History
इतिहास पर और गौर करें तो हमें ये जानकारी मिलती है कि महासमंुद के खल्लारी में राजा लक्ष्मीदेव और उसके पुत्र सिंहण की राजधानी रतनपुर ज्यादा दिनों तक नहीं रही तब बाद में सिंहण के पुत्र रामचंद ने रायपुर को अपनी राजधानी बनाया । हैहयवंशीय अंतिम राजा अमरसिंह देव को पदच्युत करने के बाद यह मराठों के अधीन चला गया । मराठा शासक रघुजी के पुत्र बिम्बाजी 758 ई को नागपुर से छत्तीसगढ़ का राजकाज सम्भालने रतनपुर आए और यह सत्ता का केन्द्र बन गया । फिर आंग्ल मराठा के तीसरे युद्ध के बाद सन 1818 में रतनपुर अंग्रेजों के अधीन चला गया । और कर्नल एग्न्यु के नियुक्ति हुई और वह 1818 से 1825 तक यहाँ नियुक्त था। कर्नन एग्न्यू ने रतनपुर से रायपुर राजधानी बनाने के निर्णय लिया ।ब्रिटिश एजेण्ट कर्नल एग्न्यू ने अपनी किताब में लिखा है कि हैहयवंशी राजाओं ने एक किले का निर्माण कराया था और सुरक्षा के मद्देनजर चारों ओर से इसे तालाबों से घेर दिया था। बम्ह कुमारी के पास मौजूद एक टूटा फूटा किला इस बात कर प्रमाण है। बूढ़ा तालाब, महाराजबंद, कंकाली तालाब, खोखो तालाब बंधवा तालाब, मनसाय तालाब भैया तालाब, पहलदवा तालाब आदि इसी इलाके में आते हैं । कंकाली तालाब की संफाई के दौरान सुंरग का दरवाजा निकला था जो किले से संबंधित है।जनश्रुतियों के मुताबिक बूढ़ तालाब के बीच आज जहाँ निलाभ उद्यान बनाया गया है वहां कभी कलचुरी राजाओं की कचहरी लगा करती थी ।यह स्थान तालाबों से घिरा होने के कारण काफी सुरक्षित माना जाता था और राजकर्मचारियों का निवास भी यहीं था।
मराठा शासकों की जानकारी
1420 से 1741 तक केशवदेव से लेकर अमरसिंह तक शासक रहे। बिम्बाजी भोंसले 1757 बाजीराव रघुजी तृतीय 1830 अंग्रेजों के समय में राजनीतिक एजेण्ट के रूप में कर्ननएग्न्यू जो 1818 ई में आजादी तक रायपुर अंग्रेजों के अधीन रहा ।रायपुर शहर के अंदर या आसपास कुछ किमी दूर सैर सपाटे का प्लान हो तो इन जगहों पर जरूर जाना चाहिए खासतौर पर उनको जिन्हें रायपुर में मौजूद एतिहासिक साक्ष्यों में दिलचस्पी हो।
केसर ए हिन्द दरवाजा
यह दरवाजा 1877 ई में बनाया गया जब महारनी विक्टोरिया ने रायपुर को केसर ए हिन्द की उपाधि दी थी। यह दरवाजा रायपुर वासियों ने दान के पैसे से तैयार किया था । आज भी यह मौजूद है। पर्यटक यहां पर अक्सर आते हैं । यह जयस्तम्भ चैक के पास मालवीय रोड स्थित है।दूधाधारी मंदिर
इस मंदिर का निर्माण 17वी सदी में हुआ था। इसका निर्माणा राजा जैतसिंह ने किया था जो 1603-से 1614 तक राज करते थे ।रामायण की घटनाओं को दर्शाते हए मराठा कालीन पेंटिंग इस मंदिर में आज भी देखने को मिलती है। यह मंदिर बूढ़ा तालाब से कुछ दूरी पर स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि राजस्थान के झींथरा नाम की जगह से संत गरीब दास यहां रहा करते थे । उनकी परंपरा में बलभद्रदास नामक संत हुए जो केवल दूध ही अपने आहार में लेते थे अनाज नहीं । इन्हें दूधाधारी महाराज कहा जाता था। उन्हीं के नाम पर दूधाधारी मंदिर यह कहलाया । भगवान राम को समर्पित इस मंदिर निर्माण में सिरपुर से लाई पुरातात्विक महत्व की सामग्रियों का प्रयोग किया गया है। बाहरी दीवार दर्शाई प्रतिमाएं बहुत संुदर लगती है । मुख्य मंदिर के अलावा एक अन्य मारूति मंदिर भी यहाँ दर्शनीय है
महामाया मंदिर
इसे भी कलचुरियों द्वारा बनवायी गई थी। जनश्रुतियों के अनुसार इस मंदिर में स्थापित महिषासुर मर्दिनी की अष्टभुजी प्रतिमा को राजा मोरध्वज ने स्थापित किया था। माना ये जाता है कि कलचुरियों ने अपनी कुलदेवी महामाया की प्रतिमा रतनपुर से रायपुर ले कर आए । इस मंदिर में मुख्य मंदिरों की श्रंखला में समलेश्वरी देवी, काल भैरव, बटुक भैरव और हनुमान जी के मंदिर हैंजैतूसाव मंदिर
इसे लक्ष्मीनारायण मंदिर भी कहते हैं। यह मंदिर पुरानी बस्ती में स्थित है। स्व जैतुसाव की स्मृति में उनकी धर्मपत्नि ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। इस मंदिर के महंत लक्ष्मीनारायण ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी । इसीलिए यह मंदिर आजादी पूर्व स्वतंत्रता सेनानियों का प्रमुख केन्द्र बना था । पुरानी बस्ती क्षेत्र में और भी मंदिर हैं जिनमें बूढे़श्वर महादेव,शीतला मंदिर, विरंच यानि ब्रम्हा मंदिर, जगन्नाथ मंदिर आदि उल्लेखनीय है।कंकाली तालाब मंदिर
यह मंदिर पुरानी बस्ती और ब्राम्हाण पारा से लगा हुआ कंकाली पारा में स्थापित है। किवदंतियों के अनुसार गोस्वामी पंथ के नागा साधु यहां रहा करते थे। साधुओं को सपने में देवी ने दर्शन दिए थे जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने कुण्ड सहित मंदिर का निर्माण कराया था। परंपरा अनुसार कुण्ड के बीच शिवजी का छोटा सा मंदिर भी देखने को मिलेगा। तालाब में तीन तरफ से सुंदर घाट बने हुए हैं। कंकाली देवी का मंदिर एक बड़े वट वृक्ष की छाया में है। गोस्वामियों की समाधियां भी आसपास बनी हुई हैं।हाटकेश्वर महादेव मंदिर रायपुरा
राजा ब्रम्हदेव के विक्रम संवत् 1458 यानि 1402 के शिलालेखों से पता चलता है कि हाजीराज ने यहा हटकेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण कराया था। आज खारून नदी के तट पर अनेक छोट-बड़े मंदिर बने हुए हैं। यहाँ महादेव घाट में ही स्वामी आत्मानंद (1929-1981) की समाधि है।मंदिर की प्रतिमाएं कलचुरी शिल्प कला का उत्कृष्ट नमूना है । एक बार इसे अवश्य देखना चाहिए!
ये तो थी मंदिरों की बात । रायपुर नगर में ही मंदिरों के अलावा कुछ ऐसी संरचनाएं हैं जिन्हें एक बार अवश्य देखना चाहिए ! इनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं
विवेकानंद आश्रम
जुलाई 1957 में स्वामी आत्मानंद के प्रयत्नों से रामकृष्ण सेवाश्रम समिति का गठन किया गया । यह आश्रम भव्य और काफी सुंदर है। आश्रम के अंदर ही एक अस्पताल और ग्रंथालय है । वर्तमान में यह आश्रम रामकृष्ण मिशन से संबंधित है।
ये तो थी मंदिरों की बात । रायपुर नगर में ही मंदिरों के अलावा कुछ ऐसी संरचनाएं हैं जिन्हें एक बार अवश्य देखना चाहिए ! इनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं इसके अलावा यहाँ देखने योग्य जो चीजे हैं वे हैं
पुरखौती मुक्तांगन
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टाऊन हाॅल
पुराना संग्रहालय
मोतीबाग
बैरन बाजार
पुरानी बस्ती
महंत घसीदास स्मारक संग्रहालय
विवेकानन्द सरोवर
नगर घड़ी
सौर ऊर्जा पार्क
राजकुमार काॅलेज
राजीव स्मृति वन
रायपुर में जैसे जैसे नगरीकरण बढ़ता गया उससे जुड़ी सुविधाएं भी देखने को मिल रही है । जैसे आज यहाँ शाॅपिंग माॅल और मल्टीप्लैक्स की बाढ़ सी आ गई है ।फिर खेलकूद के लिए विशाल अंतराष्ट्रीय स्टेडियम का निर्माण भी किया गया है। और सबसे खास बात यहाँ एक जंगल सफारी है ।