जिया डेरा
दशहरा से जुड़ी एक अन्य भवन जिसे जिया डेरा कहा जाता है यह गीदम रोड पर गुरूगोविंद सिंह चौक से कुछ दूरी पर ही
जिया का अर्थ
बस्तर में जिया का मतलब पुजारी होता है। दंतेवाड़ा में भी पुजारी को जिया पुकार जाता है। दषहरा पर्व के दौरान लगभग 150 की संख्या में सेवादार मावली देवी की डोली और दंतेश्वरी देवी का छत्र लेकर जगदलपुर आते है और वे जिया डेरा में विश्राम करते है। डेरा का मतलब ठहरने का स्थान ।
यहीं से मावली देवी को दशहरा खत्म होने के बाद पूरे साज-श्रृंगार से ससम्मान विदाई दी जाती है।
माड़िया सराय
बस्तर दशहरे के दौरान बस्तर जिले के समस्त देवी देवता आमंत्रण पर बस्तर आते हैं और रथ परिचालन के दौरान रथ पर सवार होते हैं । मान्यता यह है कि रथ का भार समान्य से कुछ ज्यादा रहता है । परम्परानुसार रथ को खीचंने के लिए माड़िया समुदाय को ही जिम्मेदारी सौंपी जाती है जो किलेपाल -कोड़ेनार गाँव से होते है। इस जिम्मेदारी के तहत किलेपाल परगना के लगभग 40 गांवों के ग्रामीण ही रथ खींचते हैं।
जगदलपुर से 45 कि.मी. की दूरी पर स्थित कोड़नार किलेपाल क्षेत्र के माड़िया जनजातियों के देवी-देवताओं को भी दशहरा में शामिल होने का आमंत्रण आयोजन समिति की ओर से दिया जाता है। परगना के ग्रामीणों द्वारा आमंत्रण स्वीकार करने के बाद बैठक आहूत की जाती है। बैठक में यह तय किया जाता है कि कितनी संख्या में रथ परिचालन के लिए लोग जगदलपुर पहुंचेगें। परगना के लोगों के आने-जाने की व्यवस्था आयोजन दषहरा समिति के द्वारा की जाती है। संख्या के आधार पर निर्धारित तिथि में समिति के द्वारा 40 से 50 वाहन उपलब्ध कराए जाते हैं और परगना के ग्रामीणों को जगदलपुर तक पहुंचाया जाता है। उनके रूकने की व्यवस्था एक सराय में की जाती है। इसी को माड़िया सराय कहा जाता है।
बस्तर दशहरा में ग्राम बड़े किलेपाल के माड़िया जनजातियों की अधिठात्री देवियां खांडा कंकालिन, कुतुमनारिन और बामन देवी का छत्र माड़िया सराय में स्थापित किया जाता है। किलेपाल परगना के मांझी के अनुसार निशा जात्रा के पूर्व इन देवियों की पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता के अनुसार खांडा कंकालिन, कुतुमनारिन और बामन देवी, दन्तेश्वरी मांई की पुत्रियां हैं। भीतर रैनी तथा बाहर रैनी में रथ परिचालन में रथ के सामने इनकी छत्र अगुवानी में रहती है।
रियासत काल में बिदाई में होती बलि
इनके विदाई के समय रियासत काल में सात बकरों की बलि दी जाती थी। वर्तमान में एक
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बकरे की बलि दी जाती है। किलेपाल परगना के तीन देवियों के छत्र के साथ लगभग 80-90 लोग आते हैं। देवी-देवताओं को लेकर कुछ पुजारी और सिरहा जगदलपुर पहुँचते हैं, जिन्हें माड़िया सराय में स्थान दिया जाता है।
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