राष्ट्रीय उद्यान और अभ्यारण्य
छत्तीसगढ़ में तीन राष्ट्रीय उद्यान और 11 अभ्यारण्य है।
राष्ट्रीय उद्यान क्या है
सभी आरक्षित वन इसके अंतर्गत के अन्तर्गत आते हैं। इस प्रकार के वनों में कटाई, और पशुओं को चराना सख्त मना है।
सर्वाधिक आरक्षित वन दंतेवाड़ा में है तो न्यूनतम आरक्षित वन कोरबा जिले में हैं। भारतीय वन प्रतिवेदन 2017 के अनुसार छत्तीसगढ़ में 27, 782 वर्ग किमी वन क्षेत्र आरक्षित हैं जो पूरे देश का 44.14 प्रतिशत क्षेत्र है।
छत्तीसगढ़ में तीन राष्ट्रीय उद्यान हैं वे हैं -
इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान
और गुरूघासी दास राष्ट्रीय उद्यान
गुरू घासी दास उद्यान कोरिया जिले में है। यह छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है। बात करते हैं बस्तर संभाग में मौजूद राष्ट्रीय उद्यान की । इसमें सबसे पहला नाम आता है।
इंद्रवती राष्ट्रीय उद्यानः- वनभैंसा, गौर भालू तथा सांभर इस उद्यान में संरक्षित है। इस उद्यान के बीच इंद्रावती नदी बहती है । यह छत्तीसगढ़ राज्य का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान है। प्रदेष का प्रथम गेम सेंचुरी कुटरू इसी उद्यान में है। यह उद्यान बीजापुर जिले में स्थित है। इसकी स्थापना 1978 में की गई थी। इसका कुल क्षेत्रफल 1258 वर्ग किमी है । 2009 में इसे टाईगर रिर्जव का दर्जा दिया गया जो राज्य का प्रथम टाइगर रिजर्व है। बीजापुर जिले का यह उद्यान कई मायनों में खास है
एक तो यह राज्य का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान है । दूसरा राज्य में प्रथम टाईगर रिजर्व इसी उद्यान में मौजूद है।
तीसरी खास बात इस उद्यान की यह है कि इसमें state का पहला गेम संेचुरी है जो कुटरू में है।
कांगेर घाटी
इसकी स्थापना 22 जुलाई 1982 में हुई थी। इस पार्क में एकमात्र तितली पार्क बनाया गया है जिसे तितली ज़ोन कहते हैं। यह छत्तीसगढ़ राज्य का सबसे छोटा राष्ट्रीय उद्यान है जिसे Asia का सबसे पहला बायोस्फीयर घोषित किया गया है। यहाँ पहाड़ी मैना जो प्रदेष की राजकीय पक्षी है पायी जाती है। इसके अलावा उड़न गिलहरी, और रिसस बंदर पाए जाते है। यहीं पर भैंसा दरहा नामक स्थान पर प्राकृतिक रूप से मगरमच्छ पाए जाते हैं । इसके बीच से कांगेर नदी बहती है। इस राष्ट्रीय उद्यान का कुल क्षेत्रफल 200 वर्ग किमी है और यह बस्तर जिले में स्थित है। यहीं पर तीरथगढ़ और कोटेमसर की गुफाएं भी हैं।
इसके अलावा दो अभ्यारण्य भी हैं जिनके नाम भैरवगढ़ और पामेढ़ हैं ये दोनों ही बीजापुर जिले में है। जानते हैं इनके बारे में
भैरव गढ़ अभ्यारण्य
यह 1983 में गठित हुआ। यहाँ वन भैंसों को संरक्षण प्रदान किया जाता है। यह 139 वर्ग मील में फैला है। यहाँ मुख्य रूप से बाघ, तेन्दुआ, चीतल, साम्भर व वराह आदि जानवरों को भी संरक्षण दिया जा रहा है।
दूसरे अभ्यारण्य का नाम है पामेढ अभ्यारण्य
पामेढ़ अभ्यारण्य इसे धामेद अभ्यारण्य भी कहते हैं । इसकी स्थापना भी 1983 में हुई यह 262 वर्ग मील में फैला है। इस अभ्यारण्य में भी वन भैंसों को संरक्षण दिया जाता है।
अभ्यारण्य में पशु चराना और कटाई दोनों ही प्रतिबंधित है।
यह आरक्षित वन क्षेत्र के अंतर्गत आते है।
केवल अवर्गीकृत वन व संरक्षित वन क्षेत्रों में केवल स्थानीय लोग ही निजी उपयोग हेतु सीमित मात्रा में जलाऊ लकड़ी के लिए वनों की कटाई करने का अनुमति प्राप्त होता है। साथ ही इन क्षेत्रों में पशु चराने का काम वे कर सकते हैं ।