आज की भागदौड़ भरी ज़िदगी में हम छोटी-छोटी बातें जाने अनजाने में नजरअंदाज कर बैठते है, और यही छोटी बात आगे चलकर बहुत बड़ा नकारात्मक प्रभाव डालती है। मै उन पालक अभिभावकों के बारे में बात कह रहा हूॅं जो दिन रात एक करके परिवार खासतौर से बच्चों के लिए मेहनत करते हैं । ऐसे में उन्हें कई दिनों तक बच्चों से दूर रहना पड़ता है या शहर में होने के बावजूद भी बच्चों को समय नहीं दे पाते हैं ।
एक सामाजिक सर्वेक्षण के मुताबिक ऐसे माहौल में पले-बढ़े बच्चे जिद्दी, गुस्सैल होते है और उनमें कुछ पाने के लिए बस एक ही सहारा दिखता है वह है गुस्सा दिखाना या जिद करना । जाहिर है बचपन से किराए के अभिभावक द्वारा लालन पालन होने के कारण माता-पिता उनके लिए सिर्फ पैसे देने वाले लोग ही होते हैं जिनसे वे भावनात्मक रूप से नहीं जुड़े रह पाते है। दरअसल भावनाएं जो माता-पिता के प्रति होती है वह खत्म हो चुकी होती है । बच्चे का मानसिक विकास 3 साल की उम्र से ही होने लगता है ।
क्या बदलाव हैं ?
3 से 12 साल तक के बच्चे काफी जिज्ञासु और हर चीज को देखकर या महसूस कर, चखकर या सुनकर सीखना चाहते है। ऐसे में उनके आसापास जो भी चीजें आती है वे जानना चाहते हैं । सर्वेक्षण दल की ऐसे माता-पिता से जब बात हुई और इस मुलाकात में हुई बातचीत को पांच सवालों की कैटेगैरी में बांटा गया है, आईए एक नज़र डालते है बातचीत में निकल कर आए निर्ष्कष पर ।
1 क्या आप अपने बच्चे से एक सारगिर्भित बात कब शुरू करते है?
‘‘आज का दिन स्कूल में कैसा था?’’ लंच किया ? किसी को अपना लंच दिया ? ’’अपने सहपाठी की मदद कैसे किया’’ ? इत्यादि । ऐसे प्रश्नों को पूछते समय आप कितना उत्साह दिखाते हैं ।
इससे यह होगा ?
इस प्रकार के प्रश्न बच्चे से बातचीत करने का और उसे अपनी बात रखने के लिए काफी उकसाता है। और बच्चा उत्साह से अपने विचार रखता है। अपनी बात कहते वक्त उसमें ये बात पैदा हो जाती है कि मेरे माता-पिता मेरी बात सुनते है और मुझमें दिलचस्पी दिखाते है । इससे संबध प्रगाढ़ बनते हैं और बच्चा आपको हर बात बताएगा। ध्यान रखिए प्रत्येक बच्चा चाहता है कि उस पर माता -पिता ध्यान केंन्द्रित करें।ऐसे में जब बच्चा आपको कुछ कहना चाहता है तो उसे टोके नहीं बल्कि उसे बालने दें । तथा लोगों के सामने खासतौर पर उस वक्त जब घर में कोई मेहमान आते हैं तब उसे बालने के लिए प्रोत्साहित करें न कि उसे कहें अपने कमरे में जाओ आपकी जरूरी बातें बच्चे के बाद भी पूरी हो सकती है मगर बच्चे के जहन में एक बार डांट का डर आ गया तो इसके गंभीर परिणाम होते हैं।
2 छोटी मोटी समस्याएं बताएं और उससे सलाह मांगे।
अपने बच्चों को अवश्य बताएं कि जीवन में कुछ पाने की खुशी है तो उन्हें खोने का दुख भी है । सुख और दुख जीवन में आते हैं । इससे बच्चे में कुछ खो जाने से या टूट जाने से निराशा नहीं आएगी और बच्चा मानसिक रूप से मजबूत भी बनेगा। उसे स्कूल के दिनों से ही इस बात पर तैयार करें कि उसे सब कुछ पाना ही नहीं कुछ खोना भी है।
इसकी शुरूआत कैसे हो
जैसे कुछ ड्राइंग बनाईए और उसे जानबूझ कर बिगाड़ दीजिए और बच्चे से पूछिए कैसे करना है। वह बताएगा आइडिया उसे ध्यान से सुनिए भलेे ही गलत हो उस पर अमल करें बाद धीरे से उसे सुधार दीजिए। कभी-कभी अपनी कुछ चीजों के खो जाने का ढोंग करिए और बताईए कि कोई बात नहीं मै फिर से हासिल कर लूगा।
इससे क्या होगा ?
इस प्रकार की गतिविधियों से बच्चे में आत्मबल जागेगा। देखिएगा उसमें कुछ समय में उसके व्यवहार में बदलाव आएगा।
बच्चे की तारीफ करें या उससे काम को श्रेय दें
मान लिजिए कोई बच्चा दीवार पर कुछ लिखता है या उस पर कोई आकृति उकेरता है तो आम तौर पर हम उसे डांटते-फटकारते है । इससे वह हतोत्सहित होता है। बल्कि ऐसे में हमें कहना चाहिए -’’वाह ! बहुत बढ़िया बनाई है ! लेकिन !ये बनाने की जगह नहीं है ।’’
बच्चे के नजरिए से जरा सोचिए उसके पास साधन नहीं थे वह अपनी क्रिएटिवीटी को कहां निकालता । अतः उसने दीवार पर ही बना दी। कहने का तात्पर्य यह है कि उसे सही काम करने के लिए उकसाएं न कि फटकारें । इसके बाद आप उसे ड्राइंग का सामान दिलवा दें । जिससे वह रंगों की पहचान कर सके । साथ ही कई आकृतियों से वह रूबरू हो सके। साथ ही उसे हर बार कहें ’’बढ़िया है ! मगर आप इससे भी बढ़िया बना सकते हो।’’और गलतियों पर कहें कोई बात नहीं ! होता है! आप फिर से बना सकत हो’’ या दोबारा प्रयास करो जरूर सफलत मिलेगी। ’’
अक्सर हम बच्चे को डांटते फटकारते समय कहते हैं फलां का बेटा या बेटी कितनी अच्छी है तुम उसके मुकाबले कुछ भी नहीं । मनोवैज्ञानिकों की माने तो यहीं से बच्चें में हीन भावना आने लगती है। अपने बच्चे की तुलना किसी से न करें न ही उसे ये कहें कि तुम कुछ नहीं कर सकते। इससे उसमें हीन भावना घर कर जाएगी। और वह हताश हो सकता है।
तारीफ खासतौर पर जो मातापिता से बच्चे को मिलती है वह उसके लिए अमूल्य होता है । जब बच्चा कुछ निर्माण करता है तो उससे बारे में जानकारी बच्चे से ही पूछे
जैसे क्या है यह ? कैसे बनाया ? क्या इसे कागज में बना सकते हो? ’’चलो इसे दूसरी जगह बनाते हैं यह जगह ठीक नहीं है’’ इत्यादि इत्यादि।
इससे बच्चे को प्रोत्साहन मिलेगा। और उसे नए काम करने मंे डर या तकलीफ नहीं आएगी।
केवल 10 मिनट प्रतिदिन
केवल 10 मिनट बच्चे के साथ गुजारे और इस दौरान अपने कामकाज के बारे में, आपने बारे में दिन भर जो बीती है- उसमें क्या मजेदार रहा, क्या निराशाजनक रहा इसे मनोरंजक ढंग से बताईए। जब भी बच्चा कहीं बाहर से आए तो मुस्कराकर उसका स्वागत कीजिए! फिर जो शिकायत हो तो ठंडे दिमाग से उससे बात कीजिए! ऐेसा करने पर वह आपको हर बात बताएगा।
इससे क्या होगा
बच्चे को पता चलेगा कि काम का महत्व क्या होता है? उसे अवसरों के उपयोग का पता चलेगा। जब हम बच्चों से भी स्कूल या बाहर बिताए पलों के बारे में जानेगें तो वह खुलकर बातें बता सकेगा जो आजकल बहुत जरूरी है। साथ ही उसमें सही गलत का आभास होगा।
बच्चों के साथ हों तो मोबाईल का साथ छोड़िए।
जब हम घर पर होते है तो आमतौर पर ये देखा गया है कि बच्चों से चर्चा करने के बजाए हम अपने मोबाईल में ज्यादा ध्यान देते हैं । उपरोक्त सभी बातें को अमल करने में एक बात का ध्यान रखें कि माबाईल हमेशा दूर रहें ध्यान रखें बच्चों से उसके स्कूल या दोस्तों की चर्चा में आपका ध्यान मोबाईल पर न रहे वर्ना बात की गंभीरता नहीं रहेगी और उसका असर नहीं दिखेगा।
अगर सफल बच्चों के कहानियों पर गौर करें तो पाते है कि जिन बच्चों के माता-पिता का ध्यान बच्चों पर बराबर रहा है तो वे पढ़ाई लिखाई और खेलकूद में अच्छा प्रर्दशन कर पाएं है।