क्या आपने कभी ऐसे विवाह के बारे में सुना है जिसमें अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे बिलकुल नहीं ली जाती । जी हां ! मै जिस विवाह की बात कर रहा हूँ उसमें वर-वधु अग्नि के बजाए पानी को साक्षी मानकर विवाह बंधन में बंध जाते हैं ।
है न अनोखी बात ! इसीलिए मैने सोचा कि इसकी जानकारी आप तक पहुँचानी चाहिए । कौन सा ऐसा समाज है जिसमें इस तरह का विवाह किया जाता है ? फिलहाल, मै बस्तर की बात आपको बता रहा हूँ ।
कहाँ होता है ऐसा विवाह ?
बस्तर के धुरवा आदिवासी समाज में इस तरह अनोखा विवाह किया जाता है। पिछले दिनों डॉ सतीष ,जैनायन की किताब कांगेर का संसार पढ़ने को मिला । उसमें ये सारी जानकारी निकल कर आयी तो सोचा साझा करूं । लेखक के मुताबिक इसमें हमारे समाज में होने वाली विवाह की तरह वर वधु की मांग नहीं भरता , कन्यादान नहीं होता न ही कोई हवन -पूजन होता है।
इस प्रकार के विवाह में केवल बकरा, देशी शराब और एक पेय जिसे लांदा कहते हैं दिया जाता है । जानते हैं कैसे धुरवा समाज में इस प्रकार का विवाह सम्पन्न कराया जाता है।
कैसे होता है यह विवाह
इस विवाह में जल,जंगल साक्षी होते हैं । घर के पास मौजूद खुली जगह पर वर वधु के पक्ष उत्सव मनाते हुए जमा होते हैं । और पेरमा (गाँव का पुजारी) मंत्रोच्चार करते हुए हांडी भर पानी वर-वधु दोनों पर उढ़ेल देता है। और फिर समारोह पूर्वक विवाह होता है । यह समारोह लगभग सप्ताह भर चलता रहता है। किताब में ऐसी जानकारी दी गई है कि इस हांडी को वर -वधु के निकटतम परिजन पकड़ होते हैं और इस हांडी का मुंह बांस के बने ढक्कन से ढका हुआ होता है।
दुल्हन बारात लेकर जाती हैं
विवाह के एक दिन पहले वधु को वर के घर पर उसके परिजन लेकर आते हैं और वर पक्ष उन्हें अपने साथ पूरे सम्मान से अपने साथ लेकर जाते हैं । वधु की बारात निकाली जाती है जिसमें केवल महिलाएं होती हैं। और मां, मौसी बुआ इत्यादी इनकी अगुवाई करते हैं। आधुनिक समाज के विवाह से अलग धुरवा समाज का यह विवाह बस्तर में होता है जिसमें निभाए जाने वाले रस्म भी अलग ही होते हैं।
इसमें आधुनिक विवाह की तरह
दुल्हन की मांग नहीं भरी जाती
दुल्हा बारत लेकर दुल्हन के घर नहीं जाता
विवाह अग्नि के समक्ष सात फेरे लेकर नहीं की जाती