कहानी बस्तर के राजवंश की
बस्तर में काकतीय वंश का शासन नागवंश के शासन के बाद आया । जानते हैं बस्तर के परिपेक्ष्य में क्या है काकतीय वंश यानि बस्तर राजवंश का इतिहासका इतिहास ? 13 वीं शताब्दि के पहले वारंगली में गणपति एक काकतीय राजा था।
उसका पुत्र नहीं था। अतः उसने अपनी पुत्री रूद्राम्बा को अपना उत्तराधिकारी बनाया । यह दिल्ली सल्तनत में गुलाम वंश में रजिया के सुल्तान बनने की कहानी से बिलकुल अलग है। रूद्राम्बा ने 1261 से 1293 तक शासन किया । रूद्राम्बा को भी कोई पुत्र नहीं था उसकी एक बेटी थी जिसका नाम था मम्मडम्बा जिसका विवाह महादेव नामक चालुक्य से हुआ था। महादेव अन्हिलवाड़ का चालुक्य था। इस तरह यह सिद्ध होता है कि काकतीय चालुक्य ही थे। महादेव और मम्मडम्बा का बेटा हुआ उसका नाम था प्रताप रूद्रदेव।
बस्तर के दंतेवाड़ा अभिलेख से यह पता चलता है के प्रताप रूद्रदेव का एक भाई भी था जिसका नाम था अन्नमदेव( बस्तर के महाराजा प्रवीर चंद भंजदेव के पूर्वज )
उसका पुत्र नहीं था। अतः उसने अपनी पुत्री रूद्राम्बा को अपना उत्तराधिकारी बनाया । यह दिल्ली सल्तनत में गुलाम वंश में रजिया के सुल्तान बनने की कहानी से बिलकुल अलग है। रूद्राम्बा ने 1261 से 1293 तक शासन किया । रूद्राम्बा को भी कोई पुत्र नहीं था उसकी एक बेटी थी जिसका नाम था मम्मडम्बा जिसका विवाह महादेव नामक चालुक्य से हुआ था। महादेव अन्हिलवाड़ का चालुक्य था। इस तरह यह सिद्ध होता है कि काकतीय चालुक्य ही थे। महादेव और मम्मडम्बा का बेटा हुआ उसका नाम था प्रताप रूद्रदेव।
बस्तर के दंतेवाड़ा अभिलेख से यह पता चलता है के प्रताप रूद्रदेव का एक भाई भी था जिसका नाम था अन्नमदेव( बस्तर के महाराजा प्रवीर चंद भंजदेव के पूर्वज )
महारानी रूद्रम्बा का कोई पुत्र नहीं था अतः उसने रूद्रप्रताप देव को अपना दत्तक पुत्र बना लिया । और रूद्रप्रताप देव काकतीय वंश का उत्तराधिकारी बना । महादेव और मम्मडम्बा की एक बेटी भी थी जिसका नाम रैला देवी था। (बस्तर दशहरा में इसी रैला देवी की पूजा की जाती है)।
बस्तर की गाथा वारंगल से जुड़ी है
वारंगल पर दूसरा आक्रमण गियासुद्दीन तुगलग (1320-1325)के समय में हुआ क्योंकि कि रूद्रप्रताप देव ने सुल्तान को खिराज देने से मना कर दिया था। जुनाखां यानि मुहम्मद तुगलग ने यहाँ आक्रमण किया । मगर गियासुद्दनी की मौत की अफवाह से सेना में भगदढ़ मच गई। और सभी जुनाखाँ को छोड़कर भाग गए।
फिर तीसरी बार तुगलग ने आक्रमण किया और रूद्रप्रताप देव को बंदी बना लिया गया और वारंगल का नाम बदलकर सुल्तान पुर रखा गया । इसी बीच रूद्रप्रताप देव के छोटे भाई अन्नमदेव ने बस्तर में नागवंशीय शासकों को हरा कर काकतीय वंश की स्थापना की । इतिहासकार डाॅ हीरालाल शुक्ल के अनुसार रूद्रप्रताप देव दिल्ली से मुक्त होकर बस्तर आया और यहाँ सुप्रतिष्ठित कर वारंगल पहुँचा दिया गया । इसके बाद उसका क्या हुआ पता नहीं चल सका । उसका अंतिम अभिलेख जो 1326 ई का है जो गुण्टूर से मिला है।
इतिहासकार की जुबानी
इतिहासकार केदार नाथ ठाकुर के अनुसार प्रतापरूद्रदेव भुपालपट्टनम से घाटी चढ़कर वहाँ के राजाओं को जीतकर आगे बढ़ा और जिस स्थानों पर उसकी विजय प्राप्त हुई उसका नाम बदलकर विजयपुर रखा यही विजयपुर आज बिजापुर के नाम से जाना जाता है। इस पूरे क्षेत्र में उसका संघर्ष नागवंशीय राजाओं से होता रहा । वह अंत में दंतेवाड़ा में आकर बस गया यहां तारलाग्राम में एक मंदिर बनवाया जो आज दंतेश्वरी देवी का मंदिर है।
प्रतापरूद्रदेव ने 1295 से 1310 तक वारंगल में कुशलतापूर्वक शासन किया मगर 1309 - 10 मलिक काफुर जो अलाउद्दीन का सेनापति था।उसने अपने दक्षिण विजय में वारंगल पर आक्रमण किया। दक्षिण पर यह पहला मुस्लिम आक्रमण था। शाक्तिशाली मुस्लिम सेना के आगे प्रातापरूद्रदेव विवश थे । उसने अपनी सोने की मूर्ति बनाई और उसपर सोने का जंजीर गले में डाली और आत्मसमपर्ण स्वरूप मलिक काफुर को भेजा। 100 हाथी , 700 घोड़े अपार धनराशि के साथ अलाउद्दीन की अधीनता स्वीकार कर ली। और तुगलग वंश की स्थापना के बाद वारंगल पर 1321-23 में गियासुद्दीन तुगलग ने वारंगल पर आक्रमण किया ।
प्रतापरूद्रदेव ने 1295 से 1310 तक वारंगल में कुशलतापूर्वक शासन किया मगर 1309 - 10 मलिक काफुर जो अलाउद्दीन का सेनापति था।उसने अपने दक्षिण विजय में वारंगल पर आक्रमण किया। दक्षिण पर यह पहला मुस्लिम आक्रमण था। शाक्तिशाली मुस्लिम सेना के आगे प्रातापरूद्रदेव विवश थे । उसने अपनी सोने की मूर्ति बनाई और उसपर सोने का जंजीर गले में डाली और आत्मसमपर्ण स्वरूप मलिक काफुर को भेजा। 100 हाथी , 700 घोड़े अपार धनराशि के साथ अलाउद्दीन की अधीनता स्वीकार कर ली। और तुगलग वंश की स्थापना के बाद वारंगल पर 1321-23 में गियासुद्दीन तुगलग ने वारंगल पर आक्रमण किया ।
अब प्रताप रूद्रदेव को अपनी छोटी सी सेना लेकर इधर उधर भटकते रहना पड़ा और इस तरह वह बस्तर आ गया और छोटे राजाओ की परस्त कर बस्तर में कुछ समय राज करने के बाद वारंगल लौट गया और उसकी मृत्यु हो गई। भाई की मौत की बाद अन्नमदेव जो प्रतापरूद्रदेव का छोटा भाई था बीजापुर रास्ते से बारसूर पहुँचा। 1324 को अंतिम नागवंशीय राजा हरिशचन्द्र को परास्त कर सिंहासनारूढ़ हुआ।
इस तरह बस्तर के राजवंश की कहानी शुरू हुई। अन्नमदेव से प्रवीरचंद्र भंजदेव तक बस्तर के राजाओं का सिलसिला चला । इसमें 13वे राजाओं की कड़ी टूटी और चंदेल मामा बस्तर के राजा बने वह चंदेलवंश का था। इसके बाद वह स्वयं वारंगल आ गया । जहाँ उसका निधन हो गया।
इस प्रकार बस्तर राजवंश के आदि पुरूष काकतीय नहीं चालुक्य थे। किन्तु मातृपक्ष की ओर से रूद्राम्ब तो काकतीय थी
वंश परिवर्तन की घटना की पुर्नरावृत्ति पुनः 20 वीं शताब्दि में हई जब प्रतापरूद्रदेव तृतीय (1891-1921) की एकमात्र पुत्री प्रफुल्लकुमारी देवी 1922 में महारनी बनी और उनका विवाह मयूरभंज वंश के राजकुमार ( मयूर भंज राजा के भतीजे )प्रफुल्ल चंद भंजदेव से हुआ। इसके बाद उनके उत्तराधिकारी उनके पुत्र प्रवीरचन्द्र भंजदेव और हरशिचन्द्र बस्तर के राजा बने । प्रवीरचंन्द्र भंजदेव ने अपने ग्रंथ लोहंडीगुडा तरंगिनी में स्वयं को काकतीय कहा है। और अपने ग्रन्थ में आदि पुरूष अन्नमदेव को भी काकतीय बताया है ।
अन्नमदेव (1324 से 69)तक के बाद काकतिय राजाओं के नाम जिन्होंने बस्तर में शासन किया
2. हमीर देव (1369-1410)
3. भैरव देव (1410 - 68)
4. पुरूषोत्तमदेव (1468- 1534)
5. जयदेव सिंह (1534-58)
6. नरसिंह देव (1558-62)
7. प्रतापराजदेव ( 1602 -25)
8. जगदीशराजदेव (1625-39)
9. वीरनारायण देव (1639-54)
10. वीरसिंह देव (1654-80)
11. दिक्पाल देव (1680-1709)
12. राजपाल देव (1709-21)
13. चंदेलमामा (1721-31) ये चंदेल वंश के राज थे
14. दलपत देव (1731-74)
15. अजमेरसिंह (1774-77)
2. हमीर देव (1369-1410)
3. भैरव देव (1410 - 68)
4. पुरूषोत्तमदेव (1468- 1534)
5. जयदेव सिंह (1534-58)
6. नरसिंह देव (1558-62)
7. प्रतापराजदेव ( 1602 -25)
8. जगदीशराजदेव (1625-39)
9. वीरनारायण देव (1639-54)
10. वीरसिंह देव (1654-80)
11. दिक्पाल देव (1680-1709)
12. राजपाल देव (1709-21)
13. चंदेलमामा (1721-31) ये चंदेल वंश के राज थे
14. दलपत देव (1731-74)
15. अजमेरसिंह (1774-77)
भोंसलों के अधीन राजा दरियावदेव के समय बस्तर भोंसलों के अधीन 1780 में करदराज्य बन गया था और 1853 तक मराठा भोंसलों के अधीनता में निम्मनलिखित काकतीय राजा हुए ।
17. महिपाल देव (1800-42)
18. भूपाल देव (1842-53)
फिर ब्रिटिश राज में ब्रिटिश अधीनता स्वीकार करने वाले काकतीय राजाओं के नाम इस प्रकार हैं
जिनके नाम से जिला अस्पताल की स्थापना जगदलपुर में हुई
22. प्रवीर चंद भंजदेव (1936-47)
22. प्रवीर चंद भंजदेव (1936-47)
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 1948में बस्तर रियासत का भारत संघ में विलय हो गया । आजादी के बाद भारत में काकतीय राजाओं के नाम इस प्रकार हैं जिन्हें बस्तर की जनता श्रद्ध पूर्वक राजा मानती है।
23. प्रवीरचंन्द्र भंजदेव (1947-61)
24. विजय चंन्द्र भंजदेव (1961-69)
25. भरतचन्द्र भंजदेव (1969-96)
26. कमलचंन्द्र भंजदेव (1997 से अब तक )
24. विजय चंन्द्र भंजदेव (1961-69)
25. भरतचन्द्र भंजदेव (1969-96)
26. कमलचंन्द्र भंजदेव (1997 से अब तक )
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