काल में अपनी धर्मपत्नि सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अपने वनवास में निकले थे । एतिहासिक साक्ष्य ये बताते हैं कि वे अयोध्या से कोसल की तरफ जिस रास्ते से वे गुजरे उसमें बस्तर भी था। वे जिसे रास्ते से गुजरे आज उन जगहों को पर्यटन स्थल बनाने का सरकार का इरादा है। जानते हैं वे कौन-कौन सी जगहें है जहाँ भगवान राम-सीता और लक्ष्मण अपने वनवास काल में आए थे। यहाँ यह बताना जरूरी है कि श्रीलंका और भारत के बीच गहरे समुद्र के अंदर दबी एक संरचना पाई गई है जो ये सिद्ध करते हैं कि ये लाखों वर्ष पूर्व बनाए गए हैं जिसकी पुष्टि पुरातत्व विभाग के साथ नासा ने भी की है। पुरातत्विक जांच से ये पता चला है कि ये संरचना 7000 साला पुराना है और शीर्ष पर मौजूद पत्थर 5000 साल पुराना है । और एक खास बात जो कुछ आलोचक कहते हैं कि नल और नील ये राम की सेना में सिविल इंजीनियर थे जिन्हें ये ज्ञान था कि प्यूमिक पत्थर पानी में तैर सकता है।
खैर इस बात की जांच अभी भी हो रही है मगर इस बात की सच्चाई से कोई इंकार नहीं कर सका है कि भारत और श्रीलंका के बीच बना ये पुल नुमा संरचना प्राकृतिक नहीं है। इसे इंसान ने ही बनाया है। और रामायण काल आज से 5000 हजार साल पुराना ही है।
बात करते हैं उन जगहों के बारे में जहाँ ऐसे साक्ष्य मिले हैं जो रामायण काल में लिखित जगहों के बारे में बताते हैं । वर्तमान बस्तर को दण्डकारण्य और भारत के मध्य क्षेत्र को कोसल कहा जाता था। भगवान राम जिन जगहों पर पत्नि सीता और भाई लक्ष्मण के साथ गुजरे वे इस प्रकार हैं।
वाल्मिकी रामायण में वर्णन के अनुसार दशरथ का विवाह कौशल्या से हुआ था। जो दक्षिण कोसल के राजा भानुवन्त की पुत्री थी। राजा दशरथ उत्तर कोसल के राजा थे। इस प्रकार ये समझा गया है कि श्री राम का छत्तीसगढ़ ननिहाल था।
यहाँ एक बात उल्लेखनीय है कि कोसल प्रदेश का नाम राजा भनुवन्त के पिता महाकोसल के नाम पर हुआ था। रामायण कालीन प्रमुख स्थल जो छत्तीगढ़ में चिन्हित किए गए हैं । वे हैं -
सरगुजा
सरगुजा जिले में रामगढ़, सीता बेंगरा, लक्ष्मण बेंगरा, शिवरीनारायण जहाँ शबरी रहा करती थी जिसने भगवान श्री राम को वनवास के दौरान अपने जूठे बेर खिलाए थे । रामगढ़, सीता बेंगरा, लक्ष्मण बेंगरा यहाँ आज भी मौजूद है।
बलौदाबाजार
बलौदाबाजार जिले में तुरतुरिया, वाल्मिकी आश्रम जहाँ लव कुश का जन्म हुआ था। सिहावा पर्वत, पंचवटी सीता का अपहरण क्षेत्र व दण्डकारण्य इत्यादि। तुरतुरिया, वाल्मिकी आश्रम जहाँ लव कुश का जन्म हुआ था। सिहावा पर्वत, पंचवटी सीता का अपहरण क्षेत्र यहाँ मौजूद है।
जांजगीर चांपा
शिवरीनारायण जहाँ शबरी रहा करती थी जिसने भगवान श्री राम को वनवास के दौरान अपने जूठे बेर खिलाए थे ।
बात करते हैं बस्तर संभाग में मौजूद उन जगहों के बारे में जिन्हें रामवनगमन पथ के रूप में चिन्हित किया गय है।
सिहावा धमतरी की पहाड़ियों रामायण कालीन ऋषि मुनियों के आश्रम थे यहाँ मचकुंद, अगस्त आश्रम, अंगिरा आश्रम , श्रंगाऋषि आश्रम कंकर ऋषि आश्रम, शरभंग ऋषि आश्रम, गौतम ऋषि इत्यादि ऋषि मुनियों के आश्रम थे । भगवान राम इन्हीं मुनियों के आश्रम में अपने वनवास काल में कुछ दिन ठहरे थे ।
कांकेर
कांकेर कंक ऋषि का आश्रम था जहाँ राम अपने वनवास काल में यहाँ रूके थे । सम्भवतः कंक ऋषि के नाम के कारण इस क्षेत्र का नाम कांकेर पड़ा ।
कोण्डागाँव जिले में गढ़धनोरा और फरसगाँव में जटायु शीला नामक जगहें हैं जहाँ हजारों वर्ष मिले एतिहासकि साक्ष्य आज भी मौजूद है ।
रामायण काल में इसे दक्षिण कोसल कहा जाता था। इसकी राजधानी कुशस्थली थीं इस समय यहाँ की बाली जाने वाली भाषा को कोसली कहते थे।
नारायणपुर
नारायणपुर रक्सी डोंगरी और छोटेडोंगर नामक जगहें है प्राचीन काल से दक्षिण की तरफ जाने का मार्ग बना हुआ था।
बस्तर चित्रकोट नारायणपाल और तीरथगढ़
इसे चक्रकोट कहा जाता था। बम्ह पुराण के श्लोक नम्बर 29 में इसका वर्णन मिलता है । लोकमान्यता है कि भगवान राम ने वनवास के दौरान इस जगह पर कुछ समय व्यतीत किया था । इसी अंचल से नागराजा शंखपाल की बेटी शशिप्रीाा का विवाह मालवा की धरानगरी के राजा सिंधुराज से हुआ था।
दंतेवाड़ा जिले में बारसूर दंतेवाड़ा, गीदम को चिन्हित
सुकमा
और सुकमा जिले में रामाराम, इंजरम और कोंटा