तुगलक वंश 1320-1412
अक्सर हम आजकल किसी भी बेहुदा और बेतुका आदेश के लिए कहते है ये तुगलकी फरमान है ! जानते है उस बादशाह के बारे में जिसके कारण इस मुहावरे का जन्म हुआ है। ये है मुहम्मद बिन तुगलक जिसने दिल्ली सल्तनत पर राज किया और कुछ ऐसे आदेश दिए जो आगे चलकर बड़ी मुसीबतें खड़ी कर गई , जानते हैं वे क्या थे? ऐसे बेमिसाल बादशाह को समझने के लिए थोड़ इतिहास के पन्नों को उलटना जरूरी है।इतिहास
गियासुद्दीन तुगलक ने खिलजी वंश के बाद एक नए वंश की स्थापना की जिसे तुगलक वंश कहते है। अलाउद्दीन खिलजी ने 20 साल तक शासन किया । और 1316 में उसकी मृत्यु हो गई ।
उसके बाद जितने भी उत्तराधिकारी आए वे सभी निकम्मे थे। यह इस बात से जाहिर होता है कि अलाउद्दन की मौत के बाद मुश्किल से यह वंश 1320 तक चल पाया । खिलजी वंश का अंतिम शासक खुसरो था। जिसकी हत्या गाजी मलिक ने की और खुद सुल्तान बन बैठा । इतिहास में यह घटना 1320 में हुई । यही गाजी मलिक आगे चलकर गियासुद्दनी तुगलग कहलाया ।
खिलजी वंश के बारे में जानकारी के लिए लिंक पर क्लिक कीजिए!
Muhammad Bin Tughlaq |
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गियसुद्दीन तुगलग के बारे में (1320-25)
तुगलक वंश (Tughlaq Dynasty )खिलजी वंश के बाद आया । इस वंश की स्थापना 1320 में हुई । इस वंश का संस्थापक गियासुद्दीन तुगलक था। इस दौरान पूरा देश उपद्रवियों के हाथों में था । गियासुद्दीन तुगलक ने इन उपद्रवियों का दमन किया और भारत को एक करने का प्रयत्न किया । वह एक कुशल योद्धा एवं प्रशासक था। वह बड़ा दयालु भी था। उसने किसानों पर लगे बहुत से टैक्स को हटा दिया था ।
उसकी मृत्यु उसकी स्वागत में बनायी गई पंडाल के गिरने से हो गई । इतिहासकारों के अनुसार उसके बेटे जूना खान ( जो बाद में मोहम्मद बिन तुगलग कहलाया )ने एक षडयंत्र के तहत पंडाल गिरा कर उसे मार डाला ताकि वह दिल्ली सल्तनत पर अपना कब्जा जल्द बना सके।
मोहम्मद बिन तुगलग (1325 से 1351)
इसके बाद मोहम्मद बिन तुगलग 1325 से 1351 तक राज्य किया। पूर्व में उसका नाम जूना खान था । शासक बनने के बाद उसने अपना नाम मोहम्मद बिन तुगलक नाम रख लिया ।वह दिल्ली के सुल्तानों में सबसे ज्यादा कुशाग्र बुद्धि उसकी थी। वह दर्शन,गणित,भौतिकी,चिकित्सा तर्कशास्त्र, खगोल शास्त्र का ज्ञाता था। सल्तनत को एक करने के लिए उसने कई उपाय किए। वह राजकाज में उलेमाओं के हस्तक्षेप के सख्त खिलाफ था। देश को मजबूत बनाने के लिये उसने कुछ ऐसे उपाय अपनाए मगर उनका असर उल्टा होता गया । इसीलिए उसे Tughlaq Dynasty का पागल बादशाह भी कहते हैं । आज भी आमतौर उल्टे सीधे लिए जाने वाले फैसलों को तुगलगी फरमान कहा जाता है। । जानते है वे क्या फैसले थे जिसने एक बादशाह को पागल करार करा दिया।
राजधानी का परिवर्तन (1326-27)
उसने अपनी राजधानी दिल्ली से दौलत बाद( देवगिरी )की । इसके पीछे उसका इरादा यह था कि मंगोल के आक्रमण से बचा जा सके साथ दक्षिण पर भी अच्छी तरह प्रशासनिक नियंत्रण हो सके। इसके लिए उसने अपने साथ साथ आम जनता को पूरे 1500 किमी तक दौलताबाद चलने को कहा । योजना अच्छी थी मगर आवागमन के साधनों के अभाव और रास्ते में आने वाली मुश्किलों ने जनता को त्रस्त कर दिया । कई लोगों ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया । फिर भी बचे खुचे जीवित बचे लोग दौलताबाद पहुँचने में कामयाब हुए और राजधानी दिल्ली से दौलताबाद बन गई । फिर उत्तर में नई मुसीबत पैदा हो गई । उत्तर भारत खाली हो गया । सल्तान के बगैर मंगोलों को आक्रमण करने एवं लूटपाट करने की खुली छुट मिल गई। मंगोल बार बार इन क्षेत्रों में आक्रमण करते रहे। इससे परेशान होकर पांच सालों के बाद फिर दौलता बाद से दिल्ली अपने राजधानी बनाने की उसने घोषणा की । और लोगों को वापस दिल्ली चलने को कहा।
फिर उसी तकलीफ में लोग दिल्ली पहुँचे और जो जीवित बचे वे दिल्ली पहुँचने में कामयाब हुए।
तो इस तरह देश को अच्छे से चलाने के लिए राजधानी परिवर्तन का आईडिया पूरी तरह उसका फेल हो गया ।
तुगलक वंश (Tughlaq Dynasty )खिलजी वंश के बाद आया । इस वंश की स्थापना 1320 में हुई । इस वंश का संस्थापक गियासुद्दीन तुगलक था। इस दौरान पूरा देश उपद्रवियों के हाथों में था । गियासुद्दीन तुगलक ने इन उपद्रवियों का दमन किया और भारत को एक करने का प्रयत्न किया । वह एक कुशल योद्धा एवं प्रशासक था। वह बड़ा दयालु भी था। उसने किसानों पर लगे बहुत से टैक्स को हटा दिया था ।
उसकी मृत्यु उसकी स्वागत में बनायी गई पंडाल के गिरने से हो गई । इतिहासकारों के अनुसार उसके बेटे जूना खान ( जो बाद में मोहम्मद बिन तुगलग कहलाया )ने एक षडयंत्र के तहत पंडाल गिरा कर उसे मार डाला ताकि वह दिल्ली सल्तनत पर अपना कब्जा जल्द बना सके।
मोहम्मद बिन तुगलग (1325 से 1351)
इसके बाद मोहम्मद बिन तुगलग 1325 से 1351 तक राज्य किया। पूर्व में उसका नाम जूना खान था । शासक बनने के बाद उसने अपना नाम मोहम्मद बिन तुगलक नाम रख लिया ।वह दिल्ली के सुल्तानों में सबसे ज्यादा कुशाग्र बुद्धि उसकी थी। वह दर्शन,गणित,भौतिकी,चिकित्सा तर्कशास्त्र, खगोल शास्त्र का ज्ञाता था। सल्तनत को एक करने के लिए उसने कई उपाय किए। वह राजकाज में उलेमाओं के हस्तक्षेप के सख्त खिलाफ था। देश को मजबूत बनाने के लिये उसने कुछ ऐसे उपाय अपनाए मगर उनका असर उल्टा होता गया । इसीलिए उसे Tughlaq Dynasty का पागल बादशाह भी कहते हैं । आज भी आमतौर उल्टे सीधे लिए जाने वाले फैसलों को तुगलगी फरमान कहा जाता है। । जानते है वे क्या फैसले थे जिसने एक बादशाह को पागल करार करा दिया।
राजधानी का परिवर्तन (1326-27)
उसने अपनी राजधानी दिल्ली से दौलत बाद( देवगिरी )की । इसके पीछे उसका इरादा यह था कि मंगोल के आक्रमण से बचा जा सके साथ दक्षिण पर भी अच्छी तरह प्रशासनिक नियंत्रण हो सके। इसके लिए उसने अपने साथ साथ आम जनता को पूरे 1500 किमी तक दौलताबाद चलने को कहा । योजना अच्छी थी मगर आवागमन के साधनों के अभाव और रास्ते में आने वाली मुश्किलों ने जनता को त्रस्त कर दिया । कई लोगों ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया । फिर भी बचे खुचे जीवित बचे लोग दौलताबाद पहुँचने में कामयाब हुए और राजधानी दिल्ली से दौलताबाद बन गई । फिर उत्तर में नई मुसीबत पैदा हो गई । उत्तर भारत खाली हो गया । सल्तान के बगैर मंगोलों को आक्रमण करने एवं लूटपाट करने की खुली छुट मिल गई। मंगोल बार बार इन क्षेत्रों में आक्रमण करते रहे। इससे परेशान होकर पांच सालों के बाद फिर दौलता बाद से दिल्ली अपने राजधानी बनाने की उसने घोषणा की । और लोगों को वापस दिल्ली चलने को कहा।फिर उसी तकलीफ में लोग दिल्ली पहुँचे और जो जीवित बचे वे दिल्ली पहुँचने में कामयाब हुए।
तो इस तरह देश को अच्छे से चलाने के लिए राजधानी परिवर्तन का आईडिया पूरी तरह उसका फेल हो गया ।
दोआब में टैक्स(1326-27)
अगली योजना जो मुहम्मद तुगलग की जो बुरी तरह से असफल हो गई वह थी दोआब में टैक्स की बढ़ोत्तरी । इसके पीछे तुगलग की मंशा यह थी सल्तनत की सैनिक क्षमता को बढ़ाया जाए। ताकि राजधानी परिवर्तन में हुए नुकसान की भरपाई हो सके। उसने दोआब क्षेत्र में किसानों पर 50 प्रतिशत तक टैक्स बढ़ा दिया । मगर बदकिस्मती से दोआब में अकाल पड़ गया किसान किसी भी प्रकार का कर देने में असमर्थ हो गए। कई किसानों ने खेती किसानी छोड़ दी । जिससे स्थिति और भी बेकार हो गई। जब तुगलग को अपनी गलती का अहसाह हुआ तो उसने न केवल अपना आदेश वापस लिया बल्कि किसानों को मदद करने के लिए आगे आया ताकि वे कृषि कार्य जारी रख सकें
सांकेतिक मुद्रा का चलन (1329-30)
तीसरी उसकी कल्याण कारी योजना भी काफी विवादों में आयी जिसने उसे पागल बादशाह करार कर दिया । वह थी सांकेतिक मुद्रा का चलन । उसने पिछली योजनाओं के नुकसान को दूर करने के लिए ताबें के सिक्कों का चलन आरम्भ किया । पहले ये सिक्के चांदी के चलते थे। लेकिन कुछ समय बाद त्रस्त जनता ने अपने अपने घरों पर तांबे के सिक्के ढालने शुरू कर दिए जिससे शाही खजाने का नुकसान हुआ। इसके बाद , सांकेतिक मुद्रा का आदेश उसे वापस लेना पड़ा ।
इस तरह उसका पूरा कार्यकाल विवादों में भरा रहा । इतिहासकारों के अनुसार वह बहुत बड़ा विद्वान था मगर उसमें सामान्य सोच की कमी थी जिसकी वजह से उसकी सारी कल्याण कारी योजनाएं धाराशाही होती गई। उसके सल्तनत के अलग अलग हिस्सों में आए दिन इसी वजह से विद्रोह होते रहे।