बस्तर में प्रमुख रूप से कौन कौन से मेलों का आयोजन होता है? और उनके क्या
धार्मिक महत्व होते हैं ? वर्तमान में कुछ ऐसे मेले मड़ई है जिन्हें
छत्तीसगढ़ शासन बाकायदा प्रायोजित करती है। और इन्हें आज महोत्सव का दर्जा
मिल गया है। दरअसल एक जमाना था जब इन्हें भी मेला या मड़ई ही कहा जाता था।इन्हें आज की पीड़ी बारसूर महोत्वस, गढ़िया महोत्सव, चित्रकोट महोत्सव के नाम से जानती है।
आमतौर पर मेला मड़ई को केवल खरीद फरोख्त के लिए ही जाना जाता है। मगर ये भी सच है कि मेलों और मड़ई में उस अंचल की संस्कृति देखने को मिलती है। इसके अलावा बस्तर संभाग में कुछ ऐसे चर्चित मेले मड़ई है जो एक निश्चित अंतराल पर आयोजित किए जाते हैं। और जिसे देखने दूर-दूर से लोग आते है। जानते हैं वे क्या है?
फागुन मंड़ई
जब पूरी दुनियाँ होली की तैयारी कर रही होती है तो दक्षिण बस्तर के दंतेवाड़ा जिले में फागुन मेले का जोश आने लगता है। इसकी शुरूआत फरवरी मार्च के बीच होली मनाए जाने तक होती है।
ये दक्षिण बस्तर का सबसे बड़ा मेला है जो जगदलपुर से 78 किमी दूर दंतेवाड़ा जिले में मनाया जाता है। फागुन महिना में शंखनी -डंकनी नदी के संगम पर मनाए जाने वाले मेले में आसपास के देवी-देवताओं को बस्तर दशहरे की तरह ही बकायदा आमंत्रित किया जाता है और इतना ही नही सीमावर्ती राज्य उड़िसा और आंध्रप्रदेश के देवी देवता भी आमंत्रण पर आने का रिवाज है।इस तरह 700 से अधिक देवी-देवता दंतेवाड़ा में फागुन मेले में आमंत्रित किए जाते हैं । 10 दिनों तक चलने वाले मेले के कई आकर्षण होते हैं ।
फागुन मेले की शुरूआत मंदिर प्रांगण में त्रिशुल स्तम्भ गाड़ कर और दंतेश्वरी देवी के छत्र पर आम के बौर चढ़ा कर की जाती है। इस मेले में आपको बस्तर संस्कृति की विशेष झलक देखने को मिलेगी। इसमें वेशभूषा -रहन सहन और नृत्य का आप अवलोकन कर सकते हैं । क्या होता है इस मेले में ?
इस में मेले में मनोरंजन के लिए किए जाने वाले शिकार नृत्य के अंतर्गत किए जाने वाले लमाहामार, गंवरमार और चितलमार नृत्य काफी चर्चित होते हैं, इसे देखने के लिए दूर -दूर से पर्यटक आते हैं इसके अलावा आंवलामार नृत्य काफी रोमांचक होता है।
मावली मेला
दूसरा है मावली मेला । ये बस्तर संभाग के नारायणपुर जिले में मनाया जाता है। यह मेला शिवरात्रि के आसपास यानि माघ महिने में आयोजित किया जाता है। और 7 दिनों तक चलता है। ये मेला देवी मावली को समर्पित है । बस्तर में मावली देवी को दंतेश्वरी देवी की तरह ही अराध्य देवी मानते है। जब तक बस्तर में नागवंशियों का शासन था तब तक मावली देवी की पूजा होती रही जो नौवमी से 14 सदी तक चलती रही । चालुक्यों के शासन के दौरान दशहरे में मावली देवी की पूजा करने का विधान राजा अन्नमदेव ने शुरू किया । तब से लेकर आज तक प्रतिवर्ष दशहरे में मावली देवी का पूरे सम्मान के साथ स्वागत किया जाता है। बात करते हैं नारायणपुर में मनाए जाने वाले मावली मेला की । आदिम संस्कृति के जानकार शिवकुमार पाण्डे की माने तो मावले मेले का इतिहास 800 साला पुराना है। यह नलवंशों से चला आ रहा है। वर्तमान में विदेशी पर्यटक यह मेला देखने प्रतिवर्ष आते है। इस मेले में हिस्सा लेने आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में ग्रामीण जमा होते हैं और सांस्कृतिक आदान प्रदान होता है। और परम्परागत नृत्य और धार्मिक अनुष्ठान इस मेले के प्रमुख आकर्षण होता हैं । जिसमें बस्तर की संस्कृति देखने को मिलती है।
लिंगेश्वरी मेला आलोर
यह कोण्डागांव में स्थित आलोर गांव में आयोजित की जाती है। यह एक गुफा में स्थित है जिसका द्वारा साल में एक बार ही दर्शन के लिये खुलता है। यह गुफा भगवान शिव को समर्पित है। कार्तिक पुर्णिमा के अवसर पर यहां विशेष पूजा अर्चना की जाती है। मेले के दिन आसपास और दूर दूर दराज से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं । मान्यता है संतान प्राप्ति के लिए लोग प्रतिवर्ष आते हैं । शिवरात्रि में यहां मेले का आयोजन होता है।
रामाराम मेला
चिटमिटिन अम्मा देवी को समर्पित इस मेले का आयोजन सुकमा से 9 किमी दूर स्थित रामाराम नामक गांव में फरवरी में होता है । श्रीराम संस्थान सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास ने रामाराम को वर्षो पहले रामवनपथ गमन के रूप में दर्शाया है। ऐसी मान्यता है कि वनवास के दौरान भगवान राम ने इस जगह पर भू- देवी की पूजा की थी।
भद्रकाली मेला
यह भद्रकाली गांव से 2 किमी दूर है। जो भोपालपट्नम में है। यहाँ मेला शिवरात्रि के दिन लगता है। कहा जाता है कि चालुक्य वंश के शासक बस्तर में स्थापित होने की मंशा से गोदावरी और इंद्रवती के संगम पर धार्मिक अनुष्ठान किए थे ।