राजमहल
जगदलपुर का भव्य और विशाल राजमहल राजा रूद्रप्रताप देव के कार्यकाल में निर्मित हुआ है। यह राजमहल आपनी खूबसूरती तथा मजबूती के लिए रियासत में मशहूर था। इस महल का निर्माण 20 वीं सदी के पूवार्ध में हुआ है। जब बस्तर को छोड़कर जगदलपुर को राजधानी बनाया गया तब जगदलपुर का महल मिट्टी का बना हुआ था। नगर के चारों ओर ईंट की दीवारें थी तथा तीन दरवाजे थे। किसी जमाने में इस राजमहल में काफी रौनक हुआ करती थी आज यह खामोशी के साथ इतिहास का साक्षी है। बस्तर रियासत काल में बने दो महलों का अपना इतिहास है। दरअसल राजमहल परिसर में दो महल हैं। पहला पुराना महल तथा दूसरा नया महल। इस महल का कुल क्षेत्रफल 22 एकड़ है और दोनों महल बीचों-बीच, अगल-बगल स्थित हैं। दोनों महल विशाल और दुमंजिला है। परिसर के दक्षिणी भाग में पुराना महल है जबकि उत्तरी भाग में नया महल स्थित है। दोनों महल पूर्वाभिमुख हैं।
पुराना महल राजा रूद्र प्रतापदेव के कार्यकाल में निर्मित हुआ है तथा दूसरा महल राजा रूद्रपतापदेव की पुत्री महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी के शासनकाल का है। नए महल के प्रवेश द्वार पर विशाल बैठक कक्ष है। कहा जाता है कि पुराने महल के प्रथम तल में कुछ कमरे भी हैं जिसकी फर्श लाल एवं सफेद सीमेंट की है । इसे चितरी खोली भी कहा जाता है। इस राजमहल में आज भी राजपरिवार के सदस्य निवास करते हैं।यह नगर का सबसे प्राचीन स्थल है। यहीं से नगर का निर्माण प्रारंभ हुआ था। यह पूरे बस्तर का महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केन्द्र है।
इस परिसर में राजमहल, दंतेश्वरी मंदिर, सिंहद्वार, बालाजी मंदिर (भीतर मठ), कंकालीन मंदिर तथा राजकीय घुड़साल (पहले यहाँ नेशनल इंग्लिश स्कूल) था। घुड़साल के सामने एक बड़ा सा मैदान है जहां राजकुमार घुड़सवारी सीखते थे। हाथीसार महल के बाहर कुछ दूरी पर था। राजमहल के चारों दिशाओं में चार द्वार हैं चारों द्वार पर लकड़ी के विशाल दरवाजे भी थे। दक्षिण दिशा वाले लकड़ी के विशाल द्वार को सिंहद्वार कहा जाता है। सिंहद्वार के ठीक ऊपर कई कमरे हैं, इन्हें सिंहड्योढ़ी कहते हैं। इससे सटा हुआ पश्चिम की ओर देवी दन्तेश्वरी का भव्य मंदिर है । यह मंदिर पूर्वाभिमुख है। सिंहड्योढ़ी की बगल में पूर्व की ओर रियासत की कचहरी थी।
दन्तेश्वरी मंदिर, जगदलपुर
जगदलपुर राजमहल के परिसर में स्थापित मां दन्तेश्वरी मंदिर का निर्माण 1890 में हुआ है। इस मंदिर का निर्माण राजा रूद्रपताप देव ने करवाया था। इस मंदिर में दन्तेश्वरी मांई की प्रतिमा सफेद संगमरमर पत्थर से निर्मित है। मांई जी की मूर्ति के साथ सिंह की मूर्ति भी सफेद संगमरमर से निर्मित की गई है। कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण तथा आंतरिक साज-सज्जा, उत्कल के कारीगरों ने की है।
दन्तेश्वरी चालुक्य राजवंश की कुलदेवी मानी जाती हैं। वारंगल से बस्तर अंचल में राजाओं के साथ आकर राजदेवी और बाद में जनदेवी या लोकदेवी कहलाईं, अतएव बस्तर के प्रत्येक क्षेत्र में उनकी आराधना होती है। दन्तेश्वरी का मूल मंदिर छत्तीसगढ़ के दन्तेवाड़ा जिला मुख्यालय में है। दन्तेवाड़ा एक शक्ति स्थल के रूप में विख्यात है, और दन्तेश्वरी देवी को, दुर्गा जी का प्रतिरूप मानकर पूजा की जाती है। देवी मां के मुख मण्डल में अपूर्व तेजस्विता विद्यमान है, जिसकी आँखें चाँदी से निर्मित हैं। गहरे, चिकने काले पत्थरों से निर्मित मूर्ति की छह भुजाएँ हैं, जिनमें शंख, खड्ग, त्रिशुल, घंटा, पाश और एक हाथ से राक्षस के बाल पकड़े हुए हैं। मूर्ति का एक पाँव सिंह पर रखा हुआ है, मांई जी की प्रतिमा के पैरों के समीप दाहिनी ओर एकपाद भैरव की मूर्ति तथा बाईं ओर भैरवी की मूर्ति स्थापित है। मांई दन्तेश्वरी जी के भव्य मूर्ति के पीछे पृष्ठ भाग पर मुकुट के ऊपर पत्थर तराशी गई कलाकृति नरसिंह अवतार के द्वारा हिरण्य कश्यप के संहार का दृश्य है।