प्रशासन स्थापत्य समाज और कला ( Delhi Administraion 1206-1526)
तर्की के सुल्तान स्वतंत्र होने के बावजूद अपने आप को इस्लामी दुनियां का एक अंश मानते थे । जानते हैं क्या खास बातें रहीं है। इस दौर में ?
वहीं महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं थी । मुस्लिम एक से अधिक विवाह कर सकते थे। एवं उनमें पुर्नविवाह का चलन था । जबकि हिन्दुओं में पुर्नविवाह विवाह नहीं होते थे। हिन्दुओं की जनसंख्या ज्यादा थी मगर वे आर्थिक रूप से कमजोर थे। उनमें जातिप्रथा अपने चरम पर होती थी। हिन्दुओं में ऊँची-और नीची जाति की मान्यता थी । ऊँची जाति के लोग हमेशा नीची जाति के लोगों से कठोर व्यवहार करते थे। हिन्दु धर्म में कई बुराईयां थी जैसे सती, बालविवाह, छुआछूत,जातिप्रथा, इसके अलावा विधवाओं को पुर्नविवाह की अनुमति नहीं होती थी। तथा लड़कियों को शिक्षा प्राप्त करने का भी अधिकार नहीं था । वे शिक्षित नहीं होती थीं । इन सब कारणों से सल्तनत काल में हिन्दु जाति के लोग मुस्लिम धर्म अपनाने लगे ।
बंगाली तथा गुजराती भी सल्तनत काल में भारत के अनेक हिस्सों में बोली जाती थी। भक्ति तथा सूफी संत अपने उपदेश स्थानीय बोलियों में देते थे। इसी काल में उर्दू भाषा का भी विकास हुआ जो तुर्की तथा हिन्दी भाषा का मिश्रण था। कई भारतीय ग्रंथों का पर्शियन, तुर्की तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद हुआ।स्थापत्य कला
भारतीय कलाकारों के साथ सल्तनत काल में एक नयी कला शैली ने जन्म लिया जिसे इन्डोइस्लामिक स्थापत्य कला के नाम से जाना जाता है। इसका असर उस काल में बने मूर्तियों एवं भवनों पर स्पष्ट दिखाई देती है। दिल्ली का कुतुब मिनार इसका जीता जागता उदाहरण है। कुतुबमिनार को क्वाआतुल इस्लाम मस्जिद कहा जाता था। ऐबक ने इसका निर्माण किया मगर पूरा नहीं कर पाया तो उसने इसे इल्तुतमिश ने पूरा किया । 1368 में कुतुब मीनार में बिजली गिरने से उसे छति पहुँची थी उसका फिरोज शाह तुगलग ने जीर्णोद्धार करवाया । लाल पत्थर और संगमरमर से उसकी ऊपरी मंजिल को ठीक करवाया। यानि गुलाम वंश से शुरू हुआ निर्माण कार्य तुगलग वंश तक चलता ही रहा ।
बाद में अलाउद्दीन खिलजी ने इसके नजदीक कुव्वातउल इस्लाम नाम का एक मस्जिद और अलाई दरवाजा नाम का एक भवन बनवाया ।
खिलजी कुतुबमीनार के पास उससे ज्यादा ऊँचा एक मीनार बनाना चाहता था । उसने कुछ शरूआत भी की थी मगर उसकी मौत हो जाने से उसकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी ।
खास बात
पश्चिम बंगाल में 24 परगना नाम का एक ज़िला है। एक परगना में 84 से लेकर 100 गाँव होते थे।
तर्की के सुल्तान स्वतंत्र होने के बावजूद अपने आप को इस्लामी दुनियां का एक अंश मानते थे । जानते हैं क्या खास बातें रहीं है। इस दौर में ?
समाज
सबसे पहले समाज की बात की जाए तो समाज दो वर्गों में था एक हिन्दु और दूसरा मुस्लिम । मुस्लिम सत्ता पक्ष के होते थे । मुस्लिम समाज भी दो भागों में बंटा हुआ था -एक शिया दूसरा सुन्नी । मुस्लिमों की आर्थिक स्थिति काफी अच्छी हुआ करती थी। उन्हें शासन की सारी योजनाओं का लाभ उन्हें मिलता था। जबकि हिन्दुओं को सुविधाएं नहीं मिलती थीं। सल्तनत काल में गुलाम प्रथा काफी प्रसिद्ध थी। वे अपनी क्षमतानुसार एक या एक से अधिक गुलाम रख सकते थे। अकेले फिरोज तुगलग के पास 1 80,000 गुलाम थे।वहीं महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं थी । मुस्लिम एक से अधिक विवाह कर सकते थे। एवं उनमें पुर्नविवाह का चलन था । जबकि हिन्दुओं में पुर्नविवाह विवाह नहीं होते थे। हिन्दुओं की जनसंख्या ज्यादा थी मगर वे आर्थिक रूप से कमजोर थे। उनमें जातिप्रथा अपने चरम पर होती थी। हिन्दुओं में ऊँची-और नीची जाति की मान्यता थी । ऊँची जाति के लोग हमेशा नीची जाति के लोगों से कठोर व्यवहार करते थे। हिन्दु धर्म में कई बुराईयां थी जैसे सती, बालविवाह, छुआछूत,जातिप्रथा, इसके अलावा विधवाओं को पुर्नविवाह की अनुमति नहीं होती थी। तथा लड़कियों को शिक्षा प्राप्त करने का भी अधिकार नहीं था । वे शिक्षित नहीं होती थीं । इन सब कारणों से सल्तनत काल में हिन्दु जाति के लोग मुस्लिम धर्म अपनाने लगे ।
अर्थव्यवस्था
अधिकाश लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती करना ही था। खेती वर्षा पर आधारित होती थी मगर कुछ शासकों ने नहर भी बनवाए थे । फिरोज तुगलग ने खेती की दशा सुधारने के लिए कई नहर बनवाए । सिंचाई व्यस्था दुरस्त की ।लेकिन किसान उसके समय में गरीबी में जीवन यापन कर रहे थे। सल्तनत काल में खेती के अलावा अन्य जो धन्धे थे उनमें प्रमुख थे बुनाई, कढ़ाई, शक्कर उत्पादन, हस्तकारीगरी, बर्तन तथा आभूषण निर्माण। कुछ सुल्तानों ने कला एवं कौशल को संरक्षित किया था। राजशाही लोगों के निर्माण के लिए उनके अलग से कारीगर एवं कारखाने बने होते थे। समुद्र और जमीन मार्ग से व्यापार किऐ जाते थे। भारत से मसाले, चाँवल,नील,कपड़े, और सिल्क, चंदन विदेशों में भेजा जाता था। और विदेशों से शराब, कच्चे सिल्क, कांच से बनी चीजे़ घोड़े मंगाए जाते थे।धर्म
सूफी और भक्ति आंदोलन इसी काल में शुरू हुए। भारत में इस्लाम लाने का श्रेय महमूद गजनी और मुहम्मद गौरी को जाता है। मुस्लिम एक ईश्वर में विश्वास करते थे जबकि हिन्दुओं में कई देवताओं में विश्वास करने का चलन था। उस वक्त हिन्दुओं की संख्या ज्यादा हुआ करती थी। वे वैष्नव अथवा शैव विचारों को मानने वाले थे। कुछ लोग जैन और बौद्ध धर्म भी मानते थे।भाषा तथा साहित्य
ब्रज और खड़ी बोली बोलने का चलन था । उस काल की सभी रचनाएं इन्ही भाषा तथा बोलियों में मिलती हैं । परशियन तथा अरबी दरबारियों की भाषा थी यानि जो लोग दरबार में होते थे इन्ही भाषा का उपयोग करते थे। अमीर खुसरो, बर्नी उस जमाने की प्रमुख इतिहास कार थे जबकि अमीर खुसरो इतिहासकार होने के साथ-साथ कवि, संगीतकार भी थे। इनकी लिखी रचनाएं आज उस जमाने के चलन को समझने में काफी सहायक हैं । ज़ौदीन बर्नी ने तारीख-ए- फिरोजशाही लिखा।बंगाली तथा गुजराती भी सल्तनत काल में भारत के अनेक हिस्सों में बोली जाती थी। भक्ति तथा सूफी संत अपने उपदेश स्थानीय बोलियों में देते थे। इसी काल में उर्दू भाषा का भी विकास हुआ जो तुर्की तथा हिन्दी भाषा का मिश्रण था। कई भारतीय ग्रंथों का पर्शियन, तुर्की तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद हुआ।स्थापत्य कला
भारतीय कलाकारों के साथ सल्तनत काल में एक नयी कला शैली ने जन्म लिया जिसे इन्डोइस्लामिक स्थापत्य कला के नाम से जाना जाता है। इसका असर उस काल में बने मूर्तियों एवं भवनों पर स्पष्ट दिखाई देती है। दिल्ली का कुतुब मिनार इसका जीता जागता उदाहरण है। कुतुबमिनार को क्वाआतुल इस्लाम मस्जिद कहा जाता था। ऐबक ने इसका निर्माण किया मगर पूरा नहीं कर पाया तो उसने इसे इल्तुतमिश ने पूरा किया । 1368 में कुतुब मीनार में बिजली गिरने से उसे छति पहुँची थी उसका फिरोज शाह तुगलग ने जीर्णोद्धार करवाया । लाल पत्थर और संगमरमर से उसकी ऊपरी मंजिल को ठीक करवाया। यानि गुलाम वंश से शुरू हुआ निर्माण कार्य तुगलग वंश तक चलता ही रहा ।
बाद में अलाउद्दीन खिलजी ने इसके नजदीक कुव्वातउल इस्लाम नाम का एक मस्जिद और अलाई दरवाजा नाम का एक भवन बनवाया ।
खिलजी कुतुबमीनार के पास उससे ज्यादा ऊँचा एक मीनार बनाना चाहता था । उसने कुछ शरूआत भी की थी मगर उसकी मौत हो जाने से उसकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी ।
खास बात
पश्चिम बंगाल में 24 परगना नाम का एक ज़िला है। एक परगना में 84 से लेकर 100 गाँव होते थे।