नवरात्रि की शुरूआत हो चुकी है। इस दिन से पूरे नौ दिनों तक माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के साथ बस्तर में दशहरे की महत्वपूर्ण रस्म निभाई जाती है जिसे जोगी बिठाई कहते है।
इस दिन जो स्थानीय सिरहासार भवन में दशहरे की निर्विघ्न सम्पन्न कराने के लिए प्रार्थना करता है। जानिए क्या है जोगी बिठाई ? किस प्रकार होता है दशहरे में विभिन्न रस्म
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नवरात्रि में पूरे नौ दिनों तक दुर्गा के जिन विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है वे इस प्रकार हैं :-
मां दुर्गा के नव रूप
1. मां शैल पुत्री:- मां दुर्गा का प्रथम रूप शैल पुत्री है पर्वत राज हिमालय के यहाँ इनका जन्म हुआ था। इसलिए इनको शैल पुत्रि कहा जाता है । नव रात्रि के पहले दिन इनकी पूजा की जाती है ।
2. ब्रम्ह चारणी:- यह मां का दूसरा रूप है । इनकी उपासना व त्याग करने से भक्तों का कल्याण होता है ।
3. चन्द्र घंण्टा:- मां दुर्गा का तीसरा रूप है । इनकी उपासना करने से सभी पापों का नाश होता है । और व्यक्ति अपने दुखों से दुर होता है ।
4. कूष्माण्डाः-चौथे दिन मां कुश माण्डा की आराधना की जाती है । इनकी उपासना से सिद्वियों और विधियों को प्राप्त किया जाता है । इससे आयु व यश में भी वृद्धि होती है ।
5. स्कन्द माता:- पांचवा दिन स्कन्द माता का रहता है । जिसमें इनकी उपासना की जाती है । ये माता मोक्ष के द्वार खोलने वाली होती है ।
6. कात्यानी:- मां का छठवां दिन मां कात्यानी का होता है । ऐसा कहा जाता है कि इनकी पूजा करने से अद्भुत शक्ति का संचार होता हैं । कात्यानी मां दुश्मनों का संहार करने में भी सक्षम बनाती है । इनका ध्यान गोधूली बेला में करना होता है ।
7. काल रात्रि:- नवरात्रि की सप्तमी के दिन मां काल रात्रि की आराधना की जाती है । इनकी पूजा से सभी दुश्मनों का नाश होता है । और तेज बढ़ता है ।
8. महा गौरी:- मां का आठवां रूप मां गौरी का है । इनकी अष्टमी के दिन पूजा होती है। इनकी पूजा संपूर्ण संसार करता है। मां गौरी का पूजन करने से सुख में वृद्धि हाती है ।
9. सिद्धि दा़त्री:- मां सिद्धि दात्री की पूजा करने से समस्त सिद्धियों की प्राप्ति होती है । और आपके उपर मां की सदैव कृपा बनी रहती है ।
प्रत्येक दिन भक्तों को इस दौरान संयमित जीवन जीना आवश्यक होता है । उन्हें उच्च स्तरीय धार्मिक अनुष्ठान करने की आवश्यकता होती है । मां दुर्गा की अनेक कहानियां धर्मग्रंथों में मिलती है उनमें से एक मै यहाँ आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूॅू। इसमें में यह बताने का प्रयास किया गया है कि मां ने किन परिस्थतियों में शर की सवारी करना स्वीकार किया ।
मां द्वारा शेर की सवारी करने का कारण ।
मां पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी और यह तपस्या हजारों वर्षों तक चली थी। जिसके कारण मां का रंग सांवला पड़ गया था। फिर भी मां ने शिवजी को पा लिया था। एक दिन भगवान शिव ने मां को काली कह दिया था। मां को यह बात बहुत बुरी लगी और उन्होंने कैलाश छोड़ दिया । उन्होने कठोर तपस्या की और इसी तपस्या के दौरान एक भूखा शेर भक्क्षण के इरादे से वहाँ आ गया था। लेकिन मां को तपस्या में लीन देखकर वह शेर न जाने क्यों वहां रूक गया । और मां के सामने बैठकर उनको निहारता रहा ।और इधर मां ने तो हठ पाल रखी थी कि जब तक वह गोरी नहीं होगी तब तक वह तपस्या करती रहेगी । यह वर्षो तक चलता रहा । साथ में शेर भी मां के सामने वर्षो तक बैठा रहा । अंत में शिवजी प्रगट हुए और मां को गोरी होने का वरदान दिया । इस प्रसंग के बाद मां गंगा स्नान करने गई तब उनके अन्दर एक देवी प्रगट हुई और मां पार्वती गोरी बन गई । इसलिए उनका नाम गोरी पड़ा ।
और दूसरी देवी जिनका स्वरूप श्याम था उन्हें कोसकी नाम से जाना गया। और जब स्नान करके मां लौटी तो मां ने देखा की वहाँ एक शेर बैठा है और उन्हें निहार रहा हैं। मां को तब और भी आश्चर्य हुआ जब शेर ने उन पर हमला नहीं किया और फिर मां को अपनी दिव्य शक्ति के द्वारा आभास हुआ कि वह जब तपस्या पर बैठी थी तो वह शेर भी उनके साथ बैठा था। फिर मां ने शेर को अपना आशिष देकर अपना वाहन बना लिया ।