पं. जवाहरलाल के बाद देश को लाल बहादुर शास्त्री के रूप में प्रधानमंत्री मिला । भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री सादगी और दृढ़ निष्चय के लिए जाने जाते हैं । 2 अक्टूबर (1904) को उनका जन्म दिन भी है ऐसे में उनका जिक्र करना लाजमी हो जाता है।
ऐस थे लाल बहादुर
भारत पाकिस्तान की 1965 की लड़ाई के दौरान देश में अनाज की कमी को देखते हुए वे अपना वेतन नहीं लेते थे। जब वे रेल मंत्री थे तो एक रेल दुर्घटना हुई जिसमें कई लोग मारे गए । तब उन्होंने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपना पद छोड़ दिया ।
पहले केंद्रीय मंत्री और फिर नेहरू जी की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री के पद पर पहुॅचे शास्त्रीजी अपने जीवनकाल में ही सादगी और ईमानदारी की किवदंती बन गए थे। भारतीय राजनीति के लम्बे इतिहास में उनके जैसे आचरण वाले व्यक्तित्व अंगलियों पर गिने जाते हैं। पद, प्रतिष्ठा और शक्तियों का प्रभाव व्यक्तित्व को बदल डालता है। मगर शास्त्री जी इन सबसे अविचलित रहे। प्रधानमंत्री रहते हुए सरकारी गाड़ी का प्रयोग वे केवल राजकीय कार्य के लिए ही करते थे। एक बार उन्हें पता चला कि उनके पुत्र ने व्यक्तिगत कामकाज के लिए गाड़ी का उपयोग कर लिया है तो उन्होंने बेटे पर तो गुस्सा किया ही साथ ही राजकीय कोश में उसकी राशि जमा करवाई।
प्रधानमंत्री आवास में रहते हुए इस कठोर अनुशासन के चलते घर वालों को आने-जाने में कठिनाई का सामने करना पड़ता था। तब निजी कार खरीदना तय हुआ। शास्त्रीजी के पास इतने पैसे नहीं थे कि कार खरीद कर दे सकें लिहाजा पंजाब नेष्नल बेंक से कर्ज लेकर कार खरीदी गई । उनकी मृत्यु तक जिसकी किस्ते नहीं जमा हो पायी थे। उनकी पत्नी ललिताजी अपनी पसंद की साड़ी तक नहीं खरीद पाती थीं। कोई उन्हें भेंट करें ये मंजूर नहीं था।
आज के राजनेता पद पाते ही परिवार ही नहीं बल्कि आने वाली कई पीढ़ियों की सम्मपति के इंतजाम में जुट जाते हैं
ऐसे ही उदाहरण है जब उन्हें पता चला कि प्रधानमंत्री के पुत्र होने के कारण उन्हें नौकरी मिल रही है तो उन्होंने बेटे को नौकरी स्वीकार नहीं करने दी । वैभव के इन दिखवों के बीच लालबहादुर शास्त्रीजी की सादगी और ईमानदारी के उदाहरण आने वाली पीढ़ी को भले ही एक मनगणंन्त कहानी लगे किन्तु यही वे गौरवबिन्दु भी माने जाएंगें, जिन पर भारतीय लोकतंत्र गर्व कर सकता है।
कुछ ऐसी बातें है जो शास्त्रीजी को खास बनाती है । आईए जाने क्या हैं वे
शास्त्रीजी का ही सुझाव था कि उग्र भीड़ को तितर बितर करने के लिए लाठी चार्ज की बजाए पानी की बैछार किया जाना चाहिए । क्योकि लाठी चार्ज अमानवीय कृत्य प्रतीत होता है। जो आज भी कायम है । जब तक मामला गंभीर नहीं होता पानी की बौछार ही भीड़ को तितर-बितर करने के लिए किया जाता है।
जब वे ट्रांसपोर्ट मंत्री थे तब महिलाओं को ट्रांसपोर्ट सेक्टर से जोड़ने के लिए उन्होने बतौर कंडक्टर उनकी नियुक्ति की थी।
पीएल-480 योजना के तहत भारत उन दिनों भारत अनाज के लिए उत्तरी अमेरिका पर निर्भर हुआ करता था । ये बात सन् 1964 की है। उन्होंने किसानों और जवानों को सबल करने हेतु कार्य किया और नारा दिया जय जवान जय किसान।
आजादी की लड़ाई में असहयोग आंदोलन के दौरान वे पहली बार जेल गए तब उनकी उम्र महज 17 साल की थी। नबालिग होने के कारण वे रिहा भी हो गए।
जब वे बाद में जेल में थे तो उनकी पत्नि ने चुपके से उनके लिए आम लाया तो वे पत्नि पर भड़क गए और कहा कि ये जेल के नियम के खिलाफ है। वे पाकिस्तान से युद्ध के बाद समझौते के लिए ताशकंद गए थे। समझौते पर हस्ताक्षर के नौ घंटे के बाद 11 जनवरी 1966 को हार्ट अटैक से उनकी मृत्यु हुई ये घटना आज भी संदेह के घेरे में है। शास्त्री जी के परिवार ने उनकी मृत्यु से जुड़ी फाईल सार्वजनिक करने की मांग की है।
उनका व्यक्तित्व ऐसा था कि विपक्षी पार्टी भी उनका सम्मान करती थीं।