महात्मा गांधी और अशोक सम्राट के बीच समानता को लेकर कई पिछले दिनों गूगल में सर्च किया गया था।
प्रथम दृष्टया दोनों में कोई समानता नहीं दिखती है । लेकिन अगर जीवन चक्र दोनों की देखें तो बड़ी गहरी समानता देखने में आती है वह है सिद्धांतों की समानता दिखाई देती है। इनके बारे में चर्चा करते हैं और जानते हैं कि किस प्रकार दोनों में समानताएं बताई गई हैं। कई सहस्त्राब्दि के बाद जन्में गांधी जी से अशोक की तुलना करना क्या इसीलिए जरूरी है कि दोनों ने साम्राज्य से लोहा लिया । और उसे अखाड़ दिया?
गांधी जी और अशोक के जीवन में एक ऐसा दौर आया जिसने दोनों को पूरी तरह से बदल कर रख दिया ।
पहले अशोक की बात करते हैं । तीसरी सदी (268 से 232 ईसा पूर्व )के राजा अशोक कलिंग युद्ध के पहले पूरी तरह से साम्राज्य वादी थे और अहिंसा पुजारी के तौर पर नहीं बल्कि चंडाशोक यानि निर्दयी या क्रूर राजा के तौर पर उनकी पहचान थी। फिर कलिंग युद्ध की विभिषिका ने अशोक को पूरी तरह से बदल कर रख दिया । साम्राज्य विस्तार के लिए सम्राट अशोक ने कलिंग के राजा अनंत पद्नाभन के बीच भीषण युद्ध 262 ईपूर्व लड़ा गया । जैसा कि जानकारी है कि यह युद्ध पूरी तरह से अशोक के जीवन को बदल कर रख दिया और वह अब चंडाशोक से धर्माशोक बन गया । इसी युद्ध के बाद अशोक ने आचार्य उपगुप्त की शरण में जाकर बौद्ध धर्म अपना लिया । बौद्ध धर्म अपनाने के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रसार प्रचार के लिए कई काम किए । आम जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए कई कल्याणकारी काम किए इसीलिए अशोक आज इतिहास में अमर है। भारत सरकार ने सारनाथ के लौह स्तम्भ का चार शेरों को प्रतीक बनाया है। अब गांधीजी से उनके समानता को लेकर चर्चा करते हैं तो पाते हैं कि गांधीजी के जीवन में वकील बनने के बाद एक नया बदलावा आया जब वे दक्षिण अफ्रीका में एक बतौर बैरिस्टर (वकील) एक केस के लिए गए थे । जब उन्हें सिर्फ भारतीय होने के कारण रेल से सामानों के साथ प्लेटफार्म में फेंक दिया गया । समझते है कि एक साथ कलिंग युद्ध तो दूसरे साथ अपमान की घटना।
ये दोनों घटनाओं ने दोनों का पूरा व्यक्तित्व बदल कर रख दिया । गांधी जी एक बैरिस्टर यानि वकील के रूप में जीवन जीने को अग्रसर थे तो अशोक एक साम्राज्यवादी शासक के तौर पर जाने जाते थे ।
अशोक और गांधी दोनों ने अंहिसा का खूब प्रचार प्रसार किया ।
गांधीजी ने अंहिसा पर बल देते हुए अपने सभी आंदोलनों का स्वरूप अंहिसात्मक रखा । 1920 की बात है ।
गांधीजी का असहयोग आंदोलन चरम पर था। अंग्रेज सरकार इसे रोकने में असमर्थ थी। उस दौरान जब एक जुलुस हिंसात्मक हो गई और उत्तरप्रदेश के चैरी चैरा में कुछ पुलिस वाले की मौत हो गई तो गांधी जी असहयोग आंदोलन बंद कर दिया ।
कहने का तात्पर्य यह है कि आंदोलन अपना मूल उद्देष्य से हट कर चलने लगा तो गांधी जी ने इसे रोकना ही बेहतर समझा।
धर्म के प्रति दोनों ही के समझ में समानता थी।
अशोक जहां बौद्ध धर्म को प्रति आस्था रखते थे।
वहीं गांधीजी हिन्दु धर्म के अनुयायी थे और अन्य धर्मो के प्रति उनकी जिज्ञासा भी अधिक थी जाहिर है अशोक के समय में अन्य धर्मों का अस्तित्व नहीं था क्योंकि उस वक्त न मुगल आए थे न ही अंगे्रज दोनों ही व्यक्तिगत और सामाजिक संबंधों को तरजीह देते थे।