संस्मरण कुछ अधिकारियों के
अधिकारियों की कई श्रेणिया होती है। उदाहरण के लिए निचली कार्यालयों से लेकर उच्चतम कार्यालय तक,जो कार्यो को पूर्ण करते हैं, वे सभी अधिकारी होते है। अपने शासकीय सेवा के दौरान देखा है कुछ कर्मचारी व छोटे अधिकारी विभिन्न प्रकार के ओहदेदार उच्च अधिकारियों से भिन्न भिन्न प्रकार का व्यवहार करते हैं,पर मैंने अपने कार्यकाल मे सभी अधिकारियों का समान आदर किया है। मेरे लिए तो वे सभी महादेव रहे,चाहे नर्मदा के कंकण के रूप मे,चाहे काशी के विश्वनाथ के रूप मे ।और वर्तमान मे भी इसी स्वरूप को नमन करता हूँ।
रायपुर मे :-
उन दिनो मै रायपुर मे ही पदस्थ था भारत सरकार के एक सचिव स्तर के अधिकारी का रायपुर आगमन हुआ,जो की अपने तुनक मिजाजी के कारण खासे चर्चित थे। मुझे उनके आगमन से लेकर प्रस्थान तक उनके साथ ही रहने का आदेश हुआ था तथा साथ मे बैठक मे पूछे जाने वाले प्रश्नो का अपने कार्यालय की ओर से उत्तर भी देना था । कार्यालय मे लोग मुझे भी तुगलक ही कहते थे ,सहकर्मियों के मध्य अच्छी ख़ासी ये चर्चा थी दोनों पागल हैं,अब मजा आयेगा। साहब आए आते ही एयरपोर्ट पर मुझसे पूछा यहाँ से डोंगरगढ़ कितनी दूर है मैंने उत्तर दिया सर, लगभग सौ किलोमीटर है, उन्होने सर्किट हाउस मे सामान रखा व मुझसे कहा डोंगरगढ़ चलो, मै उनका मुँह ताकता रहा व धीरे से कहा -" सर ! कई अधिकारी आपसे भेंट हेतु प्रतीक्षा कर रहे हैं।" वे एकदम से नाराज हो गए और कहा कि मैंने उन्हे यहाँ नहीं बुलाया है और न ही प्रतीक्षा करने को कहा है। वे राज्य शासन के स्टेट गेस्ट भी थे व सचिव स्तर के कई अधिकारी जो कभी उनके मातहत भी थे वहाँ उपस्थित थे । वे सब उनके आदतों से अपरिचित न थे। किसी ने बुरा नहीं माना । जिला कलेक्टर के अलावा सभी चले गए, उन्होने जिला कलेक्टर से कहा मुझे और किसी की आवश्यकता नहीं है कृपया फॉलो गार्ड वाहन व अपने सत्कार अधिकारी को लौटा लें, मेरे साथ केवल राजेंदर ही रहेगा व मुझे सरकारी गाड़ी कि जगह एक निजी वाहन चाहिए जो राजेंदर चला सके व मै कल आप सब से बैठक मे भेंट करूंगा । लिहाजा उनके अनुसार कार्य हुआ ,मैंने जिला कलेक्टर महोदय से मारुति 800 ले कर उन्हे डोंगरगढ़ ले गया जहां रास्ते भर वे किसी ढाबे, गुमटी मे कार रुकवाते चाय पीते और बड़ी प्रसन्नता व्यक्त करते रहे और मै उन्हे समझने की कोशिश करता रहा और दुर्ग से राजनंदगांव तक तो स्वंय कार भी चलाया । डोंगरगढ़ मे रोप वे (Rope-way )से जब ऊपर माता जी के दर्शन के लिए ऊपर चढ़े, वहाँ प्रदेश के प्रमुख खड़े थे उन्होने साहब को पहचान लिया और कहा ,अरे आप कब छत्तीसगढ़ आये ? कुछ मिनट उनसे बाते हुई और वे चले गए ,सचिव महोदय ने मुझे बताया जब वे केंद्र सरकार मे मंत्री थे तब उनके वे सचिव थे। शाम को जब हम रायपुर लौटे तो उन्होने सर्किट हाउस मे मुझे साथ मे डिनर कराया व कहा कि कल सुबह की फ्लाइट से दिल्ली वापस जाएंगे । मैंने आश्चर्य से पूछा वो मीटिंग इत्यादि ? उन्होने इत्मीनान से जवाब दिया मै फिर आऊँगा.. मै आज तक समझ नहीं पाया कि वो आये क्यों थे !
दिल्ली मे: -
दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर मेरी नियुक्ति थी नाना प्रकार के राजनेताओं अधिकारियों से अक्सर से भेंट होती रहती थी। रात्रि ग्यारह बजे मुझे मेरे अधिकारी से सूचना मिली कि केंद्र सरकार के एक सचिव अर्धरात्रि के पश्चात फ़्रांकफ़र्ट के लिए उड़ान भरेंगे,साथ ही साथ मंत्रालय के प्रोटोकॉल आफिसर का भी फोन मेरे मोबाइल पर आया और उनके उड़ान संबंधी सूचना दी और आवश्यक मदद के लिए निवेदन भी किया। मै एयरपोर्ट पर राणा के नाम से जाना पहचाना जाता था और कठिन से कठिन स्थितियों को सम करने के लिए भी जाना जाता था । मंत्रालय के प्रोटोकॉल अधिकारी महोदय रात्रि 11.30 बजे ही एयरपोर्ट आ गए और अवगत कराया कि साहब का डोगी बाबा (कुत्ता) भी साथ मे जाएगा व फ्लाइट तीन बजे रात की है । उड़ान मे कुत्तो के लिए अलग से व्यवस्था की जाती है,साथ मे पिंजरा लाना आवश्यक होता है। रात को एक बजे जब साहब आये तो कुत्ता उनकी गोद मे था ,सेक्युर्टी वाले सारे पहचान के बाद भी, बिना पिंजरे के कुत्ते को बोर्ड कराने से मना कर दिया,बड़ी ही मुश्किल से एयरपोर्ट ग्राउंड ड्यूटि के कुछ अधिकारियों के मदद से पिंजरा मिला व अंततः साहब के कुत्ते को विमान मे बोर्ड करा दिया ।एयरपोर्ट मे बहुत कम अधिकारियों को सेक्युर्टी हेल्ड एरिया मे जाने का पास होता है मेरे पास विमान के अंदर तक जाने की सुविधा उपलब्ध थी । मैंने सचिव साहब को विमान के अंदर तक छोड़ा व कहा कि आपका सनी (कुत्ता) अत्यंत सुरक्षित है विमान परिचारिकों को मैंने कह दिया है ध्यान रखने को । सचिव साहब अत्यंत गदगद व बहुत खुश हुए और कई बार मुझसे गले मिले व स्वदेश लौटने के बाद मिलने आने को बारम्बार कहा, और जब साहब फ़्रांकफ़र्ट पर उतरे तब उन्होने पहला आईएसडी कॉल मुझे किया और कहा “सनी” और मै सकुशल पहुँच गए है,थैंक यू ।
You are Rana and That's Sunny..!
इस घटना के बाद लगभग तीन महीने बाद मुझे मेरे एक मित्र ने मुझसे मंत्रालय मे किसी आला अधिकारी से जान पहचान की बात पूछी जिससे उनके काडर परिवर्तन के लिए कुछ हेल्प हो सके । मुझे सहसा उन सचिव महोदय का ध्यान आया मैंने कहा आओ चलते है । मंत्रालय पहुँच कर साहब के पीए से अंदर खबर करने की बात कही ,उनके पीए ने साफ कह दिया कि बिना पूर्व सूचना के साहब किसी से भी नहीं मिलते ,मैंने लाख कहा की आपके साहब मुझे अच्छे से जानते हैं पर वो टस के मस नहीं हुये। अंततः मुझे अपना आई कार्ड दिखा कर सेक्युर्टी कारणो से मिलना को कहा तब उन्होने बस इतना कहा कि आपका परिचय अंदर भेज देता हूँ आगे उनकी मर्जी । लगभग 15 मिनट प्रतीक्षा के पश्चात बुलावा आया मै प्रसन्नता से अंदर प्रविष्ट हुआ सचिव साहब किसी फ़ाइल के गहन अध्यन मे थे दो अन्य अधिकारी भी वहाँ उपस्थित थे ,बैठने का इशारा करते हुए उन्होने पूछा कहिए क्या अरजेंसी है ! मैंने कहा सर आपने मुझे पहचाना नहीं आपके फ़्रांकफ़र्ट विसिट के समय एयरपोर्ट मे आपसे भेंट हुई थी ,उन्होने लगभग नकारात्मक रूप से सिर हिलाते हुए कहा हाँ शायद, मै रोज बहुत से लोगो से मिलता हूँ तभी कहीं आपसे भी मिला होऊंगा ,मुझे काटो तो खून नहीं,मैंने लगभग निराशात्मक रूप से कहा ,सर वो आपके कुत्ते को बड़ी मुश्किल से प्लेन मे बोर्ड कराया था । कुत्ते की बात सुनते ही साहब की भाव भंगिमा एकदम बदल गई और बड़ी आत्मीयता से बोले अरे ! आप राणा हो ? और हाँ ,वो कुत्ता नहीं “सनी” है उन्होने तुरंत सामने बैठे दोनों अधिकारियों को चलता कर अपने पूरे विसिट के बारे मे बताया,चाय पिलवाई और अंत मे पूछा कुछ काम था मंत्रालय मे ? मैंने सकुचाते हुए अपने मित्र के काडर परिवर्तन मे हेल्प के लिए निवेदन किया उन्होने तुरंत ही पीए को बुला कर आवश्यक निर्देश दे दिये । तब तक मै समझ गया था कि मुझे केवल और केवल सनी अर्थात साहब के कुत्ते के बारे मे बात करनी है । चार दिनो के पश्चात साहब का फोन आया काडर मे परिवर्तन के बारे मे सूचित कर कहा और कुछ काम हो तो बताना ,हाँ मैंने सनी का कुशलक्षेम पूछना नहीं भूला और आज भी साहब दिल्ली मे है और उनसे मेरी वार्ता व संबंध केवल सनी के कारण ही है।
एक और महिला अधिकारी है दिल्ली भारत सरकार के मंत्रालय मे ,अविवाहित ,प्रदेश मे मुख्य मंत्री से बनी नहीं, प्रमुख सचिव की दावेदारी के पश्चात भी अपने हट के कारण राष्ट्रीय राजधानी आ गई । उनसे मेरी पहली मुलाक़ात लोधी रोड स्थित इंडियन हैबीटेट सेंटर के नाट्य गृह मे हुई तब मै एक अधिकारी के रूप मे उन्हे नहीं पहचानता था बस एक नाटक जिसमे शबाना आजमी ने भी रोल किया उसकी समीक्षा मे हम दोनों की टिप्पणिया एक सी थी उन्होने मुझे अपना परिचय मंत्रालयीन अधिकारी के रूप दिया और निर्माण भवन स्थित मंत्रालय मे दूसरे दिन मिलने को बुलाया । कक्ष क्रमांक लिखते समय ही मै समझ गया कि विभाग की वो शीर्षस्थ अधिकारियों मे से है ,खैर जब मै उनसे मिलने गया तो उन्होने संभवतः पीए से मेरे आगमन की सूचना दे रखी थी पर पीए ने मुझे ऊपर से नीचे घूरते हुए पूछा कि आप लेखक हो ! तो मै अवाक रह गया एक नया सम्बोधन सुन कर !मैडम ने तुरंत अंदर बुलाया जहां वो खिड़की के पास खड़ी थी उन्होने मुस्कान के साथ स्वागत किया और बैठने को कहा पर खुद नहीं बैठी, इधर उधर की बाते हुई इस बीच लगभग 4-5 अधिकारी आये पर कोई बैठा नहीं वो खुद भी कक्ष मे टहल टहल कर फ़ाइल पढ़ कर आवश्यक टिप्पणिया लिख कर स्टेनो को डिक्टेट करवाती रही ,मै लगभग 1 घंटे रहा पर वो कुर्सी पर नहीं बैठी । बाहर आ कर पीए से माजरा पूछा तो जवाब मिला पिछले 5 महीनो मे आप पहले ‘लकी मैन’ है जिसने मैडम के चेम्बर मे बैठ कर चाय भी पी है। और बताया कि 3 वर्ष के बॅकलाग को केवल 4 महीनो मे मैडम ने दिन रात एक कर पूरा कर दिया है । मैंने श्रद्धा से उनके चेम्बर मे लगी नाम पट्टिका को प्रणाम किया । आज भी उनसे बाते होती है और दिल्ली जाने पर उनसे भेंट जरूर करता हूँ।
डिजिटल टेलीफ़ोन एक्स्चेंज व वायरलेस तकनीकी का ज्ञान :-
टेलीफोन विभाग के आला अधिकारी अब तो सेवा निवृत है दिल्ली मे टेस्टिंग और एवल्यूशन पर उन्होने लगभग 19 वर्ष कार्य किया टेलीफ़ोन मे डायनेमिक लॉक व अन्य टेलीफोन प्लस सुविधाओ को विकसित किया इन्हे फ्रांस ,चीन ,जापान व जर्मनी मे आज भी इनके किए गए कार्य से जानते है । सैम पित्रोदा के साथ ग्रामीण क्षेत्रो के लिए सी डॉट एक्स्चेंज के निर्माण मे इनका अभूतपूर्व योगदान है। इन्होने अपनी सेवा के कुछ वर्ष रायपुर छत्तीसगढ़ (अविभाजित मध्य प्रदेश) मे भी बिताया यंही उनसे मेरी पहली भेंट हुई । इनसे मैंने डिजिटल टेलीफ़ोन एक्स्चेंज व वायरलेस तकनीकी के विषय मे ज्ञान अर्जित किया । मैंने इन जैसा व्यक्तित्व अन्यत्र कहीं नहीं देखा, अल्बर्ट आइन्सटाइन ने गांधी जी के बारे मे कहा था कि हाड़ मास का ऐसा मानव दुबारा जन्म नहीं लेगा । वैसे ही मै इन के बारे मे कह सकता हूँ कि उनकी सरलता ही उनकी महानता है । उन दिनो दूरभाष की सुविधा मिलना दुर्लभ था । अपने रायपुर पदस्थपना के दौरान इन्होने अपने क्षेत्र के लगभग सभी ग्रामीण क्षेत्रो का गहन दौरा कर लोगो को दूरभाष की सुविधा उपलब्ध कराया था इनके कई दौरो मे मै उनके साथ होता था व उनकी सरलता व कार्य के प्रति निष्ठा को देख मै उन्हे नमन करता था । आज वो भारत सरकार के तकनीकी सलाहकार मण्डल मे हैं अपने दिल्ली प्रवास मे उनसे भेंट करने का समय अवश्य निकालता हूँ।
अब एक बड़ी अच्छी व रोचक प्रसंग मेरे जीवन का ,हिन्दी के काम काज व अन्य समीक्षा हेतु दिल्ली से संसदीय समिति आयी हुई थी भारत सरकार के दो बड़े उपक्रम के साथ हमारे कार्यालय मे भी उनका आगमन तय सारा विभाग हलाकान था भोपाल स्थित विभागीय प्रमुख भी नगर मे डेरा डाले थे ,और हमारे कार्यालय प्रमुख ने मुझे बतौर सत्कार अधिकारी उस संसदीय समिति के अध्यक्षा के साथ कामकाज की ज़िम्मेदारी सौपी थी ,और कहा था “राजेंदर कहीं कोई चूक न हो इस बात का विशेष ध्यान रखना, ये समिति सीधे राष्ट्रपति को अपना प्रतिवेदन प्रेषित करती है” । उस संसदीय समिति मे अध्यक्ष के अलावा तीन और सांसद भी थे, महती ज़िम्मेदारी थी, अपरान्ह लगभग एक बजे हम सब नगर मे पहुंचे हमारी स्वागत समूह ने ने अभूतपूर्व स्वागत किया ,संध्या लगभग 5 बजे अध्यक्षा महोदय ने मुझसे कहा कि मुझे निकट किसी देवी के मंदिर मे पूजा हेतु जाना है नवरात्र अष्टमी मे मंदिर जरूर जाती हूँ ! तुरंत आनन फानन मे फालो गार्ड के साथ कार्यालय की एक और महिला अधिकारी के साथ मंदिर पहुंचे पहुंचे मंदिर मे पहले अध्यक्षा मैडम फिर महिला अधिकारी मैडम फिर मै साथ साथ प्रविष्ट हुए ,पुजारी जी को इनके आगमन की सूचना मैंने अपने माध्यम से पहले ही दे रखी थी । पुजारी जी ने अध्यक्षा मैडम को पूजा अर्चना करवाया फिर मुझे व मेरे वरिष्ठ महिला अधिकारी को कहा आप दोनों यहा आ जाइये, उन्होने हमे पति पत्नी समझा मैंने पंडित जी से तुरंत कहा की ये मेरी पत्नी नहीं है तब पंडित जी ने तपाक से पूछा तो फिर कौन है और मेरे जिव्हा तत्काल उत्तर निकला बहन है फिर क्या पंडित जी ने विधि विधान से भाई बहन की पूजा कराई,रोचक यह है कि मैंने नवदुर्गा अष्टमी के दिन अपने आराध्य देवी के मंदिर मे एक बहन को अचानक प्राप्त किया यह मेरे जीवन के लिए अविस्मरणीय है । वो वरिष्ठ महिला अधिकारी आज भी विभाग मे है कदाचित उन्हे यह प्रसंग जरूर स्मरण होगा । उन्हे सादर नमन ।
ना जाने ऐसी कितनी अनगिनत रोचक स्मरण मेरे दिमाग रूपी कम्प्युटर मे दर्ज है पर सभी को शब्दो मे उकेरित करना संभव नहीं है । इन अनुभवो से मैंने बहुत कुछ सीखा है इनका सार अनुवर्ती अधिकारियों को जरूर देना चाहूँगा ।
राजेन्द्र सिंह
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