छत्तीसगढ़ में लगभग सभी विधायकों को संसदीय सचिव बना दिया गया और इसे लेकर विधायकों की खूब वाही-वाही हुई । ऐसे में यह जान लेना आवष्यक हो जाता है कि संसदीय सचिव क्या है ? और इसका काम क्या होता है?
और संविधान में इसकी क्या व्यवस्था है? जानते हैं
संसदीय सचिव राज्य और केन्द्र में अलग-अलग होते हैं ।
और संविधान में इसकी क्या व्यवस्था है? जानते हैं
संसदीय सचिव राज्य और केन्द्र में अलग-अलग होते हैं ।
पहले बात करते हैं केन्द्र सरकार के संसदीय सचिवों के बारे में ।
एक उच्च रैकिंग का सरकारी पद है। संसदीय सचिवों की नियुक्ति भारत के प्रधान मंत्री करते हैं।
इसके कार्य
संसदीय सचिव का प्रमुख कार्य कैबिनेट मंत्रियों,यहां तक कि प्रधान मंत्री की भी सहायता करना है। एक संसदीय सचिव के कई विभागीय और संसदीय कर्तव्य भी होते हैं। मै केन्द्र सरकार के बारे में बात कह रहा हूँ जबकि राज्यों में इसकी अलग व्यवस्था होती है। तो केन्द्र सरकार में ये सचिव कैबिनेट मंत्रियों के नेतृत्व में बारीकी से काम करते हैं और इसके अतिरिक्त, कार्यों में उनके पास विभाग से संबंधित सार्वजनिक और सदन के कर्तव्यों का पालन करना भी होता है।
सदन में उनकी ड्यूटी
सदन में संसदीय सचिव मंत्रियों, सीनेटरों और अन्य सदन के सदस्यों के बीच कड़ी के रूप में कार्य करते हैं। वे सरकारी बैठकों के संपर्कों को मजबूत बनाने में सहायता करते हैं। वे कैबिनेट सदस्यों के कार्यो के संबंध में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सदन में मंत्री की अनुपस्थिति होने पर नीतिगत सवालों के जवाब देना उनकी व्यक्तिगत जिम्मेदारी है। तो इस तरह उनकी जिम्मेदारी होती है जो केन्द्र सरकार में बैठे संसदीय सचिवों की होती है।
अन्य भूमिकाएं और जिम्मेदारियां
सदस्यों द्वारा वक्तव्य तैयारी करना।कई सदस्य इस उद्देश्य के लिए समय नहीं दे पाते हैं।
कार्यस्थगन कार्यवाही के दौरान, वे एक मंत्री की ओर से बात-चीत भी कर सकते हैं।
कुछ परिस्थितियों वे में कैबिनेट मंत्री की ओर से कार्य भी कर सकते हैं।
वे क्या नहीं कर सकते ।
संसदीय सचिव सरकारी बिलों का प्रतिनिधित्व करने और अपने निजी सदस्य के प्रस्ताव या बिल को पेश करने का अधिकार नहीं होता है।
अब आते हैं राज्यों में संसदीय सचिव क्या होते हैं
कई राज्यों में संसदीय सचिव पद का चयन होता है। पंजाब, असम, मणिपुर, मिजोरम, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश जैसे कुछ राज्य हैं जहां संसद सचिवों नियुक्ति है।
राज्यों में संसदीय सचिव को हम एकदम आसान भाषा में कहें, तो ये एक ऐसा पद है जो वित्तीय लाभ के लिए होते हैं।
उसका काम-काज
संसदीय सचिव जिस किसी भी मंत्री के साथ जुड़ा होता है, वो उसकी मदद करता है. बदले में उसे पैसा, कार जैसी जरूरी सुविधाएं मिलती हैं।
देखा जाए तो यह व्यवस्था भी अंग्रेजों की देन है । इंग्लैंड में मंत्री संसद के उसी सदन में जा सकता है, जिसका वो सदस्य होता है । तो दोनों सदनों में काम करने के लिए मंत्री को पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी की जरूरत पड़ती है। और ये संसदीय सचिव मंत्री की तरफ से किसी भी सदन में जा सकते हैं ।
हमारे देश में मंत्री तो लोकसभा या राज्यसभा, किसी भी सदन में जा सकते हैं। मंत्रियों की मदद के लिए केंद्र में मिनिस्ट्री ऑफ पार्लियामेंट्री अफेयर्स होता हैं , जो इस तरह के काम देखता है। उसी के अंतर्गत पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी आते हैं.
अब राज्यों में इसके पीछे गणित को समझते हैं । क्यों संसद तो केन्द्र में होता है।
आम बोलचाल में कहें, तो राज्यों में कई बार मंत्री पद न मिलने से नाखुश विधायकों को ये पोस्ट दे दी जाती है। पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी को राज्यमंत्री या कैबिनेट मंत्री की रैंक दी जाती है। उनको सारी सुविधाएं भी मंत्री वाली ही मिलती हैं।
पर क्या राज्य सरकारों का ऐसा करना ठीक है? किसी विधायक को खुश करने के लिए जनता का पैसा बर्बाद करना उचित है?
संविधान क्या कहता है?
1. 2003 में संविधान में एक संशोधन किया गया था। इस 91वें संशोधन के मुताबिक आर्टिकल 164(1।) जोड़ा गया। इसमें कहा गया कि किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री को मिलाकर कुल विधायकों का 15 फीसदी ही मंत्री रह सकते हैं। यानी 100 विधायक हैं, तो कुल 15 मंत्री। मतलब हर किसी को मंत्री बनाकर पैसा बांटना बंद। दिल्ली के लिए आर्टिकल 239(।) है। यहां 10 फीसदी तक ही मंत्री हो सकते हैं। यानी कुल 70 विधायकों में से 7 विधायक ही मंत्री रह सकते हैं।
2. लेकिन राज्य सरकारों में भी चतुर लोग बैठे हैं। इन्होंने तुरंत अपना एक कानून बनाया। जो वेस्ट बंगाल संसदीय सचिव( अपाईटमेंट,सैलरी , आलाऊंस और अन्य व्यवस्थाएं ) बिल 2012 की तरह था। कई राज्यों में ऐसे कानून से पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी का पोस्ट बनाया गया। जिस के कारण विधायक की मंत्री की रैंक रहेगी। विधायक को और क्या चाहिए। पद, सिक्योरिटी, दबदबा. मंत्रीजी वाला रुतबा।
3. पर मामला फिर फंसा संविधान के आर्टिकल 191 के मुताबिक, कोई विधायक या सांसद सरकार के अंतर्गत किसी ‘लाभ के पद’ पर नहीं रह सकता. ऐसा होने पर विधायकी से बर्खास्त हो जायेंगे. हालांकि कैबिनेट मिनिस्टर या मिनिस्टर ऑफ स्टेट को ‘लाभ का पद’ नहीं माना जाता, पर पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी को ‘लाभ का पद’ माना जाता है । तो फिर इसका क्या उपाय है?
4. इसका भी तोड़ निकाला गया। राज्य सरकार कानून लाकर पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी के पोस्ट को ‘लाभ के पद’ से मुक्त दिया गया। जैसे दिल्ली सरकार के कानून दिल्ली मेंबर आफ लेजिसलेटिव असेम्बली ( रिमूवल आफ डिसक्वालिफिकेशन ) 1997 के मुताबिक, ये लाभ का ही पद है। अरविंद केजरीवाल सरकार ने कानून में बदलाव लाते हुए जून, 2015 में दिल्ली मेम्बर आफ लेजिसलेटिव असेम्बली (रिमूवल आफ डिसक्वालिफिकेशन ) बिल 2015 लाया। इसमें प्रावधान था कि मंत्रियों को दिए गए पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी पोस्ट को लाभ का पद न माना जाये। साथ ही इसे बैक-डेट से लागू किया जाए
मुख्य दिक्कतें तो यहाँ हैं
1. मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों के अलावा बाकी सारे विधायक, चाहे सरकार की पार्टी के हों या किसी और पार्टी के, कानून बनाने की प्रक्रिया में भाग लेते हैं। ये दबाव के जरिए सरकार पर लगाम भी रखते हैं। अब पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी बनाकर किसी विधायक को किसी मंत्री के नीचे लाना एक तरह से इस व्यवस्था को तोड़ना है। सत्ता के मन के अनुरूप ढालना है.
2. विधायकों को खुश करने के लिए मंत्री का दर्जा देना पब्लिक के पैसे की बर्बादी है।
तो इस तरफ से संसदीय सचिव बनाकर विधायकों को खुष करने का चलन हैं छत्तीसगढ़ में ये अब शुरू हो चुका है।