पुरातत्व संग्रहालय
पुरात्व मानव संस्कृति के विकास-क्रम को समझने एवं उसकी व्याख्या करने का कार्य करता है। यह विज्ञान प्राचीनकाल के अवशेषों और सामग्री के उत्खनन के विश्लेषण के आधार पर
अतीत के मानव समाज का सांस्कृतिक वैज्ञानिक अध्ययन करता है। इसके लिए पूर्वजों द्वारा छोड़े गए पुराने वास्तुशिल्प, औजारों, युक्तियों, जैविक तथ्यों और भू-रूपों आदि का अध्ययन किया जाता है। संस्कृत के शब्द ‘पुरा’ उपसर्ग से बना पुरातत्व, यूनानी शब्द आर्कियोलोजिया से निर्मित आर्कियोलाॅजी शब्द हिंदी का पर्याय है।
भारत की सांस्कृतिक विरासतों के पुरातत्वीय अनुसंधान तथा संरक्षण के लिए एक प्रमुख संगठन है। इसका प्रमुख कार्य राष्ट्रीय महत्व के प्राचीन स्मारकों तथा पुरातत्वीय स्थलों और अवशेषों का रखरखाव करना है। इस संदर्भ में जगदलपुर के सिरहासार चैक के समीप पुरातत्व संग्रहालय की स्थापना की गई है। इस संग्रहालय में बस्तर के ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व के मूर्तियों को प्रदर्शित किया गया है। बस्तर में खुदाई से प्राप्त प्राचीन मूर्तियों को संग्रहालय में संजोया गया है, जो इतिहास को सूत्र देते हैं।
स्थापना
संग्रहालय की स्थापना फरवरी 1988 में शुरूआत 25 प्राचीन मूर्तियों के साथ तत्कालिन कलेक्टर श्री नारायण सिंह, विभाग के उप संचालक डाॅ. जी.के.चन्दौल, श्री आर.आर. सिंह, पुरातत्ववेत्ता रायपुर वृत्त, जिला पुरातत्व संघ के सदस्य श्री शरद् वर्मा, श्री बसंत अवस्थी, श्री किरीट दोषी श्री एस.पी. तिवारी एवं अन्य गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति में संग्रहालय की स्थापना की गई । श्री नरेश कुमार, संग्रहालय के प्रथम संग्रहाध्यक्ष के रूप में पदस्थ हुए।
क्या है इस संग्रहालय में ?
वर्तमान में लोंगो के लिए 54 प्राचीन मूर्तियों को प्रदर्शित की गई है। प्राचीन मूर्तियों के अलावा स्वर्ण एवं रजत मुद्राए भी हैं । इन स्वर्ण मुद्राओं को लेकर अध्ययन की आवश्यकता है। पुरातत्व संग्रहालय में जिला नाजिरात शाखा में रखे रियासत कालीन भरमार बंदूकों को भी गैलरी में रखा गया है। इन दिनों पुरातत्व विभाग में यह आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। लगभग 30 भरमार बंदूकों को प्रदर्शिनी के लिए रखा गया है। इससे प्राचीन सभ्यताओं, संस्कृति एवं पूर्ववर्ती राजवशों की जानकारी मिलती है।
जिला कार्यालय के मालखाने में पिछले 43 वर्षोें से उपेक्षित पड़ी भारतीय स्वतंत्रता के शिलालेखों को भी संग्रहालय में लाया गया है। शहर के राजा रूद्रपताप देव लाइब्रेरी में पिछले 85 वर्षों से रखी उमा महेश्वर की दुर्लभ प्रतिमाओं को संजोया गया है जो 11वीं शताब्दी का है। इस संग्रहालय में 5 वीं तथा छटी शताब्दी की धरोहरें प्रदर्शित की गई है।
मानव विज्ञान संग्रहालय जगदलपुर
बस्तर के जनजातियों की संस्कृति और जीवन शैली में एक आकर्षक अंतरदृष्टि प्रदान करने के एकमात्र उद्धेश्य के साथ जगदलपुर में मानव विज्ञान संग्रहालय 11 दिसम्बर 1972 में स्थापित किया गया। शहर के धरमपुरा में स्थित यह संग्रहालय नृवंश विज्ञान में रूचि रखने वालों के लिए, अनेक वस्तुओं का एक अच्छा दर्शनीय संग्रहालय है।
प्राचीन भारतीय इतिहास में दण्डकारण्य के नाम से चर्चित आज का बस्तर अंचल आदिवासी संस्कृति के लिए पूरी दुनिया में जाना और पहचाना जाता है। आदिवासियों की विभिन्न जनजातियां यहाॅं निवास करती हैं। यहाॅं निवासरत जनजातियों के द्वारा
उपयोग में लाई जाने वाली भौतिक वस्तुओं का संग्रह केन्द्रीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण ने किया है। सम्पन्न और समृद्ध आदिवासी संस्कृति से संबद्ध भौतिक वस्तुओं को संग्रह कर एक स्थान पर सुरक्षित ढंग से संरक्षित रखने धरमपुरा में मानव विज्ञान संग्रहालय स्थापित किया गया है।
मानव विज्ञान संग्रहालय शहर के विभिन्न स्थानों में संचालित था। धरमपुरा में स्थापित करने के पूर्व यह संग्रहालय कलेक्टोरेट कार्यालय के समीप विजय भवन में संचालित था। तब इस संग्रहालय मेें लगभग 600 वस्तुओं को प्रदर्शित किया जा रहा था। स्थानाभाव के कारण जगदलपुर से चित्रकोट मार्ग पर करीब 2.5 एकड़ क्षेत्र में अवस्थित है। यह संग्रहालय अध्येताओं के लिए आकर्षण का केन्द्र है। बाहर से आने वाले बस्तर के आदिवासी संस्कृति को जानने के जिज्ञासु सैलानी मानव विज्ञान संग्रहालय अवलोकन के लिए पहंुचते हैं। भारत में मानव विज्ञान संग्रहालय की संख्या बहुत अधिक नहीं है। बस्तर में स्थित मानव विज्ञान संग्रहालय छत्तीसगढ़ का एकमात्र संग्रहालय है। आदिवासी कला संस्कृति पर केन्द्रित मानव विज्ञान संग्रहालयों में जगदलपुर तथा पोर्टब्लेयर, उत्कृष्ट संग्रहालय का दर्जा प्राप्त हैं। भारत के किसी एक क्षेत्र में इतनी अधिक संख्या में जनजातियों का निवास स्थान नहीं है जितना बस्तर में है। यहां जितनी जनजातियां हैं उतनी उनकी बोलियां भी है। बस्तर के मूल जनजातियों के जनजीवन से जुड़ी भौतिक वस्तुओं का संग्रह किया गया है ताकि इसे संरक्षित और सुरक्षित किया जा सके।
क्या देखने लायक है यहाँ ?
मानव विज्ञान संग्रहालय में दौ सौ वर्ष पुराना मृतक स्मृति स्तंभ, आदिवासियों के मकान निर्माण करने की कला, देवगुड़ी, लकड़ी की ढेकी, देंवी-देवताओं से जुड़े उनके प्रतीक चिन्ह, बेल मेटल की कलाकृतियां, लोक नृत्य में पहने जाने वाली पोषाक, लौह अयस्क गलाने की प्राचीन भट्टी, नाव, मत्स्याखेट में प्रयुक्त होने वाले साधन, लोक आभूषण, दैनिक जीवन की उपयोगी वस्तुएं वाद्य आदि वस्तुएं सैलानियों का दिल मोह लेती है। यही कारण है कि भारत के उत्कृष्ट मानव विज्ञान संग्रहालयों में बस्तर का मानव विज्ञान संग्रहालय का नाम शुमार है।