जगदलपुर में मानव विज्ञान संग्रहालय की स्थापना 11 दिसम्बर 1972 में हुई शहर के धरमपुरा में स्थित यह संग्रहालय छत्तीसगढ़ का एकमात्र मानव संग्रहालय है और यह 2.5 एकड़ में फैला है।पूरे देश में मौजूद संग्रहालयों से बस्तर के संग्रहालय की तुलना करें तो यह दो बातों के लिए खास है -
पहली बात यह संग्रहालय आदिवासी कला संस्कृति पर केन्द्रित है
दूसरी बात पोर्ट ब्लेअर के बाद इसे दूसरा ऐसा संग्रहालय मानते हैं जिसमें जनजातिय जीवन को दिखाया गया है।
बस्तर में बड़ी संख्या में जनजातियां निवास करती हैं सम्भवतः इसीलिए यह बाहरी लोगों के लिए अध्ययन का विषय है । प्रतिवर्ष उनकी संस्कृति की झलक पाने के लिए देशी-विदेशी सैलानी यहाँ आते रहते हैं । यहां जितनी जनजातियां हैं उतनी उनकी बोलियां भी है।
इस भवन का अपना इतिहास भी काफी दिलचस्प है । पहले यह संग्रहालय जिला कलेक्ट्रेट के पास ही मौजूद था फिर जगह की कमी के देखते हुए धरमपुरा में स्थापित किया गया । तब इस संग्रहालय मेें लगभग 600 विभिन्न प्रकार की वस्तुएं थी।
आदिम संस्कृति के अध्ययन को इच्छुक लोगों के लिए इस संग्रहालय में अच्छे संग्रह हैं । जैसा की हमने पहले ही कहा था कि यह छत्तीसगढ़ का एक मात्र मानव संग्रहालय है
यहाँ क्या देख सकते हैं?
बस्तर के मूल जनजातियों के जनजीवन से जुड़ी भौतिक वस्तुओं का संग्रह किया गया है
। मानव विज्ञान संग्रहालय में दौ सौ वर्ष पुराना मृतक स्मृति स्तंभ, आदिवासियों के मकान निर्माण करने की कला, देवगुड़ी, लकड़ी की ढेकी, देंवी-देवताओं से जुड़े उनके प्रतीक चिन्ह, बेल मेटल की कलाकृतियां, लोक नृत्य में पहने जाने वाली पोषाक, लौह अयस्क गलाने की प्राचीन भट्टी, नाव, मत्स्याखेट में प्रयुक्त होने वाले साधन, लोक आभूषण, दैनिक जीवन की उपयोगी वस्तुएं वाद्य आदि वस्तुएं सैलानियों का दिल मोह लेती है। यही कारण है कि भारत के उत्कृष्ट मानव विज्ञान संग्रहालयों में बस्तर का मानव विज्ञान संग्रहालय का नाम शुमार है।
पुरातत्व संग्रहालय
जगदलपुर में स्थित पुरातत्व संग्राहालय की स्थापना फरवरी 1988 में थी । वर्तमान में लोंगो के लिए 54 प्राचीन मूर्तियों को प्रदर्शित की गई है। प्राचीन मूर्तियों के अलावा स्वर्ण एवं रजत मुद्राए भी हैं । इन स्वर्ण मुद्राओं को लेकर अध्ययन की आवश्यकता है। पुरातत्व संग्रहालय में जिला नाजिरात शाखा में रखे रियासत कालीन भरमार बंदूकों को भी गैलरी में रखा गया है। इन दिनों पुरातत्व विभाग में यह आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। लगभग 30 भरमार बंदूकों को प्रदर्शिनी के लिए रखा गया है। इस संग्रहालय में 5वीं और छठवीं शताब्दी की की मूर्तियां हैं।
जिला कार्यालय के मालखाने में पिछले 43 वर्षोें से उपेक्षित पड़ी भारतीय स्वतंत्रता के शिलालेखों को भी संग्रहालय में लाया गया है। शहर के राजा रूद्रपताप देव लाइब्रेरी में पिछले 85 वर्षों से रखी उमा महेश्वर की दुर्लभ प्रतिमाओं को संजोया गया है ।