कान्ति कुमार जैन की किताब एक था राजा के कुछ पन्नों से ली गई ये जानकारी चूंकि बस्तर के परिपेक्ष्य में है इसीलिए मैने उल्लेख करना जरूरी समझा । इसमें बस्तर के भारत में विलय होने की जानकारी दी गई थी ।
जो इस प्रकार है
बस्तर छत्तीसगढ़ की एक बहुत पुरानी रियासत है।
इसका क्षेत्रफल करीब 18000 स्क्वायर किलो मीटर है। यहां खनिजों का बड़ा भण्डार है। यह क्षेत्र आदिवासी बहुल है।
निजाम के प्रतिनिधि मिले प्रवीरचंद भंजदेव से
सन् 1947 के सितम्बर के महीने में हैदराबाद के निजाम के प्रतिनिधि महाराज प्रवीणचंददेव से बस्तर की राजधानी जगदलपुर में मिले और उन्होंने में कहा कि हैदराबाद और बस्तर मिल जायें और स्वतंत्र देश बनायें। इसके लिये आप जो कहेंगे वह हो जायेगा। उन्होंने कहा कि, हैदराबाद बस्तर मिलकर समृद्ध स्वतंत्र देश बनेगा। महाराजा प्रवीर चंद सब सुनते रहे और कुछ नहीं बोले। उनको समझ में आ गया कि, निजाम के क्या इरादे हैं?प्रवीरचंद और राजानुज प्रताप सिंहदेव की भेंट
उस समय ईस्टन स्टेट एजेंसी के अध्यक्ष, कोरिया के राजा हिज़ हाईनस राजा रामानुज प्रताप सिंहदेव थे। ईस्टन स्टेट एजेन्सी में छत्तीसगढ़ की रियासतें, उड़ीसा की रियासतें, बंगाल की कुछ, बिहार और पूर्व राज्य के त्रिपुरा रियासतें शामिल थी। एक-दो दिन बाद महाराजा प्रवीणचंददेव रायपुर गये और कोरिया के राजा रामानुज प्रतापसिंहदेव से मिले और उनको निजाम के प्रतिनिधि ने जो कहा, वह बताया।
सरदार वल्लभ भाई पटेल से भेंट
राजा रामानुज प्रताप सिंहदेव ने बस्तर के महाराज से कहा कि आपके ऊपर दबाव पड़ सकता है। मैं सोचता हूँ कि आप कुछ दिन अज्ञातवास में रहें। मैं आपका इंतजाम कलकत्ता के स्पेंसर होटल में करा देता हूँ। यह होटल राजभवन के पास है। मेरा प्रतिनिधि आपसे मिलकर सब इंतजाम कर देगा। कलकत्ता में भी आप ज्यादा मत घूमियेगा।
जानिए! ब्रिटिश दौर के बस्तर के बारे में
बस्तर महाराजा एक सप्ताह कलकत्ता में रहे। इस बीच में राजा रामानुज प्रताप सिंहदेव दिल्ली गये, और सरदार बल्लभ भाई पटेल से मिले। उनको सब बातें बतायीं। सरदार पटेल ने कहा कि हो सके तो बस्तर महराजा को दिल्ली में मेरे पास ले आयें। बस्तर महाराज कलकत्ता से एक सप्ताह के बाद वापस रायपुर आये और राजा साहब से मुलाकात हुई।
कोरिया राजा महाराजा बस्तर को दिल्ली ले गये और सरदार पटेल से मुलाकात करायी। सरदार पटेल ने कहा कि आप निश्चित रहें। आपके ऊपर कोई दबाव नहीं आयेगा। जो करना है, मैं कर लूंगा। सरदार पटेल ने कहा आप देश भक्त हो, कोई भी समस्या हो मेरे पास आ जाना। नम्बर 47 में महाराजा बस्तर ने भारत में विलय होने के संधि में नागपुर में हस्ताक्षर कर अपनी देश भक्ति का परिचय दिया।
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कौन है कांति कुमार जैन
सितम्बर, 1932 को सागर (म.प्र.) के देवरीकलां में जन्मे कान्तिकुमार जैन ने कोरिया (छत्तीसगढ़) के बैकुंठपुर से 1948 में मैट्रिक करने के बाद उच्च शिक्षा सागर विश्वविद्यालय में प्राप्त की। मैट्रिक में हिन्दी में विशेष योग्यता के लिए उन्हें कोरिया दरबार स्वर्णपदक से नवाजा गया। विश्वविद्यालय की सभी परीक्षाओं में उन्होंने प्रथम श्रेणी, प्रथम स्थान व स्वर्णपदक हासिल किए। 1956 से मध्यप्रदेश के अनेक महाविद्यालयों में शिक्षणोपरांत सन् 1978 से 1992 तक डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर में माखनलाल चतुर्वेदी पीठ पर हिन्दी प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष रहे।
कांतिकुमार जैन के उपलब्धियां
कान्तिकुमार जी ने छत्तीसगढ़ की जनपदीय शब्दावली पर शोध तो किया ही, उनकी पुस्तकों- छत्तीसगढ़ी बोली व्याकरण और कोश, नई कविता, भारतेन्दु पूर्व हिन्दी गद्य, कबीरदास, इक्कीसवीं शताब्दी की हिन्दी, छायावाद की मैदानी और पहाड़ी शैलियां ने खूब चर्चा बटोरी। सागर विश्वविद्यालय की बुंदेली पीठ की ओर से प्रकाशित बुंदेली लोकसंस्कृति की पत्रिका ईसुरी के ख्यात सम्पादक रहे कान्तिकुमार जी ने इस पत्रिका की ख्याति को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाया।
कान्तिकुमार जी पिछले एक दशक से संस्मरण लेखन में सक्रिय हैं। सन् 2002 में प्रकाशित उनकी संस्मरणों की पहली पुस्तक लौट कर आना नहीं होगा से ही संस्मरणों विधा में बेहद चर्चित होने के उपरांत 2004 में तुम्हारा परसाई, 2006 में जो कहूँगा सच कहूँगा, 2007 में अब तो बात फैल गई, 2011 में बैकुंण्ठपुर में बचपन’’ और 2014 में महागुरु मुक्तिबोध जुम्मा टैंक की सीढ़ियों पर शीर्षक से 6 पुस्तकें प्रकाशित हुई जिनकी न सिर्फ हिन्दी संस्मरण साहित्य की दुनिया में खूब चर्चा हुई बल्कि उच्च प्रशंसित होकर संस्मरण के मानक पुस्तकों के रूप में भी उनकी गिनती हुई और आज कान्तिकुमार जी संस्मरणाचार्य के रूप में ख्यात हैं। भविष्य में पप्पू खवास का कुनबा, शेक्सपियर वाया प्रो. स्वामीनाथन प्रकाश्य हैं।