एक समय था जब देश में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के उत्पादों का बोलबाला था। फिर आया स्वामी रामदेव (Swami Ramdev) की पतंजली से बने उत्पादों का दौर जिसने दशकों से लोगों के जहन में बसे उत्पादों की अच्छी खासी दुकानदारी को हिला कर रख दिया ।
ये कहानी 1990 से शुरू होती है
जी हां बाबा रामदेव यानि रामकिशन यादव की कहानी 1990 से शुरू होती है । थोड़ा और पीछे चलें तो पाते हैं कि 1965 में हरियाणा के अलीपुर गांव में जन्मे रामकिशन यादव की स्कूली शिक्षा महज आठवीं तक है। फिर उसने 25 वर्ष की उम्र में संस्कृत और योग सीखने हरियाणा के खानपुर गुरूकुल में पढ़ाई की फिर इसके बाद जींद जिले के कलवा गुरूकुल में आए । ये वह समय था जब उन्होंने सन्यास नहीं लिया था।
खानपुर में उनके योग गुरू आर्चाय पद्युम्न और योगचार्य वल्देव उनके गुरू थे। यानि संस्कृत और योग की शिक्षा आज के स्वामी रामदेव अपने उम्र 25वे वर्ष में इन्हीं से मिली थी । 1992 में गुरूकुल से निकलकर हिमालय चले गए । पांच सालों तक हिमालय में रहने के बाद वे हरिद्वार आए और अपने गुरू शंकददेव महाराज के आश्रम से लोगों को योग सीखाना शुरू कर दिया ।अब वे रामकिशन नहीं स्वामी रामदेव कहलाए क्योंकि उन्होंने बकायदा सन्यास ले लिया था। यहीं से एक ट्रस्ट की स्थापना हुई जिसका नाम था दिव्य योग ट्रस्ट । यह ट्रस्ट उनदिनों हरियाणा और राजस्थान के बड़े शहरों में योग कैंम्प लगाया करता था। समय बीता, ट्रस्ट के पमुख रहे 2002 गुरू शंकरदेव की बिगड़ती सेहत के करण रामदेव ट्रस्ट का चेहरा बने और उनके गुरूकुल के जमाने के मित्र पुराने सहयोगी बालकृष्ण इसमें वित्तिय विभाग देखा करते थे तो उनके दूसरे सहयोगी जिनका नाम कर्मयोगी है इस ट्रस्ट में प्रशासक बने ।
तीन ट्रस्ट के मालिक
इस ट्रस्ट का मकसद ही आम लोगों में योग शिक्षा का प्रसार-प्रचार करना था। उन दिनों को याद करते स्वामी रामदेव स्वयं बताते हैं कि दिल्ली में आयोजित एक शिविर में उन्हें पाचास हजार का दान मिला जिससे उन्होंने आयुर्वेदिक जड़ी बुटियों के कारोबार के बारे में सोचा जो आज 9023 करोड़ रूपए तक पहुँच चुका है।
लोक प्रसिद्धी की चरम सीमा
अब योग शिविर हरियाणा ,राजस्थान ,दिल्ली के बाद गुजरात और फिर मायानगरी मुंबई पहुँचा । शुरूआत में योग शिविर में 200 से 300 लोग ही आते थे । मगर जैसा कि स्वामी जी ने स्वयं एनडीटीवी को बताया दिल्ली के छत्रसाल में पहली बार 10,000 लोग जमा हुए । इस अप्रत्याशित भीड़ को योग सीखाने के लिए स्टेडियम में 4 मंच बनाने पड़े थे। इसी स्टेडियम में मुरली मनोहर जोशी और साहिब सिंह वर्मा भी योग सीखने आए थे।
जब मुबंई में शिविर लगा तो बाबा रामदेव को दुनियादारी का सबक भी सीखने को मिला । हरियाण के गुरूकुल से निकल कर योगशिक्षा का फैलाव काफी हो चुका था। लोकप्रियता भी काफी हो चुकी थी।
2002 में पहली बार रामदेव बाबा ने टेलीवजिन में आए। आज 25 चैनलों पर 7 भाषाओं में रामदेव बाबा का योग दिखाया जा रहा है। हांलाकि बाबा रामदेव योग पर स्वयं का विडियो भी बनाने लगे थे।
बाबा रामदेव 2003 से नियमित आस्था टीवी पर योग सीखाते आ रहें है। रामदेव बताते हैं कि बांद्र और कुर्ला काॅम्पलैक्स सुबह शाम योग सीखने वालों से भरा रहता था। कुछ अच्छे शरीर तो कुछ रोग मिटाने के लिये योग सीखने आते थे । योग सीखने वालों में अमिताभ बच्चन, शिल्पा शेट्ठी और अनगिनत नेता अभिनेता आया करते थे। अपने योग शिविरों में बाबा रामदेव अपने आयुर्वेदिक दवाओं की मार्केटिंग भी करते रहे जो बेहद सफल रही।
2006 में पंतजली योग पीठ का उद्घाटन हुआ जिसमें 25 राज्यों के मुख्यमंत्रियों की उपस्थिति रही जो अपने आप में एक इतिहास है। फिर रामदेव ने एक और ट्रस्ट की स्थापना की जिसका नाम था भारत स्वाभीमान ट्रस्ट
जिस तेजी से ट्रस्ट बने उसी तेजी से उनका व्यापार भी बड़ा । हरिद्वार में 600 एकड़ फैला है विशाल भूखंड है जिसमें 300 बिस्तरों वाला बहुखूबियों वाला अस्पताल, योग रिसर्च सेंटर, विश्वविद्यालय, आयुर्वेदिक फाॅर्मेसी,फूड पार्क और काॅस्मेटिक निर्माण इकाई है।
योग का चमत्कार और दवाओं का करोबार -
बाबा के ये दो अचूक बाण हैं जिनसे उन्होंने पूरी मानो दुनिया को अपने वश में किया है। ठीक उसी तरह जैसे पंडवानी गायन को तीजन बाई ने देश विदेश में ख्याति दिला दी ।
स्वामी रामदेव के पतंजली उत्पाद विवादों में भी रहे । उनके बारे में फिर कभी।
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