मुहम्मद बिन तुगलक़ का कोई उत्तराधिकारी नहीं था। जब मुहम्मद बिन तुगलक़ की मौत हुई तो उसका चचरा भाई फिरोज तुगलक़ सुल्तान बना । वह कट्टर सुन्नी था। फिरोज ने उलेमा, कट्टर मुस्लिमों और नवाबों को शान्ति करने में लगा रहा ताकि उसकी स्थिति मजबूत हो सके।
फिरोज तुगलक़ के कार्य
- उसने उलेमाओं को उच्च पदों पर नियुक्ति देना शुरू कर दिया । इतना ही नहीं उलेमाओं को जमीने भी उसने दान कर दी। और हिन्दुओं पर जजिया नामक कर लगाया ।
- वह अपने आप को ईश्वर का प्रतिनिधि मानता था। उसने धर्म और प्रशासन में अलाउद्दीन खिलजी और मुहम्मद बिन तुगलक़ द्वारा बनाए गए नियमों को बदल दिया । उसने मुहम्मद तुगलक़ पर जनता की नाराजगी को कम करने के कई प्रयास किए।
- उसने खेती किसानी को पटरी पर लाने के लिए कई नहर और नालियों का निर्माण कराया तथा पुराने जल सो्रतों का पुर्ननिर्माण किया
- वहीं दूसरी तरफ भूराजस्व कम की तथा बाजारों पर अधिक से अधिक खरीदारी और बिक्री पर जोर दिया । छोटे आकार के सिक्कों को अपने शासन में प्रचलित किया ।
- मुस्लिम शिक्षा को बढ़ावा देने की गरज से उसने कई मदरसों (इस्लामिक स्कूल) का निर्माण कराया तथा विद्धानों को पुरस्कृत किया ।
- गरीब मुसलमानों की उसने भरपूर मदद की ताकि उनकी आर्थिक स्थिति सुधर सके।
- संस्कृत ग्रंथों का उसने पर्शियन तथा अरबी भाषा में अनुवाद करवाया जिससे भारतीय दर्शन और ज्ञान से लोग परिचित हो सकें।
- उसका दीवाने खैरात नामक विभाग गरीब और बेसहारा बालिकाओं के विवाह के लिए धनराशि देता था। वह हरियाणा के यमुनानगर जिले के रादौर के पास स्थित मेरठ और टोपरा से 2 अशोक स्तंभों को मंगवाया जिसे बड़ी ही बारीकी से काटकर रेश्म में लपेट कर बैलगाड़ियों से दिल्ली लाया गया । और उसे फिरोज शाह कोटला में अपने महल की छत पर एक को लगाया ।
- 1368 में कुतुब मीनार में बिजली गिरने से उसे छति पहुँची थी उसका उसने जीर्णोद्धार करवाया । लाल पत्थर और संगमरमर से उसकी ऊपरी मंजिल को ठीक करवाया
फिरोज तुगलक़ के बड़े बेटे फात खान, की मृत्यु 1376 में हुई। फिर उसने अगस्त 1387 में राजकाज सबकुछ त्याग दिया और अपने दूसरे पुत्र, प्रिंस मुहम्मद, को सुल्तान बनाया। एक दास विद्रोह ने उसे अपने पोते तुगलक खान को शाही खिताब दिए जाने पर मजबूर किया।
तुगलक की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार का युद्ध हुआ। जिसमें स्वतंत्र राज्य स्थापित करने के लिए नवाबों ने भी विद्रोह किया । उसका उत्तराधिकारी गियास-उद-दीन तुगलक दासों या रईसों को नियंत्रित नहीं कर सका। सेना कमजोर हो गई थी और साम्राज्य आकार में बिखर गया था। उनकी मृत्यु के दस साल बाद, तैमूर का आक्रमण हुआ । इस आक्रमण ने दिल्ली को तबाह कर दिया। अलाउद्दीन खलजी द्वारा निर्मित टैंक के करीब, हौज खास (नई दिल्ली) में उनकी कब्र स्थित है। कब्र से जुड़ा हुआ एक मदरसा है जिसे 1352-53 में फिरोज शाह ने बनवाया था। उसने उस वक्त दिल्ली में 1200 फलदार वृक्ष लगवाये। हिसार, जौनपुर, फिरोजाबाद, फिरोजपुर जैसे नए शहर बनवाए।
तुगलक की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार का युद्ध हुआ। जिसमें स्वतंत्र राज्य स्थापित करने के लिए नवाबों ने भी विद्रोह किया । उसका उत्तराधिकारी गियास-उद-दीन तुगलक दासों या रईसों को नियंत्रित नहीं कर सका। सेना कमजोर हो गई थी और साम्राज्य आकार में बिखर गया था। उनकी मृत्यु के दस साल बाद, तैमूर का आक्रमण हुआ । इस आक्रमण ने दिल्ली को तबाह कर दिया। अलाउद्दीन खलजी द्वारा निर्मित टैंक के करीब, हौज खास (नई दिल्ली) में उनकी कब्र स्थित है। कब्र से जुड़ा हुआ एक मदरसा है जिसे 1352-53 में फिरोज शाह ने बनवाया था। उसने उस वक्त दिल्ली में 1200 फलदार वृक्ष लगवाये। हिसार, जौनपुर, फिरोजाबाद, फिरोजपुर जैसे नए शहर बनवाए।
नासिरूदीन तुगलक़ (1388-1412)
वह तुगलक़ वंश का अंतिम शासक था। इसके शासन काल में भारत में तैमूर लंग का आक्रमण हुआ । उसने भारत से अकूत धन संपत्ति लूट कर गजनी ले गया । वह अपने साथ भारतीय कलाकारों भी ले गया जिसे उसकी राजधानी समकंद में स्थित महल को वे सजा सकें। इसके बाद 1412 तक ही तुगलक वंश कायम रहा और फिर खत्म हो गया।
वह तुगलक़ वंश का अंतिम शासक था। इसके शासन काल में भारत में तैमूर लंग का आक्रमण हुआ । उसने भारत से अकूत धन संपत्ति लूट कर गजनी ले गया । वह अपने साथ भारतीय कलाकारों भी ले गया जिसे उसकी राजधानी समकंद में स्थित महल को वे सजा सकें। इसके बाद 1412 तक ही तुगलक वंश कायम रहा और फिर खत्म हो गया।
दौलत खान जो इस वंश का अंतिम शासक था ,
सैय्यद वंश (1414-1451)
कोई संगठित शक्ति न होने के कारण आपसी झगड़े सामान्य बात थी।
फिर 1414 ई में सैय्यद खिज्र खान ने दिल्ली पर आक्रमण किया और यहाँ के
शासक दौलत खान को परास्त कर नए वंश की स्थापना की जिसे सैय्यद वंश कहा जाता
है। यह वंश 1551 तक चला फिर बहलोल लोदी ने आक्रमण किया और सल्तनत पर कब्जा
कर लिया । फिर एक नए वंश की स्थापना की जो इतिहास में लोदी वंश के नाम से
प्रसिद्ध हुआ।
सैय्यद वंश की स्थापना खिज्र खान ने की जो पहले मुल्तान (पंजाब )का गर्वनर था जिसे तैमूर ने नियुक्त किया था। खिज्र खान ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया मगर उसने अपने आपको सुल्तान घोषित नहीं किया वह पूरे समय एक तैमूर का तथा बाद में उसके पोते शाहरूख का जगीरदार बनकर रहा
सैय्यद मुबारक शाह
20 मई 1421 को खिज्र खां की मौत के बाद उसका बेटा सैय्यद मुबारक शाह उसका उत्तराधिकारी बना । मुबारक शाह ने खुद को अपने सिक्कों पर मुइज-उद-दीन मुबारक शाह कहा है । याह-बिन-अहमद सिरिंदी द्वारा लिखित तराईक-ए-मुबारक शाही में उनके शासनकाल का एक विस्तृत विवरण मिलता है । मुबारक शाह काफी दूरदर्षी था। मुबारक शाह की मृत्यु के बाद, उनके भतीजे,
मुहम्मद शाह
मुहम्मद शाह ने सिंहासन पर हासिल किया उसने अपने आप को सुल्तान मोहम्मद शाह के रूप निरूपित किया । अपनी मृत्यु से ठीक पहले, उन्होंने अपने बेटे सैय्यद अला-उद-दीन शाह को बदायूं से बुलाया, और उन्हें उत्तराधिकारी घोषित किया ।
अला-उद-दीन
सैय्यद के अंतिम शासक अला-उद-दीन ने 19 अप्रैल 1451 को बाहलोल खान लोदी को दिल्ली अपना सल्तनत सौंप दिया । क्योंकि वह इब्राहिम शर्की के लगातार आक्रमण से तंग आ गया था। इसीलिए उसने इब्राहिम लोदी की मदद लेने लगा। इसके बाद और फिर वह बदायूं चले गया, जहां 1478 में उनकी मृत्यु हो गई।