गीदम से महज 20 किमी दूर बारसूर नामक एक एतिहासिक नगरी है। और यहाँ नाग वंशीय शासकों के बनाए अवशेष आज भी पर्यटन का पर्याय हैं । इस क्षेत्र में 10 वीं और 11 सदी के बने मंदिर आज भी लोगों को आकर्षित करते हैं । फिर बारसूर घूमने वालों को सात धार का सुंदर नजारा आज भी देखने को मिलता है। यहां पहूँचने के लिए चैाड़ी पुल से होकर गुजरना पड़ता है।
सन् 1979 के दरम्यान यह क्षेत्र काफी चर्चाओं में था वजह थी यहाँ बोधघाट परियोजना की बीज रखे जा रहे थे जिसका शिल्यान्यास तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजीभाई देसाई ने किया था। 475 करोड़ रूपये की लागत से इस परियोजना में 124 मेगावाट की चार बिजली यूनिट बनाने का सरकार का इरादा था। यहाँ 90 मीटर का ऊँचा बांध भी बनने जा रहा था। जो आज सात धार के नाम से मशहूर है। इसकी तैयारियाँ हो चुकी थी । ढांचे तैयार किए जा रहे थे । परियोजना हेतु लंबी सुरंगों के अलावा सैकड़ों आवास और पक्की-चैाड़ी सड़कों का निर्माण किया गया था जिसकी आज बारसूर में झलक देखने को मिल सकती है और जो कबाड़ बन चुके हैं ।
सन् 1979 के दरम्यान यह क्षेत्र काफी चर्चाओं में था वजह थी यहाँ बोधघाट परियोजना की बीज रखे जा रहे थे जिसका शिल्यान्यास तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजीभाई देसाई ने किया था। 475 करोड़ रूपये की लागत से इस परियोजना में 124 मेगावाट की चार बिजली यूनिट बनाने का सरकार का इरादा था। यहाँ 90 मीटर का ऊँचा बांध भी बनने जा रहा था। जो आज सात धार के नाम से मशहूर है। इसकी तैयारियाँ हो चुकी थी । ढांचे तैयार किए जा रहे थे । परियोजना हेतु लंबी सुरंगों के अलावा सैकड़ों आवास और पक्की-चैाड़ी सड़कों का निर्माण किया गया था जिसकी आज बारसूर में झलक देखने को मिल सकती है और जो कबाड़ बन चुके हैं ।
क्यों बंद हो गई इतनी बड़ी परियोजना ?
पहला कारण वन और पर्यावरण पेचिदिगियों के चलते यह बंद हो गई ।दूसरा कारण यह था कि परियोजना के चलते प्रभावितों को सरकार मुआवजा देने की बात पर अड़ी रही मगर उनके पुर्नवास पर कोई विचार तत्कालीन सरकार ने नहीं रखे थे।
इन्हीं बिन्दुओं पर राजनेताओं ने समय-समय इसके लिए खूब राजनीति भी की। फिर परियोजना ठंडी पड़ गई । अब यह परियोजना के अवशेष यानि चैाड़ी सड़के, आवास ही दिखाई देते हैं । उसे भी लोग देखने जाते हैं । और ये देखते हैं कि अगर यह परियोजना पर काम हो गया होता तो आज बारसूर शायद कोरबा, और भिलाई के मुकाबले का शहर होता । और निर्माण कार्य में जो रूपया लगा वह भी बर्बाद हो गया।
नए सिरे से होगा बोधघाट परियोजना
अब कोरोना काल में इस परियोजना को लेकर नए सिरे से काम होने जा रहा है। मुख्यमंत्री ने एक बैठक आहूत की जिसमें सांसद,सभी विधायक और अन्य जनप्रतिनिधियों ने सुझाव दिए। इस बैठक के प्रमुख बिन्दुएं इस प्रकार है।- परियोजना शुरू होने से पहले पुनर्वास नीति बनना चाहिए।
- सीएम बघेल ने कहा कि बस्तर के लोगों को विश्वास में लेकर योजना को आगे बढ़ाया जाएगा।
- उन्होंने कहा कि प्रभावित लोगों के रोजगार, मकान और जमीन के बदले जमीन की व्यवस्था की जाएगी।
- मुख्यमंत्री ने कहा कि बोधघाट ऐसा पहला प्रोजेक्ट है, जो बस्तर के विकास और समृद्धि के लिए है। इसका सीधा फायदा बस्तरवासियों को मिलेगा।
ये आसान नहीं है।
निम्न कारणों से इसका विरोध अब भी होगा ।- ग्रामीणों से इस परियोजना के बारे में नहीं पूछा गया है । और न ही इस संबध में कोई ग्राम सभा आयोजित की गई है। क्योंकि अब किसी भी बडे काम को करने के लिए ग्राम सभा की अनुमति अनिवार्य है।
जनिए क्या है ग्राम सभा ? क्या पेचिदिगियां है ग्राम सभा की ?
क्लिक कीजिए लिंक पर ग्राम सभा कैसे होती है?
- राजाराम तोड़ेम की माने तो । इसमें प्रभातिव जो क्षेत्र है वे सभी सरकारी जमीन हैं जिसमें जंगल हैं यानि जंगल काटे जाएंगे और जो प्रभावित हैं वे तो अप्रभावित ही रह जाऐगे।
क्या है नेताओं का रूख और बैठक में लिए गए निर्णय
- बोधघाट परियोजना से बस्तर संभाग के अत्यंत पिछड़े जिले सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर में सिंचाई की सुविधा विकसित होगी।
- एक छोटा सा हाईडल पॉवर प्लांट भी लगना चाहिए। ताकि बाकी जिलों में बिजली की आपूर्ति हो सकेगी।
- इस परियोजना के पूरा होने से सवा तीन लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई होगी।
- आबकारी मंत्री ने कहा कि आम लोगों के बीच जाकर भी सुझाव लिए जाएंगे।
- पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविन्द नेताम को भी आमंत्रित किया गया था। वे पहले इस परियोजना का विरोध करते रहे हैं। चूंकि अब सिंचाई प्राथमिकता है, इसलिए यह जरूरी है।
- मंत्रियों के सुझाव- आकर्षक पुनर्वास पैकेज और प्रभावितों के लिए व्यवस्थापन नीति बने जो पहले की परियोजना में नहीं थी।
- जल संसाधन मंत्री रविन्द्र चैबे ने कहा कि इससे बस्तर की अर्थव्यवस्था में बदलाव आएगा।
- वन मंत्री मो. अकबर ने प्रोजेक्ट को चरणबद्ध तरीके से पूरा करने का सुझाव दिया
- उद्योग मंत्री कवासी लखमा ने कहा कि परियोजना से प्रभावितों को बताना होगा कि उनको क्या लाभ मिलेगा।
- साथ ही प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले व्यवस्थापन के लिए जमीन का चिन्हांकिंत किया जाए।
- राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने कहा कि आम जनता से चर्चा कर पुनर्वास नीति तय की जाएगी।
कितना होगा उत्पादन ?
- 300 मेगावाट बिजली, 3.66 लाख हेक्टेयर में होगी सिंचाई
- इकोनॉमी में 6 हजार 223 करोड़ रुपए की बढ़ोत्तरी होगी।
- इंद्रावती नदी के 300 टीएमसी जल का उपयोग हो सकेगा । वर्तमान में मात्र 11 टीएमसी जल का उपयोग हो रहा है। यानि बहुत कम उपयोग हो रहा है।
- इससे 3 लाख 66 हजार हेक्टेयर में सिंचाई होगी
- इसके 500 मिलियन घनमीटर जल का उपयोग उद्योग और 30 मिलियन घनमीटर पेयजल के लिए उपयोग में लाया जाएगा।
- इससे हर साल 4824 टन मछली का भी उत्पादन हो सकेगा।
- इस प्रोजेक्ट से 359 गांव लाभान्वित होंगे,
जिसमें दंतेवाड़ा के 51,
बीजापुर के 218
और सुकमा के 90 गांव शामिल हैं।
साथ ही प्रोजेक्ट से 28 गांव पूरी तरह और 14 गांव आंशिक रूप से डूबान में आएंगे।
इसमें 5704 हेक्टेयर वन, 5010 हेक्टेयर निजी तथा 3068 हेक्टेयर शासकीय जमीन शामिल हैं।