मोदी सरकार किसान कानून वापस ले या और सरकार भी अड़ी हुइ है जो ये कहने पर आमादा है कि किसान कानून लागू होकर रहेगा।
पहले समझते हैं कि किसान कानून है क्या?
संसद में जहाँ देश के हितैषी ही बैठते हैं उन्होंने देश के किसानों के लिए कृषि कानून में तीन नई चीजे़ लाई है
पहली कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संर्वधन और सरलीकरण) विधेयक 2020
इस कानून में सरकार का इरादा यह है कि हमारे किसान कृषि उत्पाद और बाजार समिति (एएमपीसी)से बाहर भी अपनी फसल ऊँचे दामों पर बेच सकते है। अच्छी बात है ।
नुकसान यह है
सरकार ने एएमपीसी मंडियों को एक तरह से लगाम कस दी है उसकी सीमाएं तय कर दी है। मगर काॅरपोरेट खरीदारों को खुली छूट दे दी है कि वे बिना किसी कानूनी बंधन और पंजीकरण के किसानों की उपज खरीद व बेच सकती है।
इससे देश में दो बाजार बन जाएंगे जो स्वयं सरकार के लिए भी घातक होगा
दो बाजार यानि एएमपीसी के दायरे में आने वाली मंडिया और एक खुला बाजार । दोनों के अपने नियम होगें । और खुला बाजार टैक्स के दायरे से भी बाहर होगा।
हालांकि सरकार का कहना है कि मंडियों की दशा की सुधार के लिए यह कानून ला रहें हैं मगर सच तो यह है इसमें मंडियों का जिक्र भी नहीं है।
दरअसल पूरे देश में 42 हजार मंडियों की जरूरत है और वर्तमान में केवल 7000 मंडियां ही मौजूद हैं।
ऐसे में सरकार को चाहिए कि किसान कानून 2020 के बजाय मंडियों की संख्या बढ़ाए ताकि अपनी फसल बेचने के लिए किसानों को इंतेजार न करना पड़े । किसनों का कहना है कि सरकार इस कानून के सहारे सीधे निजी बाजार के हवाले कर रही है जिसमें काॅरपोरेट जगत के दिग्गज मोर्चा सम्भाले हुए हैं।
मंडियों का अस्तित्व ठीक वैसे ही खत्म हो जाएगा जैसे दूरदर्शन या बीएसएन नीजि कम्पनियांे के आते ही खत्म हो गए या यूं समझ लिजिए उनकी प्रासंगिता खो गई आज दूरदर्शन को देखने वाला दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आता। बीसएसएन तो किसी किसी के पास ही होगा।
सरकार का कहना है कि लम्बे समय में किसानों को फायदा मिलेगा? मगर बिहार राज्य इसका उदाहरण है जहाँ 2006 में मंडी व्यवस्था दम तोड़ चुकी है और आज तक बिहार में किसानों को कम दाम में ही अपनी फसल बेचनी पड़ रही है। वहां कोई कृषि क्रांति नहीं आई है किसानों की आत्महात्याएं घटनाएं आज भी वैसी ही है। 2020 में बिहार में गेहूँ के कुल उत्पादन का सिर्फ 1 प्रतिषत ही खरीदा जा सका। कुल मिलाकार खुले बाजार की नीति से वहाँ कोई भी किसान अमीर नहीं हो सका ठीक वैसे जैसे प्राईवेट स्कूल के टीचर तमाम तामझाम के बावजूद अमीर नहीं हैं।
दूसरा कानून है जो किसानों के हितों की बात करता है
वह है कृषि (सशक्तिकरण और संर्वधन) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक 2020
इस विधेयक के माध्यम से सरकार निजी कम्पनियों और किसानों के बीच एक करार (Contract) वाली खेती का रास्ता खोल रही है । जिसे हम आम बोलचाल में कांट्रेक्ट फार्मिंग (Contract Farming )कहते है। जिसके तहत कम्पनी किसानों से अपनी जरूरत के हिसाब से उपज का एक राषि तय कर उनसे किसानी करावायेगी। यानि उपज की पूरी राशि पहले से तय की जाऐगी समय आने पर उस राशि का भुगतान कर कम्पनी फसल किसान से लेगी।
नुकसान यह है:-
सुनने में यह बहुत अच्छा लगता है कि किसानों को इस कानून के आने से बचेने के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा फसल तो उनकी बिकेगी ही और राशि भी निश्चित ही मिलेगी यानि मेहनत का फल मिलेगा ।
मगर तब क्या होगा जब समझौते की राशि से बाजार की राशि कम हो जाएगी - जाहिर है कम्पनी अपना क्यों घाटा करेगा और किसान से बड़ी हुई कीमत पर फसल खरीदेगा? वो तो सीधा बाजार से जाकर कम कीमत पर फसल खरीद सकता है ।ऐसे में जाहिर है किसान को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
दूसरा इसमें ये भी झोल नजर आता है कि अगर समझौते की रकम बाजार से कम हो जाएगी तो किसान फिर से कम्पनी को बचेने पर मजबूर हो जाएगा । कम्पनी उस पर उपज बेचने का दबाव बना सकती है । मन मार कर किसान को अपनी फसल बाजार से कम दाम में कम्पनी को बेचना ही होगा।
पूंजी से भरी कम्पनी भारी से भारी वकील लगा सकती है जिसे गरीब किसान जवाब नहीं दे पाएगा
तीसरा कानून है आवष्यक वस्तु संषोधन विधेयक 2020
यह तो आम जनता के लिए भी खतरनाक है । इससे जमाखोरी को बढ़ावा मिलेगा। जिनके पास बेहिसाब पूंजी है वे भंडारन कर सकते है । मगर हमारे देश में 80 फीसदी किसान जो छोटे और मझोले किसानों की श्रेणी में आते हैं । अधिकांश के पास तो मुश्किल से रहने को घर है तो वे भंडारण कैसे कर पाएंगे ?
हमारे किसान तैयार फसल को तुरंत बेचकर आजीविका चलाते हैं ,वे भंडारण की तो कल्पना भी नहीं कर सकते । हाँ जो पूंजीपति है वे जरूर बाजार में कीमत बढ़ने तक भंडार रख सकते हैं क्योंकि उनके पास कोल्ड स्टोरेज हैं । भंडारण की पर्याप्त सुविधाएं है।
इन्हीं बिन्दुओं के आधार पर देश भर में किसान सरकार से आरपार की लड़ाई लड़ रही है । देखना यह है कि इसका परिणाम क्या होता है। क्या सरकार कानून वापस लेगी ? । या देश को नोटबंदी, जीएसटी जैसी एक और आपदा को झेलना होगा। जिसका नाम है किसान कानून 2020।