बात 1942 की है 13 साल के तुलेन्द्र ने एक दिन अपने मित्र के यहां स्वामी विवेकानन्द की टंगी फोटो देखी जिस नीचे उनका एक उद्घोष लिखा था ‘‘ जो अपने आप में विश्वास नहीं करता वह नास्तिक है।’’ इस लाईन और उस तस्वीर ने बालक तुलेन्द्र के जीवन में गहरा असर डाला आगे चलकर यही बालक स्वामी आत्मानन्द (Swami Atamanad ) कहलाया ।
स्वामी आत्मानंद की कौन है ?
Who is Swami Atamanad ?
6 अक्टूबर 1929 को छत्तीसगढ की राजधानी रायपुर में जन्मे स्वामी आत्मानंद का बचपन का नाम तुलेन्द्र था इनके पिता धनीराम वर्मा रायपुर के पास मांढर स्कूल में एक अध्यापक थे। इनके अथक प्रयासों से रायपुर स्थित विवेकानन्द आश्रम की स्थापना की गई जो आज भी है। इसी आश्रम के वे पहले सचिव थे। मगर सचिव बनने के पहले और तुलेन्द्र से स्वामी आत्मानंद बनने तक का सफर शायद आज की पीढ़ी को नहीं मालूम । जानने के लिए अंत तक इसे पढ़िए।
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कैसे बने तुलेन्द्र से स्वामी आत्मानंद
जैसा कि मैने बताया कि पिता रायपुर के पास मांढर में एक अध्यापक थे और अध्यापक के तौर पर उन्हें उच्च प्रशिक्षण लिये वर्धा जो नागपुर में जाना हुआ। और उनके पिता सपरिवार वर्धा चले गए । वहीं बालक तुलेन्द्र महात्मागांधी से मिले । वे भजन अच्छा गाते थे धीरे धारे बालक तुलेन्द्र महात्मा गांधी के चेहते बन गए । जाहिर है , उनके व्यक्तित्व छाप तुलेन्द्र पर भी पड़ी।
छत्तीसगढ़ के विकास में स्वामी आत्मानंद के योगदान का वर्णन कीजिए
इसके बाद 1943 में उनके पिता वापस रायपुर लौट आए और श्री राम स्टोर नामक दुकान चलाने लगे। इसके बाद तुलेन्द्र ने रायपुर के सेंटपाॅल स्कूल से हाई स्कूल की परीक्षा में अव्वल आए और आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने नागपुर के साईंस कालेज में दखिला लिया । चूंकि रहने को हाॅस्टल में जगह नहीं थी तो वे रामकृष्ण आश्रम में रहने लगे और और अपनी पढ़ाई पूरी की । आश्रम में रहते हुए स्वामी विवेकानन्द दर्शन से वे काफी प्रभावित हुए और प्रतिदिन आश्रम की आरती और अन्य कामों में वे बढ़-चढ़ हिस्सा लेते रहे।
यहीं से वैराग्य और सेवा की भावना उनमें आई वे वे धीरे धीरे स्वामीजी के विचारों को अपने निजी जीवन में भी अपनाने लगे। एमएससी गणित की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास करने के बाद दोस्तों की सलाह पर वे आईएएस की परीक्षा में बैठे और प्रथम दस में अपना स्थान बनाया मगर मानवसेवा और वैराग्य की भावना के चलते आईएएस की मुख्य परीक्षा में सम्मिलित नहीं हुए और दूसरा ही रास्ता अपना लिया ।
भारत की आजादी के बाद वे रामकृष्ण मिशन से जुड़ गए। 1957 में उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर स्वामी शंकरानंद ने उन्हें ब्रम्हचर्य की दीक्षा दी। और नाम दिया स्वामी तेज चैतन्य।
इसके बाद हिमालय स्वार्गाश्रम में एस साल कठोर साधना कर रायपुर आए। और स्वामी भाष्करेश्वरानंद से संस्कार की शिक्षा ली और यहीं से उन्हें नया नाम मिला -स्वामी आत्मानंद। (Swami Atamanad )
1877 -79 को स्वामी विवेकानन्द रायपुर में थे उनकी इस आगमन को यादगार बनाने के लिए रायपुर में स्वामी आत्मानंद के प्रयासों से अप्रेल 1962 रामकृष्ण आश्रम की स्थापना हुई। मृत्यु 27 अगस्त 1989 को भोपाल से रायपुर लौटते समय सड़क हादसे में मृत्यु हुई।
वे छत्तीसगढ़ में जन्में ऐसे संत थे जिनके विचारों और कार्यो ने आज पूरे प्रदेश को गौरान्वित किया है। स्वामी आत्मानंद के बारे में 10 लाइन लिखें तो कम ही होगा। स्वामी आत्मानंद निबंध
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