बस्तर में किसी भी मेले या दर्शनीय स्थलों में सबसे खास आकर्षण होता है व्यंजन । हाट बाजारों में घूमते आप निकले तो यहाँ की संस्कृति तो देखने को मिलेगी ही साथ ही विभिन्न प्रकार के व्यंजन भी आपको देखने को मिलेंगे। मै आपको मेलों मे मिलने वाले विभिन्न प्रकार के व्यंजनों से आपका परिचय करवाना चाहता हूँ।
एक कतार में बैठी महिलाएं आपको इस प्रकार के व्यंजनों की बिक्री करते दिखाई देंगी। दरअसल ये सारे बस्तर व्यंजन आपके समारोह,जात्रा (एक प्रकार का त्यौहार) तथा दूसरे अवसरों पर भी देखने को मिल जाएंगे। जानते हैं वे व्यंजन क्या हैं और कैसे बनते हैं ?
एक बात और बता दूँ इस संबध में जानकारी हासिल करने के दौरान Bastar Food के उत्पादों और प्रयासों से मै वाकिफ हुआ तो मुझे जानकारी मिली ये व्यंजन पौष्टिक गुणों से भरपुर होते है। संस्था से प्राप्त प्रशिक्षण के द्वारा महुआ लड्डू की धमक अमेरिकी जनता तक भी पहुँच चुकी है। मुझे लगा बाजारों में बिकने वाले कुछ ऐसे बस्तर व्यंजन भी है जिन्हें जानना आवश्यक है।
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जानते हैं वे कैसे बनते हैं ?
निःसंदेह बस्तर के प्रत्येक व्यंजनों में पौष्टिकता और प्राकृतिक चीजों का भरपुर समावेश होता है। इसमें मीठे और चटपटे श्रेणियों में बांटा जा सकता है। पहले बात करते हैं मीठे व्यंजनों की । मीठे व्यंजनों में शक्कर का प्रयोग नहीं होता था । उसकी जगह गुड़ का उपयोग काफी प्रचलित था। इनके नाम इस प्रकार है
गुलगुला यह रस्सगुल्ले की तरह मुलायम होता है। इसे बनाने में चांवल आटे और गुड़ का इस्तेमाल किया जाता है। यह काफी स्पंजी और दिखने में थोड़ काला दिखाई देता है।
गुड़िया खाजा ।
ये बच्चों को प्रिय होने के कारण इसे संभवतः गुड़िया खाजा कहा जाता है। खाजा मतलब खाने वाली वस्तु। इसे बनाने में गुड़ और चांवल का उपयोग किया जाता है । इसे जलेबी का आकार दिया जाता है। इसे गुड़ की जलेबी कहते हैं।
चापा लाडू
लाई राजगीर या अन्य तिल आदि को गुड़ में मिलाकर बनाया जाता है। इसे लाई लाडू, लाडू फूललाई, तिल से बना लड्डू तिलडूंडा भी कहते है।
बाबो या गोलापीठा -चावल के आटे और गुड़ के शीरे में मिलाकर चपटा आकृति का व्यंजन है।
कुकड़ा मिठाई ये बताशे का एक रूप है । ये व्यंजन उस वक्त अस्तित्व में आया जब शक्कर का प्रयोग आदिवासी करने लगे थे। इसे बनाने के दौरान मुर्गा या अन्य किसी पक्षी का आकार दिया जाता है।
चटपटे व्यंजन
चापड़ा चटनी:-इसे एक प्रकार चींटी जिसे स्थानीय भाषा में चापड़ा कहते हैं इसमें नमक,मिर्च,हल्दी और अदरक इत्यादि मिलाकर पीसकर बनाया जाता है। जानकारों के अनुसार इसके औषधिय गुण होते हैं।
चकली :-चांवल आटे से तैयार किया जाता है । और इसे तेल में तलकर बनाते हैं ।
केरी चावंल:- आटा और बेसन को मिलाकर गोलाकर में इसे बनाया जाता है और इसे तेल में तेल में तलकर तैयार करते हैं।
पीठा:-चांवल और गेंहूँ के आटे का गोल बनाकर खौलते पानी में इसे डाला जाता है। इसका स्वाद गुड़ या शक्कर मिलाकर मीठा भी किया जा सकता है।
फास्ट फूड
हाथ कुट चिवड़ा, केला, गुड़चना, चनालाई, मुरला, फूला लाई का चिवड़ा
पेय
सल्फी ताड़ी और छिंदरसा :- इसमें सल्फी सबसे ज्यादा लोकप्रिय है । यह पेड़ से निकाला जाता है । सल्फी का पेड़ आदिवासियों के लिए संतान के बराबर का दर्जा रखता है । एक पेड़ से 10 से 15 हजार रूपये की आमदनी होती है। "सल्फी" का है बस्तर संभाग के रहवासी व भ्रमण हेतु गए प्रत्येक इस वृक्ष से निश्चित ही अवगत है।यह वृक्ष लगभग 10 से 15 मीटर तक ऊंचा होता है व इसकी प्राकृतिक छटा अपूर्व होती है।
सल्फी के वृक्ष से एक प्राकृतिक रस का उत्सर्जन होता है जिसे प्रशिक्षित अथवा अनुभवी व्यक्तियों द्वारा वृक्ष पर ही मटका अथवा पात्र लटका कर संग्रहित किया जाता है ।यह वृक्ष लगभग दस वर्षों में बड़ा हो कर रस प्रदान करने योग्य हो जाता है व लगभग आगामी दस बारह वर्षों तक निरन्तर रस प्रदान करता है ।इस रस के प्रशंसक स्थानीय ग्रामीणों के अलावा अन्य शहरी जन भी है ।आम बोलचाल में इसे "बस्तर के बियर"भी कहा जाता है । इस रस के सेवन से चयापचय व उदर जनित व्याधियों में सुधार परिलक्षित हुआ है ।ग्रामीणों के अर्थव्यस्था के सुधार में इसका विक्रय एक महत्वपूर्ण भाग है ।
_आप जब कभी भी बस्तर जाएं तो सेल्फी के साथ "सल्फी"का आनंद अवश्य लें ।_
शीतल पेय
लंदा:- यह चांवल के आटे के घोल से तेयार एक तरह का भोजन भी है।
पेज:- चांवल में अधिक पानी डालकर इसे बनाया जाता है। चांवल का माड़ नहीं निकालने से भोजन का भी काम करता है। चांवल के साथ मंडिया या रागी मिलाकर भी इसे बनाया जाता है। इसे मडिया पेज कहते हैं । चापड़ा चाटनी और मंडिया पेज इस क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध है।
मादक पेय
मंद:- इसे महुए से तैयार किया जाता है ।एल्कोहोलिक होने से आदिवासी इसे साल भर पीते हैं।
सुराम:- गुदेदार फलों से तैयार सुराम भी एक मादक पेय है।
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