपी हिन्दी में मलजल उपचार संयत्र हैं । जिसमें केवल 231 ही चल रहें है।
इसे भी समझें !
बस्तर नगर निगम आयुक्त प्रेम कुमार पटेल से की गई बातचीत के मुख्य अंश ।
1) एनेरोबिक (अवायवीय) सीवेज संयंत्र
सीवेज टैंक के कुछ हिस्से में आक्सीजन युक्त एनेरोबिक बैक्टीरिया को रखा जाता है, सीवेज टैंक में आक्सीजन के न होने के कारण कारण सीवेज कुछ टूटने लगता है जिसके कारण वहां उपस्थित कार्बनिक पदार्थ मीथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड , कार्बन डाइऑक्साइड इत्यादि गैसों में परिवर्तित होने लगता है। इस प्रकिया का प्रयोग मुख्यतः ठोस एवं कार्बनिक अपशिष्ट पदार्थों के सफाई के लिए किया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि एनेरोबिक प्रक्रिया द्वारा यह अपशिष्ट पदार्थ का भार एवं आयतन काफी हद तक कम कर देता है। इस प्रक्रिया द्वारा प्राप्त मीथेन गैस का बड़े स्तर पर घरों एवं उद्योगों में उपयोग कर पाने के लिए अनेक शोध एवं अनुसन्धान किये जा रहे हैं।
2) एरोबिक (वायवीय) सीवेज संयंत्र
इस प्रक्रिया में एरोबिक बैक्टीरिया द्वारा प्रदूषक तत्वों को भोज्य पदार्थ के रूप में खा लिया जाता है। एरोबिक बैक्टीरिया को श्वसन के लिए वायु तथा आक्सीजन मिलती रहनी चाहिए। इन बैक्टीरिया के द्वारा पूरी तरह आक्सीकरण एवं कार्बनिक पदार्थों को भोज्य के रूप में ग्रहण कर, शेष कार्बन डायआक्साईड जल एवं नाइट्रोजन गैस प्राप्त की जाती है। इस तरह से यह प्रक्रिया जल से प्रदूषण एवं दुर्गन्ध को दूर कर शोधित जल प्रदान करती है, जिसे आगे ले जाकर किसी नदी के साथ प्रवाहित करवाया जाता है। नवीन एवं छोटे स्तर के एरोबिक संयंत्रों में प्राकृतिक वायु प्रवाह का प्रयोग किया जाता है, जिसमे विद्युत धारा की आवश्यकता नही होती
पर्यावरण मंत्रालय की स्वीकृति जरूरी है।
पानी के दोबारा प्रयोग करने के लिए पर्यावरण मंत्रालय की स्वीकृति की आवश्यकता होती है। जल में मौजूद गंदे व अनुपयोगी पदार्थों एवं रसायनों को सुरक्षित स्तर तक पानी सफाई प्रक्रिया द्वारा लाया जाता है। मलजल अर्थात सीवेज का उपचार, अधिकांशतः उसी स्थान पर किया जाता है जहाँ इसका निर्माण हुआ होता है।
प्लांट सामान्य ब्लूप्रिंट
इसमें एक रॉ चेम्बर होता है जहां पर गंदा पानी डाला जाता है। , स्क्रीन चैम्बर इसमें एक सिक्वेंस मे जाली या छन्नियां लगी होती है। जो ठोस पदार्थो को बारी बारी पानी से अलग करती है ग्रीट चेम्बर स्क्रीन चेम्बर से प्राप्त पानी ग्रीट चेम्बर में आता है और उसे फिर प्राईमरी क्लेरिफाअर में भेजा जाता है और वहां पानी में मौजूद गंध हटाने के बाद एयरोमेशन टैंक पर डाला जाता है और सेकेण्डरी क्लेरिफाअर होता है जिसमें क्लोरिन मिलाने के बाद उसे ट्रीटेट वाटर टैंक भेजा जाता है ।
बस्तर के प्लांट में यह होगा।
58 लाख रूपए की लागत से बने इस सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट में दलपत सागर के 3 नाले, महादेव घाट में 1 नाला, केन्द्र बन्दीगृह के पीछे 2 नाले, पावर हाऊस में 1 नाला, इंटेक वैल के पास 1 नाला और लक्ष्मी नारायण मंदिर राजा कब्रगृह के पास 2 नालों से यह पानी इंद्रावती नदी और दलपत सागर के पानी में मिल जाती थी। इन 10 नालों को एस साथ जोड़कर आर.सी.सी. पाइप द्वारा बालीकोंटा सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट में मेन पम्पींग स्टेशन में लाया जायेगा। मेन पम्पींग स्टेशन से पंप द्वारा प्रायमरी ट्रीटमेंट यूनिट में इस प्रदुषित पानी को फिल्टर हेतु ले जाया जायेगा तथा सिक्वेंसिंग बैच रिएक्टर के चार बेसिन में चार भागों में इसका विभाजन होगा। यह कार्य कुल 180 मिनट की प्रक्रिया में होगी। 180 मिनट में 90 मिनट एयर ब्लोवर के माध्मय से वायु मिश्रण किया जायेगा। 30 मिनट सेटलमेंट के लिए रोका जायेगा तथा 60 मिनट के लिए मड सेटल होगा तथा 60 मिनट डिसेंटर मशीन के माध्यम से शुद्ध पानी को क्लोरीन टैंक में ले जाया जायेगा। क्लोरीन टैंक में क्लोरीन गैस मिलाकर कीटाणुओं को खत्म करने के बाद शुद्ध पानी को इन्द्रावती नदी में छोड़ दिया जायेगा एवं शुद्ध पानी छोड़ने के बाद बचा हुआ द्रव कीचड़ पाईप लाइन द्वारा अपकेंद्रित्र मशीन में लाया जायेगा। अपकेंद्रित्र मशीन द्रव कीचड़ को ठोस कर देगा जिसका उपयोग कृषि एवं अन्य कार्यों में किया जा सकेगा।
बस्तर के परिपक्ष्य में अगर बात कहें तो जमीनी तैयारी के कोई निशान नजर नहीं है
इसके लिए घरों से पाईप लाईन या अन्य माध्यमों से घरों का पानी कैसे इस
प्लांट तक आएगा? एक बड़ा सवाल है। मगर इतना सच है कि नए साल में बस्तर को एक
और उद्योग से रूबरू होना होगा ।
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