बायसन डांस (Dandami Mariya Dance)
बस्तर की एक खास पहचान है। वन भैंसा के सींग से बने मुकुट पहन कर नाचने की कला में बस्तर के कलाकार महिर हैं । इसी कला को निहारने देश विदेश से सैलानी तो आते ही हैं साथ ही बस्तर आए अतिविशिष्ट अतिथियों का स्वागत भी इसी परम्परागत बायसन डांस के जरिए होता है । किसी खास मेहमान के आने पर या राज्योत्सव में बायसन सिंग का मुकुट पहने कलाकारो को आकर्षक नृत्य करते हम सभी ने देखा है । और इसी बायसन नृत्य में जो खूबियां हैं उन्ही के बारे में चर्चा करने के उद्देश्य से मै यह लेख लिख रहा हूँ। क्या होता है यह डांस ? कौन करते हैं इसे ?
तथा किन अवसरों पर की जाती है यह नृत्य जानने के लिए दंतेवाड़ा के घोटपाल गाँव में हम पहुँचे ।
तथा किन अवसरों पर की जाती है यह नृत्य जानने के लिए दंतेवाड़ा के घोटपाल गाँव में हम पहुँचे ।
सरपंच के बेटे अनिल कुमार लेखामी से मुलाकात हुई । बातों ही बातों में अनिल ने बायसन मुकुट को लेकर बड़ी दिलचस्प बातें बताई
इस मुकुट को बनाने में मोर पंख, मुर्गे का पंख और दुर्लभ वनभैंसे यानि बायसन के सींग के अलावा मयंगराज पक्षी (शायद उच्चारण सुनने में गलती हुई कृपया वीडियो देखिए) का पंख लगाया जाता है । इस मुकुट में एक जोड़ मयंगराज पक्षी का पंख की कीमत आप सुनेगें तो दंग रह जाएगें वह होता है 200 रूपए । इस मुकुट को बनाने में कुल एक लाख तक खर्च होते हैं ।
इस तरह मुकुट में केवल पक्षीयों के पंख ही 50 हजार के होते हैं। खैर फिर शूटिंग में थोड़ा वक्त था वाॅर्म अप सेशन चल रहा था अनिल ने बताया कि के इस अवसर पर बजाए जाने वाले ढोल में एक तरफ गाय तो दूसरी तरफ बकरी की चमड़े का
इस्तेमाल होता है और ढोल को बनाने में दो से तीन दिन लगते हैं। लकड़ी के बड़े गट्ठे को खोखला कर ये ढोल बनाया जाता है।
इस मुकुट को बनाने में मोर पंख, मुर्गे का पंख और दुर्लभ वनभैंसे यानि बायसन के सींग के अलावा मयंगराज पक्षी (शायद उच्चारण सुनने में गलती हुई कृपया वीडियो देखिए) का पंख लगाया जाता है । इस मुकुट में एक जोड़ मयंगराज पक्षी का पंख की कीमत आप सुनेगें तो दंग रह जाएगें वह होता है 200 रूपए । इस मुकुट को बनाने में कुल एक लाख तक खर्च होते हैं ।
इस तरह मुकुट में केवल पक्षीयों के पंख ही 50 हजार के होते हैं। खैर फिर शूटिंग में थोड़ा वक्त था वाॅर्म अप सेशन चल रहा था अनिल ने बताया कि के इस अवसर पर बजाए जाने वाले ढोल में एक तरफ गाय तो दूसरी तरफ बकरी की चमड़े का
इस्तेमाल होता है और ढोल को बनाने में दो से तीन दिन लगते हैं। लकड़ी के बड़े गट्ठे को खोखला कर ये ढोल बनाया जाता है।
मड़िया समुदाय के लोग इस नृत्य को शादी ब्याह, स्वागत-सत्कार या शिशु के जन्म दिन इत्यादि पर किया जाता है । अपनी खुशी जाहिर करने के लिए यह नृत्य किया जाता है।
कैसे की जाती है इसे
इस डांस को करने के कई स्टेप्स होते हैं जिनमें चक्र बनाकर, स्त्रिी पुरूष दोनों ही करते हैं । हमने एक बच्चे को भी इस नृत्य में देखा इससे ये लगता है कि बच्चे भी इस नृत्य में शामिल हो सकते है। अनिल ने बताया कि इसे करने में आपसी तालमेल की बहुत जरूरत पड़ती है और ये एक दो से नहीं बल्कि समूह में ही किया जाता है ।
नत्य में भाग लेने वालों की अलग-अलग भूमिकाएं होती है जो पहले से निर्धारित की जाती है । इसका बकायदा प्रशिक्षण भी होता है जो एक हफते तक का होता है । कभी-कभी सीखने वाला दो तीन दिनों में ही महारत हासिल कर लेता है तो उसे डांस के दल में शामिल कर लिया जाता है।